आज आज़ाद भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित
जवाहरलाल नेहरू का हैप्पी बड्डे है, मतलब देश का बाल दिवस। सोमवार, यानि 12 नवंबर
को विश्व निमोनिया दिवस था। ब्रिटेन का एक गैर सरकारी संगठन है। उसने कुछ आंकड़े
पेश किए हैं। ये आंकड़े बताते हैं कि निमोनिया अब भी विश्व में बच्चों की मौत का
एक अहम कारण है। कई देशों के बच्चे इस संकट से जूझ रहे हैं। भारत भी उन देशों में
से एक है।
सेव द चिल्ड्रन नाम के इस संगठन
की रिपोर्ट के अनुसार विश्व को निमोनिया जैसी इलाज के योग्य बीमारी से अब तक निजात
नहीं मिल पाया है। हर वर्ष इसकी वजह से कई बच्चों की जान चली जाती है। मलेरिया, दस्त
और खसरा से जितनी मौतें होती हैं, उससे कहीं ज़्यादा मौतें अकेले निमोनिया से होती
हैं। ये संगठन जो आंकड़े पेश करता है, उससे स्पष्ट होता है कि भविष्य में अभी भी
बच्चों पर निमोनिया का खतरा मंडरा रहा है। इस रिपोर्ट ने चेतावनी दी है कि 2030 तक भारत
में करीब 17 लाख़ बच्चे निमोनिया से मर जाएंगे। रिपोर्ट बताती है कि इस संक्रामक
बीमारी के चलते 2030 तक पांच साल से कम उम्र के 1.1 करोड़ बच्चों की मौत होने की
आशंका है। इससे सबसे ज़्यादा प्रभावित होने वाले देशों की सूची में नाइजीरिया,
भारत, पाकिस्तान और कांगो हैं। यदि वर्तमान रूझान पर गौर फ़रमाया जाए तो 2030 तक
10,865,728 बच्चों के मौत की आशंका है। इनमें सबसे अधिक मौतें नाइजीरिया
(1,730,000), भारत (1,710,000), पाकिस्तान (706,000) और कांगो (635,000) के बच्चों
की होगी।
निमोनिया से जुड़े अब तक के जो स्पष्ट आंकड़े
उपलब्ध हैं, वे 2016 के हैं। 2016 की इस रिपोर्ट में बताया गया है कि निमोनिया से
880,000 बच्चों की मौत हो गई। इनमें ज़्यादातर बच्चों की उम्र दो वर्ष से कम थी।
इसमें यह भी बताया गया है कि भारत में 2016 में निमोनिया और डायरिया से पाँच साल
से कम उम्र के 2.6 लाख से अधिक बच्चों की मौत हो गई। दुनियाभर में निमोनिया और
डायरिया से पाँच वर्ष से कम उम्र के बच्चों के जो आंकड़े उपलब्ध हैं, उनमें 70
प्रतिशत मामले भारत में दर्ज किए गए। इनमें उन 15 देशों की सूची भी है जिन्हें इस
तरह के मामलों से निपटने में स्वास्थय सेवाओं के तौर पर पिछड़ा बताया गया है। इस
सूची में भारत का नाम भी है।
खैर, यह कोई हैरानी की बात नहीं है। जिस देश
(भारत) में बच्चे भूख़ से मर जाते हैं, वहाँ निमोनिया से मरना कोई बहुत बड़ी बात
नहीं है। भारत में भूख़ भी एक संक्रामक रोग जैसा ही है, जो गरीबी के संक्रमण से
फैल रहा है। सरकार इस संक्रमण को रोकने का कोई प्रयास भी नहीं कर रही है। जहाँ
बच्चों को भर पेट खाना तक मुहैया नहीं हो पा रहा है, वहाँ बेहतर स्वास्थय और
शिक्षा जैसी सुविधाओं की उम्मीद कैसे की जा सकती है!
पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कहा था “आज के बच्चे कल
का भारत बनाएंगे। जिस तरह हम उन्हें बड़ा करेंगे, वही भारत का भविष्य तय करेगा।” पर जब इस बात
को लेकर ही संदेह हो कि आज जो बच्चा जन्म ले रहा है, कल वह जिंदा बचेगा भी या नहीं,
तो फ़िर भारत के भविष्य का अनुमान कैसे लगाया जा सकता है!
छवि आभार: द फाइनेंशियल एक्सप्रेस