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कविया

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बाँसों का झुरमुट संध्या का झुटपुट हैं चहक रहीं चिड़ियाँ टी-वी-टी--टुट-टुट! वे ढाल ढाल कर उर अपने हैं बरसा रहीं मधुर सपने श्रम-जर्जर विधुर चराचर पर, गा गीत स्नेह-वेदना सने! ये नाप रहे निज घर का

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मैं प्राण हूँयत्र हूँतत्र हूँमैं सर्वत्र हूँमानो तोतुम्हारा खसमखास,नहीं मानो तो,न कोई आकार हूँचाहो तो आस पास,न चाहो तो भी साथ हूँनहीं कोई और हैमुझसे नजदीकखींची हुई है हमारे बीच एक लीकबता मैं आखिर कौन हूँ?हाँ, मैं तेरे प्राण हूँतभी देख पाता हूँकहा सुन पाता हूँभाव व्यक्त करता हूँकर्म सभी करता हूँमैं प

देखते थे जिन्हें रोज़ उनकी नज़रें कभी हम पर रुकी नहीं करते थे जिससे रोज़मन ही मन बातें आमने सामने बैठ कर कभी उनसे बात हो ना पायी माँगा हर दुआ में की उनकी दुआ में हम आयेंदुआ वो क़बूल हो ना पायी २१ अगस्त २०१७फ़्रैंकफ़र्ट

“दोहा” देश प्रदेश विदेश में, जाकर आओ घूम स्वच्छ नीति भाषा लिए, वाह वाह कर बूम॥-1 माँ भारती धरें जहाँ, निश्चली आपन पक्ष दुनियाँ के सरताज भी, सुनते खोल के अक्ष॥-2 दिखी दशा है पाक की, हिलते जिसके बैन चेहरे चढ़ी हवाइयाँ, झुके हुये थे नैन॥-

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