एक ग़जल
टूटना कोई भरम अच्छा नहीं
भूलकर भी करना ना वादा कोई
जिस्म की चौखट पे ही सजदे हुए
दिल को मेरे कब यहाँ समझा कोई
घुस रहे हैं बिल में सीधे सांप जो
वक्र हैं, इनमें नहीं सीधा कोई
उनको देखो तो लहर उठती है यूँ
फूटता हो दिल से इक सोता कोई
यार,महफ़िल,मयकदा,साकी,सबा
काश मेरे दिल को भी छूता कोई
आर्यन जैसा जो पीता है गरद
देखना निकलेगा इकलौता कोई
जिसपे सबने अपनी बातें थोप दीं
आदमी था स्लेट सा सादा कोई
हमको ले डूबी हमारी सादगी
हाय इतना भी ना हो अच्छा कोई
जन्मदिन बच्चे का है ,महंगाई भी
झट खिलौना ढूंढ़िए सस्ता कोई
बैठा है गुमसुम सा कोने में महेश
थाह उसके मन की कब पाता कोई
महेश दुबे