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बोध

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अपनी ही चेतना के खंडित एवं विकृत बोधत्व के कारण, इंसान की नीयति कभी भी उसको वह मुकाम नहीं हासिल करने देती, जिसका व हकदार भले ही न हो, पर उसमें उसे पाने का माद्दा होता है। इसलिए कि सीमित व अविकसित बोधत्व उसे वह देखने ही नहीं देती, जो वहां होता है। तुर्रा यह कि जो मिट्टी व कौड़ी वह उठा लाता है, उसे बड़े

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