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अखण्ड भारत का राष्ट्रवादी स्वर: अटल बिहारी वाजपेयी

1 जनवरी 2022

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अखण्ड भारत का राष्ट्रवादी स्वर: अटल बिहारी वाजपेयी

डॉ. आनन्द कुमार शुक्ल

सहायक प्राध्यापक (हिन्दी)

कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय


देश के राजनीतिक क्षितिज पर दीर्घकाल तक देदिप्यमान रहे अटल बिहारी वाजपेयी आजीवन भारतीय सभ्यता एवं सांस्कृतिक विरासत के वाहक बने रहे। इस तथ्य का प्रबलतम प्रमाण उनकी कविताएँ हैं। वाजपेयी जी ने जीवन में कभी भी अपने कवि स्वरूप को नहीं छोड़ा। उनकी कवि-हृदय सहृदयता उन्हें नितांत राजनीतिक व्यक्तियों से पृथक् करती है।

"हिंदू तन मन,

हिंदू जीवन

रग-रग हिंदू मेरा परिचय।"

यह कविता वाजपेयी जी ने तब लिखी थी, जब वे दसवीं कक्षा के छात्र थे। अर्थात् अपनी पहचान और विचारधारा के प्रति वे बाल्यकाल से ही स्पष्ट थे।

अटल जी की आत्मा कवि की थी और जिज्ञासा एक पत्रकार की। कहना न होगा - 1947 में मिली आजादी को वे आजन्म अधूरी मानते रहे। 15 अगस्त 1947 के दिन वे कानपुर के डी.ए.वी. हॉस्टल में बेहद विचलित होकर बैठे थे। उन्होंने अखण्ड भारत की स्वाधीनता का स्वप्न देखा था, खण्डित भारत की स्वाधीनता का नहीं। दो-दो सीमाओं पर चल रहे मर्मान्तक भीषण नरसंहार ने उनके कवि हृदय को खरोंच डाला। मौन कवि ने कविता लिखी - ‘स्वतंत्रता दिवस की पुकार'।

"पन्द्रह अगस्त का दिन कहता, आजादी अभी अधूरी है।

सपने सच होने बाकी हैं, रावी की शपथ न पूरी है।।

जिनकी लाशों पर पग धर कर, आजादी भारत में आई।

वे अब तक हैं खानाबदोश, गम की काली बदली छाई।।

कलकत्ते के फुटपाथों पर, जो आँधी-पानी सहते हैं।

उनसे पूछो, पन्द्रह अगस्त के बारे में क्या कहते हैं।।"

लेकिन अटल जी हार मान लेने वाले व्यक्तियों में से नहीं थे। उन्होंने आजन्म भारत विभाजन का विरोध किया और एक सम्पूर्ण संगठन को इस मनोदशा के लिए आंदोलित किया -

"टूटे हुए सपनों की कौन सुने सिसकी

अन्तस को चीर व्यथा पलकों पर ठिठकी

हार नहीं मानूँगा,

रार नई ठानूँगा

काल के कपाल पर लिखता मिटाता हूँ

गीत नया गाता हूँ।"

साहित्येतिहास के दृष्टिकोण से देखा जाए तो अटल जी नवगीत के प्रणेता कवियों में से एक हैं। इस तथ्य को जानने और समझने के बावजूद मार्क्सवादी आलोचकों ने उनके महत्वपूर्ण साहित्यिक योगदान की राजनीतिक दुर्भावना से प्रेरित होकर सदैव उपेक्षा की। इन सबके बावजूद अटल जी ने साहित्यिक, राजनीतिक दुरभिसंधियों को लगातार बेनकाब किया -

"बेनकाब चेहरे हैं,

दाग बड़े गहरे हैं,

टूटता तिलस्म आज सच से भय खाता हूँ,

गीत नहीं गाता हूँ।"

राजनीतिक तौर पर अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय जनता पार्टी के संस्थापकों में से एक थे। एक छोटे से प्रयत्न के तौर पर शुरू हुआ उनका दल आज एक महान रण में परिवर्तित हो चुका है। एक संगठनकर्ता के तौर पर उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं को कभी निराश न होने की सलाह दी -

"बाधाएँ आती हैं आएँ,

घिरे प्रलय की घोर घटाएँ,

पाँवों के नीचे अंगारे,

सिर पर बरसें यदि ज्वालाएँ,

निज हाथों में हँसते-हँसते,

आग लगाकर जलना होगा

कदम मिलाकर चलना होगा।

वे कवि थे, वे पत्रकार थे, वे राजनेता थे, वे विचारक थे, वे अद्भुत संभाषक थे; और इन सभी व्यक्तित्त्वों के संग-साथ वे अपने जीवन को देश-प्रेम के लिए होम कर देने को आतुर महान देशभक्त थे। उनकी पुनीत स्मृति को बारम्बार प्रणाम।




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