आंखों में मेरी बिखरा गई
सूखी पवन , महका गई
शर्द हवाओ में पिघला गई
मोहब्बत में मेने कूबूल ये किया
किताबे देकर, वो शरमा गई...
हाथो में उसके , महंदी रची है
मधु उसकी खुशबू , महक रही है
कंगनो की कंकनाहट,
पाज़ेब ए रुनझुन
कर मुझको पागल बिंदिया रही है
निगाहे उसकी फिर न मिली
पल में देखो गुल खिला कर गई...
मेने कभी फिर पी ही नही
फिर डगर डगी भी नही
मधुमय होठों पे तिल है उसके,
नज़रे देखो मिली भी नही
मदहोशी छाई ऐसी की
रंग बिरंगी दुनिया देखी
वो मधु इश्क की पीला कर गई...
पांवो में उसके महावर रचा है
पलको पे उसकी काजल खिला है
गोरे तन पे नीलिमा साड़ी
हाथ धर चहरे पर कोई, शर्मा रहा है
ख्वाब मानो किसी शायर का
नैनो में कोई अप्सरा आ गई...
- रोहित कुमार "मधु"