बुराई का प्रतीक रावण , जो अपनी नाभि में अमृत होने के कारण अमर है. श्रीराम भी रावण के शरीर को ही खत्म कर पाए थे, परन्तु उसकी आत्मा को नहीं मिटा सके, क्योंकि आत्मा तो अजर-अमर है. वहीं आत्मा समाज में विचरण कर है, और अपने मन माफिक शरीर को देखते ही उसको आशिया बनाकर घिनौने कृत्य शुरू देती है. जिनको देखकर इंसान तो इंसान भगवान श्रीराम को भी रोना आ जाए. रावण में लाखों बुराई थी, पर इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि वह महापंडित भी था. महापंडित रावण ने श्रीराम के बनाए पुल का उदघाटन पूजन करके इस बात को साबित किया था. रावण जहां दुष्ट और पापी था, वहीं उसमें शिष्टाचार और ऊंचे आदर्श वाली मर्यादाएं भी थीं. राम के वियोग में दु:खी सीता से रावण ने कहा है, हे सीते! यदि तुम मेरे प्रति काम-भाव नहीं रखती तो मैं तुझे स्पर्श नहीं कर सकता. लेकिन यह अच्छाइयां रावण के शरीर के साथ ही जल गई थी. रावण ने अपनी बहन के अपमान का बदला लेने के लिए सीता का अपहरण किया था. उस प्रकरण में रावण की आत्मा को शरीर से हाथ धोना पड़ा था. शरीर तो माटी का पुतला होता है और रावण के पुतले को हर वर्ष आग की लपटों के बीच देखकर बुराई पर अच्छाई की जीत का इजहार करते है. कभी सोचा है कि उस आत्मा के बारे में, जिसको श्रीराम भी नहीं मार पाए, आज वह कहां और किस-किस के शरीर में वास कर रही है. रावण के पुतलों को जलाकर क्या सच में बुराई पर जीत हासिल कर ली. किसी भी समय कही पर भी अखबार, टीवी देखो कुकृत्य देखने-सुनने को मिल जाएगे. क्योंकि वह आत्मा सर्वश्रेष्ठ शरीर छोडने के बाद से आज इंसानों के शरीर में वास करते हुए कृत्यों को अंजाम दे रही है. अपहरण, बलात्कार, हत्या व अपराधिक घटनाएं यह साबित करने के लिए कम नहीं है. वह आत्मा अब भी हमारे समाज में मौजूद है, एक शरीर खोकर, न जाने उसने कितने शरीरों को अपना घर बना लिया है. फिर श्रीराम भी आज हमारे बीच मौजूद नहीं है, नहीं तो वह भी इस आत्मा को शरीरों से अलग करते-करते थक जाते और आखिर में यही कहते, हे राम!