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बेटी का हक - भाभी का अधिकार

30 जुलाई 2022

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   यूँ तो ये एक आम घटना है, हमारे समाज की यह घर घर की सच्चाई है. या तो ननदें भाभी को खा जाती हैं या भाभी नन्द का जीना, घर में रहना मुश्किल कर देती है और ये सब तब जब सभी बेटियां होती हैं. ये एक आम चलन की बात है कि बेटियों को बोझ समझा जाता है हमारे इस रूढ़िवादी समाज में और दूसरे घर की बेटी जब अपनी ससुराल में आती है तो कहीं तो उसे दबाया जाता है, उसका शोषण किया जाता है और कहीं इसके ठीक विपरीत वह ससुरालवालों की ही सांसे छीनकर अपनी दुनिया रोशन करती है. 

      मंगलवार 26 जुलाई 2022 को मध्य प्रदेश के खंडवा जिले के कोटाघाट गांव में तीन सगी बहनों सोनू, सावित्री और ललिता ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली. तीनों के शव घर से करीब 70 फीट दूर नीम के पेड़ पर लटके हुए मिले थे। जावर पुलिस ने मुकदमा दर्ज कर जांच शुरू की। जांच के दौरान पुलिस फोन के आधार पर मामले की जांच कर रही थी। आत्महत्या से पहले तीनों बहनों ने अपनी बड़ी बहन चंपक से बात की। उसके बाद सोनू ने एक वाइस मैसेज भी जीजा दीपक के मोबाइल पर भेजा था। सोनू के मोबाइल की कॉल डिटेल्स और व्हाट्सएप मैसेज खंगाले गए और उससे यह पता चला कि भाभी से तीनों बहनों का विवाद चल रहा था। भाभी ने गेहूं पर ताला लगा दिया था, इस वजह से तीनों ने एक साथ फांसी लगा ली। भाभी न तो गेहूं देती थी और न ही खेत पर काम करने जाने देती थी, इससे वह परेशान थी। 

                प्रतिदिन इस तरह की घटनाएं हमारे सामाजिक ताने बाने की असलियत खोलती हैं और साफ दिखा देती हैं कि न एक बेटी जो जब तक बेटी रहती है बड़ी कमजोर दिखाई देती है लेकिन जैसे ही वह माँ, पत्नी, बुआ, नंद, सास, जेठानी, देवरानी या भाभी के रूप में आती है तो एकदम चरित्र से पलट जाती है, कहीं कहीं कमजोर और कहीं कहीं राक्षसी के रूप में वह अपने घर परिवार के सदस्यों के होश ही उड़ा देती है. ये घर घर की स्थिति दिखाई ही देती है कि जिस किसी का भी दांव पड़ जाता है वह अन्य पारिवारिक सदस्यों का खून पीने पर आमादा हो जाता है. 

            सारे जहान में बेटियों की तारीफ की जाती है परिवार - घर - गृहस्थी को जोड़कर बनाने के लिए, सभी सदस्यों को साथ जोड़कर चलने के लिए, फिर ये क्या है? एक बेटी भाभी बनते ही राक्षसी कैसे हो गई? कैसे अपनी तीन - तीन ननदों को खा गई? क्या इन बेटियों का अपने घर के गेंहू पर कोई हक नहीं था? 

           संयुक्त परिवार हमारे समाज में पहले होते थे और वे खतम हुए हैं इसी कारण से कि उसमें परिवार के एक सदस्य पर ही सबकी जिम्मेदारी पड़ जाती थी और बाकी सदस्य कुछ न करते हुए भी परिवार की समस्त संपत्ति, समस्त सुविधाओं के अधिकारी होते थे. आज इस तरह की घटनाओं से लगता है कि संयुक्त परिवार का टूटना बेहतर ही रहा, अगर इस परिवार मे भी बेटियों को पहले ही उनका हक दे अलग कर दिया जाता तो तीन तीन बेटियों को यूँ असमय काल का ग्रास नहीं बनना पड़ता. 

शालिनी कौशिक 

     एडवोकेट 

        


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रचनाएँ
AdvocateShalini2
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शालिनी कौशिक एडवोकेट को लेखन से आत्मसंतुष्टि मिलती है और ये पेज इस भाव को ही अभिव्यक्त करता है.
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