दुष्यंत कुमार
दुष्यंत कुमार हिंदी कवि एवं गजलकार थे. भारत के महान गजलकारों में उनका नाम सबसे ऊपर आता है. हिंदी गजलकार के रूप में जो लोकप्रियता दुष्यंत कुमार को मिली वो दशकों में शायद ही किसी को मिली हो. वह एक कालजयी कवि थे और ऐसे कवि समय काल मे परिवर्तन होने के बाद भी प्रासंगिक रहते हैं. इनकी कविता एवं गज़ल के स्वर आज तक संसद से सड़क तक गुंजते है. इन्होंने हिंदी साहित्य में काव्य, गीत, गज़ल, कविता, आदि अनेक विधाओं में लेखन किया. लेकिन उन्हें गज़ल में अत्यंत लोकप्रियता प्राप्त हुई. वास्तविक जन्मतिथि 27 सितंबर 1931 है. इनका जन्म उत्तर प्रदेश के बिजनौर जनपद की तहसील नजीबाबाद के ग्राम राजपुर नवादा में हुआ. इनका पूरा नाम दुष्यंत कुमार त्यागी था. उनकी प्रारम्भिक शिक्षा नहटौर, जनपद-बिजनौर में हुई. उन्होंने हाई स्कूल की परीक्षा एन.एस.एम. इन्टर कॉलेज चन्दौसी, मुरादाबाद से उत्तीर्ण की. उच्च शिक्षा के लिए 1954 में उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिन्दी में एम.ए.की डिग्री प्राप्त की. अपनी कॉलेज की शिक्षा के समय 1949 में उनका विवाह राजेश्वरी से हुआ. वास्तविक जीवन में दुष्यंत बहुत, सहज, सरल और मनमौजी व्यक्ति थे.
दुष्यंत कुमार की प्रसिद्ध रचनाएँ
दुष्यंत की इस कविता का मिजाज बदलाव के पक्ष में है। वह राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्था में बदलाव चाहता है, तभी तो वह दरख्त के नीचे साये में भी धूप लगने की बात करता है और वहाँ से उम्र भर के लिए कहीं और चलने को कहता है। वह तो पत्थर दिल लोगों को पिघलाने में
दुष्यंत कुमार की प्रसिद्ध रचनाएँ
दुष्यंत की इस कविता का मिजाज बदलाव के पक्ष में है। वह राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्था में बदलाव चाहता है, तभी तो वह दरख्त के नीचे साये में भी धूप लगने की बात करता है और वहाँ से उम्र भर के लिए कहीं और चलने को कहता है। वह तो पत्थर दिल लोगों को पिघलाने में
सूर्य का स्वागत
दुष्यंत कुमार का जन्म उत्तर प्रदेश में बिजनौर जनपद की तहसील नजीबाबाद के ग्राम राजपुर नवादा में हुआ था। जिस समय दुष्यंत कुमार ने साहित्य की दुनिया में अपने कदम रखे उस समय भोपाल के दो प्रगतिशील शायरों ताज भोपाली तथा क़ैफ़ भोपाली का ग़ज़लों की दुनिया प
सूर्य का स्वागत
दुष्यंत कुमार का जन्म उत्तर प्रदेश में बिजनौर जनपद की तहसील नजीबाबाद के ग्राम राजपुर नवादा में हुआ था। जिस समय दुष्यंत कुमार ने साहित्य की दुनिया में अपने कदम रखे उस समय भोपाल के दो प्रगतिशील शायरों ताज भोपाली तथा क़ैफ़ भोपाली का ग़ज़लों की दुनिया प
साये में धूप
‘साये में धूप’ या दुष्यंत कुमार आज आधुनिक हिन्दी ग़ज़ल में पर्याय सरीखे हो चुके हैं। कालजयी कृति, सौ पचास साल बाद बने या लेखक रचयिता के जीवनकाल में ही बहुचर्चित हो जाये, इसका निर्णय पाठक-समाज करता है। मंच से ओझल हो रही हिन्दी कविता अथवा गीत विधा से आग
साये में धूप
‘साये में धूप’ या दुष्यंत कुमार आज आधुनिक हिन्दी ग़ज़ल में पर्याय सरीखे हो चुके हैं। कालजयी कृति, सौ पचास साल बाद बने या लेखक रचयिता के जीवनकाल में ही बहुचर्चित हो जाये, इसका निर्णय पाठक-समाज करता है। मंच से ओझल हो रही हिन्दी कविता अथवा गीत विधा से आग