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अर्थगीता

22 नवम्बर 2016

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समस्त नरों में इन्द्र की भांति प्रतिष्ठित मन में मोद भरने वाले श्री नरेन्द्र मोदी ने, विक्रम संवत 2073 के शुभ कार्तिक मास की नवमी में चन्द्रदेव के कुंभ राशि में प्रवेश के बाद, यानि दिनांक आठ नवम्बर 2016 को समस्त देशवासियों को पाँच सौ तथा एक हजार रुपये मूल्य की मुद्राओं को त्यागने का अनुरोधात्मक आदेश दिया. इस अवसर पर देश के मध्यम वर्ग को अर्जुन की भाँति विषाद हुआ, जिसके निराकरण के लिये नृपश्रेष्ठ ने जो संवाद किया वह कालांतर में अर्थ गीता के नाम से प्रसिद्ध हुआ तथा कार्तिक मास की नवमी तिथि को इसका पाठ करने वाला जातक आयकर के भय से मुक्ति प्राप्त कर कमल दल द्वारा देशभक्त कहलाया जाता है.

अध्याय एक, विषाद योगः श्याममुद्रा श्वेतमुद्रा के मध्य छिड़े महा भारत के बीच फंसे मध्यमवर्ग ने हाथ जोड़कर कहा, "हे प्रभु, श्वेत श्याम दोनों प्रकार की मुद्रा का अर्जन मेरे द्वारा ही किया गया है. तनिक सी चूक से श्वेत से श्याम में बदली मुद्रा को मैं कैसे त्याग सकता हूँ, इसमें तो मेरी ही हानि है. परंतु दोनों मुद्राओं के मिल जाने से आर्थिक वर्णसंकरता के कारण मैं विषादग्रस्त हूँ. अतः हे नृपेन्द्र, कृपया दोनों मुद्राओं के मध्य के अंतर को स्पष्ट करिये. हे यशोदापति , मुझे वह ज्ञान प्रदान करें जो मेरी आसक्ति दूर कर सके."

अध्याय दो, साँख्य योगः तब मधुर मुस्कान के संग प्रभु मोदी ने कहा, हे मध्यम, अपनी दुर्बलता त्यागो और श्रेष्ठजनों की तरह आचरण करो. जिस मुद्रा में तुम्हारी आसक्ति है वह मात्र कागज है. धन उसके भीतर निहित है, जो मुद्रा को वस्त्र की तरह धारण करता है. धन को शस्त्र काट नहीं सकता... वगैरह... मुद्रा तो मुर्दा हो सकती है जबकि धन अभेद्य, व्यापक, नित्य, विकार रहित सनातन है.

अध्याय तीन, कर्म योगः हे मध्यम, मुद्रा में आसक्ति रखने वाले मिथ्याचारी जीव अडानी अंबानी की भांति पाप कर्म करते कष्ट पाते हैं जिन्हें तुम भ्रष्ट जानो. ऐसे पुरुषों का आचरण अंततः दंडनीय होता है, चाहे उसमें सैंकड़ों वर्षों का समय ही क्यों ना लगे. मुद्रा में आसक्ति रखे बिना तुम्हें कर्म करना ही शोभा देता है, अतः अपने अर्जित बड़े नोटों को त्याग कर आसक्ति से मुक्ति पा जाओ.

अध्याय चार, ज्ञानकर्मसंन्यास योगः हे मध्यम, तुमने मुझे वोट दिया है, अतः तुम मेरे प्रिय हो. मैं तुम्हें वह ज्ञान दे रहा हूँ जो परंपरागत रूप से पहले ब्रिटिश सरकार ने बाद में श्री मोरारजी देसाई ने इस देश को दिया था. हे भक्त शिरोमणि, जब जब अर्थव्यवस्था की हानि होती है, मैं प्रधानमंत्री के रूप में यह लीला रचता हूँ. मुझे तू अकर्ता भाव से देख विमुद्रीकरण से होने वाले कष्टों के लिये मुझे दोषी ना मानकर मुझे अगले चुनाव में भी वोट नामक योगदान देते रहना. इसे ही ज्ञानकर्मसंन्यास योग कहा जाता है.

अध्याय पाँच, कर्मसंन्यास योगः हे मध्यम, निष्काम कर्मयोगी कर्म करते हुए भी कर्म में लिप्त नहीं रहता है. कर्म फल के रूप में प्राप्त वेतन को सरकार की कृपा मानकर खुशी खुशी आयकर अन्य कर देने को तत्पर रहता है, यह मार्ग कर्मयोग से श्रेष्ठ है. चूंकि निष्काम कर्मयोगी कर्म का श्रेय नहीं लेते हैं जिसे अंततोगत्वा सरकार को ही ग्रहण करना पड़ता है. और इस प्रकार सरकार कुछ नहीं करके भी सर्जिकल स्ट्राइक, आतंकवाद से मुक्ति, ट्रंप महोदय की विजय, महंगाई पर काबू जैसे विषयों का श्रेय ले लेती है.

अध्याय छः, आत्मसंयम योगः हे भारत, जो पुरुष अपनी आय का एक चौथा भाग आयकर, दूसरा चौथा भाग उत्पादन केन्द्रीय कर, तीसरा चौथा भाग राज्य सरकार के करों अंतिम चौथा भाग सेवाकर तथा अन्य दंड शुल्क के रूप में मुझे समर्पित करता है, वह योगी सुख दुख, आसक्ति, वासना, लोभ माया में लिप्त ना होकर अति उत्तम आनन्द को प्राप्त होता है. हे भारत, यह अभ्यास बहुत कठिन है जिसके लिये श्रेष्ठ योगियों को निरंतर प्रयासरत रहना चाहिये.

अध्याय सात, ज्ञान विज्ञान योगः हे भारत, संपूर्ण कर (टैक्स) सरकार के ही कर (हाथ) हैं भारी भरकम नौकर शाही उसका कारण है. वह कारण भी मैं ही हूँ. सदा सरकार का गठन पतन मैं ही हूँ. हे पार्थ, करों में मैं आयकर हूँ, दंड संहिता में मैं धारा तीन सौ दो तथा संविधान में धारा तीन सौ सत्तर हूँ. जो पुरुष मुझे भजते हैं वे बिना किसी धारा में बंधे भारत से तर जाते हैं, जैसे माल्या.

अध्याय आठ, अक्षरब्रह्म योगः हे मध्यम, जो पुरुष विभिन्न विभागों के करों को चुकाता हुआ देह त्याग देता है, वह अगले जन्म में उन उन विभागों में अधिकारी पद को प्राप्त होता है. पर जो पुरुष कर वंचना करते हुए मेरे दल को कमल दल के समान पत्र पुष्प भेंट करता है वह सदैव मेरे दल का नेता बन कर्म कर्मचारीपन से मुक्त हो जाता है.

अध्याय नौः राजविद्या राजगुह्य योगः हे भारत, मैं अपने आप अपनी ही छवि रचता हूँ तथा स्वयं ही उस पर मोहित होता हूँ. तुच्छजन मुझे मेरे पद से भिन्न समझते हैं पर ज्ञानी जन मुझे सदा हर कानून, हर धारा हर सरकारी आदेश में व्याप्त समझते हैं. विभिन्न देशों में भारत की छवि मैं ही हूँ, पाकिस्तान में नवाज का मित्र मैं ही हूँ, मैं बराक का भी घनिष्ठ था अब ट्रंप का भी निकटस्थ ही हूँ. अतः भक्त, जो कुछ समय तू फेसबुक, ट्विटर आदि पर अर्पित करता है, वह मेरी प्रशंसा में ही अर्पित कर, वही श्रेष्ठ भक्ति है.

अध्याय दस, विभूति योगः हे भारत, अब मैं अपनी विभूतियों का वर्णन करता हूँ, मेरा कोई परिवार नहीं है पर समस्त भारतीय मेरे भाई बहिन हैं, अतः मैं सभी बहनों-भाइयों को सदा संबोधित करता हूँ. मैं वणिकों में गुजराती हूँ, मंत्रियों में प्रधानमंत्री हूँ, पुत्रों में सुपुत्र हूँ यात्रियों में वायुयात्री हूँ. नदियों में मैं गंगा हूँ, शहरों में मैं बनारस हूँ. फूलों में मैं कमल हूँ रंगों में मैं भगवा हूँ. बातों में मैं "मन की बातहूँ, विवादों पर मैं मौन हूँ. यूं, मैंने अपनी विभूतियों को संक्षेप में ही कहा है, शेष तुम स्वयं कल्पना कर सकते हो.

अध्याय ग्यारह, विश्वरूपदर्शन योगः इस प्रकार भारत के मध्यमवर्ग का अज्ञान नष्ट हो गया पर उसने महापुरुष के तेज, बल, ज्ञान ऐश्वर्य को प्रत्यक्ष देखना चाहा. तब श्रीयुत ने कहा, हे भारत, पाकिस्तान को विश्वमंच पर धूल चटाने वाला मैं ही हूँ. चीन के राष्ट्रपति को झूला झुलाने वाला भी मैं ही हूँ. बराक को चाय पिलाने वाला भी मैँ ही हूँ, ट्रंप को जीतने का नारा दिलाने वाला भी मैं ही हूँ. मैं बांग्लादेश के साथ सीमा समझौता कर सकता हूँ तो नेपाल के प्रचंड कमल को दहला सकता हूँ. श्रीलंका मालदीव मेरे साथ सार्क का बहिष्कार करते हैं, तो मे और मेरी ब्रिटिश जयजयकार करते हैं. वसुंधरा (राजे) भी मेरे अधीन है तो अरुण (जेटली) भी मेरी इजाजत से ही दिखाई देता है. शिव का राज भी मुझसे है तो राज का नाथ भी मैं ही हूँ. मेरे पास ममता (बनर्जी) भी है और महबूबा (मुफ्ती) भी. मैं अमित (शाह) भी हूँ और मोहन (भागवत) भी. यह रूप देखकर समस्त मध्यमवर्ग आनंदित हो गया.

अध्याय बारह, भक्ति योगः आगे श्रीमान ने कहा, जो पुरुष व्यक्तिगत आकांक्षा से मुक्त है संसार से आसक्ति रहित है, वह मेरा प्रिय है. जो भक्तजन महंगाई, भ्रष्टाचार, आतंकवाद सरकारी ढ़िलाई पर ध्यान ना देकर मेरे विश्वरूप को भजते हैं, वे मुझे परमप्रिय हैं.

अध्याय तेरह, क्षेत्रक्षेत्रज्ञविभाग योगः हे मध्यम, यह देश एक क्षेत्र है, जिसमें उत्तर में सीमा विवाद, दक्षिण में जलविवाद, पूर्व में माओवाद पश्चिम में आतंकवाद विद्यमान है. इसके साथ ही दिल्ली में केजरीवाल की आप सरकार तथा शिथिल नौकरशाही की भरमार है. इस स्थिति में देश वासियों को अपने अभावों कष्टों के स्थान पर, मेरा परिवार त्यागकर योग, यात्रा , मन की बात स्वच्छता अभियान में तन मन की एकाग्रता देखनी चाहिये. जो पुरुष यह देखता है वह अपनी बड़ी मुद्रा की हानि के दुख से निर्विकार हो जाता है.

अध्याय चौदह, गुणत्रयविभाग योगः हे भारत, हर नागरिक भ्रष्टाचार के सत, रज तम इन तीन गुणों में बंधा है. जो भ्रष्टाचार के स्वरूप को जानते हैं वे सतगुणी हैं. जो भ्रष्टाचार द्वारा धनार्जन कर स्वर्ण, भूमि आदि में निवेश संचय करते हैं वे रजोगुणी हैं, और जो दूसरों के भ्रष्टाचार को देखकर संतप्त होते हैं कष्ट पाते हैं वे तमोगुणी हैं. पर जो महान पुरुष निर्लिप्त रहते हुए इस माया का उपभोग करते हैं वे ही सच्चे योगी सिद्ध पुरुष हैं.

अध्याय पंद्रह, पुरुषोत्तम योगः हे मध्यम, दिल्ली से नागपुर तक एक महान वृक्ष है, जिसकी सभी राज्यों, नगरों ग्रामों में शाखाएँ हैं. जिनपर शाखामृग कूदफांद तथा किलोल करते हैं. उस वृक्ष का मूल एक वृहद भारत की स्थापना में निहित है, जिसमें योगदान देना सभी भारतवासियों के लिये पुनीत कर्तव्य है. इस संसार में नाशवान अविनाशी दो प्रकार की विचारधाराएँ हैं, जिनमें सेक्युलरिज्म की विचारधारा नाशवान अखंड भारत की विचारधारा अविनाशी है. मैं उसी अविनाशी विचारधारा को पालने वाला उत्तम पुरुष हूँ, अतः पुरुषोत्तम हूँ.

अध्याय सोलह, दैवासुरसंपद्विभाग योगः हे भारत, शांति उन्नति की चाह रखने वाले भारतीयों की विडंबना है कि उनके सहोदर पाकिस्तान में अन्यायी, क्रूर अनाचारी तानाशाहों का राज्य है. वे आसुरी वृत्ति वाले मेरे उपर मिथ्यारोप कर मुझ पर सदा शंका करते हैं. तथा भारत की मुद्रा की नकल कर जाली मुद्रा का प्रसार करते हैं. वे हमारे आर्थिक राजनैतिक शत्रु हैं. सत्पुरुषों की रक्षा के लिये, जिनका नाश करने हेतु मैं कटिबद्ध हूँ. वर्तमान विमुद्रीकरण भी एक तरीका है, जिससे मैं उनका आर्थिक षड्यंत्र नष्ट कर रहा हूँ. जिसमें मुझे तुम्हारा सहयोग चाहिये.

अध्याय सत्रह, श्रद्धात्रयविभाग योगः हे भारत, मुझमें श्रद्धा रखते हुए तीन प्रकार से मेरी भक्ति की जा सकती है, फेसबुक ट्विटर आदि पर मेरी भक्ति करना सात्विक है, अपनी बड़ी मुद्रा को विमुद्रीकरण यज्ञ को अर्पित करना राजसिक है तथा विरोधियों का अपशब्दों द्वारा अभिषेक करना तामसिक भक्ति है. चुनाव जीतने के लिये माहौल बनाने के लिये सात्विक भक्ति श्रेष्ठ है, पर वर्तमान में चुनाव में विरोधी दलों को मात देने के लिये राजसिक भक्ति समय की मांग है. तामसिक भक्ति सदाबहार है, कलियुग में बेहद लोकप्रिय है.

अध्याय अठारह, मोक्षसंन्यास योगः हे भारत, तूने समस्त वेदों का सार जान लिया है, अब अपने अंतःकरण में अकर्ता भाव को प्राप्त होकर, समस्त सांसारिक पदार्थों में अनासक्त होकर, अपनी समस्त बड़ी राशि की मुद्रा को देश हित में विमुद्रीकरण हेतु समर्पित कर दे. इसके साथ ही दिये गये नियमों की पालना करते हुए अपने समस्त कर्तव्यों को छोड़कर मेरी विमुद्रीकरण योजना की लम्बी लम्बी कतारों को समर्पित हो. जो पुरुष इस सत्कर्म में दंडवत संलग्न होगा, वह सच्चिदानन्द को प्राप्त होगा जो इसमें नानुकुर करेगा वह आयकर का सम्मन दंडवत प्राप्त करेगा.

यह ज्ञान पाकर समस्त मध्यमवर्ग हर्षित होकर बैंक के बाहर भक्तिसंबद्ध पंक्तिबद्ध हो गया. इति श्री उपनिषद एवँ ब्रह्मविद्या योगशास्त्र रूपी अर्थगीता.

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