दस्तकफिर वही शोर .....बाहर भी और अंदर भी ....!अंतः करण में गूँजते शब्द दस्तक देने लगे ।विद्यालय में नए सत्र के कार्यों के लिए सबके नाम घोषित किए जा रहे थे ।अध्यापकों की भीड़ में बैठी …..कान अपने नाम को सुनने को आतुर थे ,मगर..... नाम, कहीं नहीं.....!क्यों...? बहुत से सवाल मन में आ रहे थे । आस -पास बह
महिलाओं में गर्भावस्था समय के तनावग्रस्त
तुम कभी कुछ नहीं कर सकते,क्या किया है आज तक !तुम्हारे बच्चों के खर्चे भी हम उठाएं...क्या सुख दिए है,अपने बूढ़े मां-बाप को..!छोटे को देखो...सीखो उससेकुछ..?ठाकुर साहब अपने बेटे पर बेतहाशा चिल्ला रहे थे।ये उनकीआदत में शुमार था...जब भी उनका बड़ा बेटा घर में घुसताउनकी चिल्ल-पों चालू हो जाती...जितना बेइज्
बॉलीवुड विश्व की सब बड़ी फिल्म इंडस्ट्री है, और ये एक ऐसा स्तर हैं, जो हमारे समाज और उनके लोगों को काफी हद तक प्रभावित कर सकता है। हर शनि और रविवार को मल्टीप्लेक्स की टिकट विक्रय इसका प्रमाण है। हमारी युवा पीढ़ी बॉलीवुड के सितारों से प्रभावित है, यहाँ तक की बुज़ुर्ग और बच्चे भी। बड़ी संख्या में दर्शकों
जानू ! क्या तुम नही चाहते, मैं पार्टी में सबसे अलग दिखूं ! मेरी सारी ड्रेसेस ओल्ड फैशन की हो गयीं हैं, तो प्लीज़! मेरे लिए नई ड्रेस ला दो। शीतल ने राहुल से प्यार भरे अंदाज़ में कहा। ऐसा अक्सर होता था, जब भी शीतल को अपनी कोई बात मनवानी होती, तो वह किसी न किसी तरह से अपनी बात मनवा कर ही रहती, राहुल ज
हैरानी की बात है, ऐसे युग में, जहां सेक्स के बारे में हर जगह से हमें पूरी जानकारी मिल रही है, ताकि इस विषय पर कोई भी अज्ञात ना रहे, हमारे रोज़ के जीवन में इस स्वाभाविक प्राकृतिक हरकत का घटाव नज़र आ रहा है।सांख्यिकीय रूप से जांच करने पर पता चलता है, की 16-44 वर्षीय लोगों में, महिलाएं महीने में ४.५ बा
क्या आपने कभी महसूस किया है कि उदास धुनों या संगीत को सुनना आपको अच्छा क्यों लगता है?अरे भई, आप अकेले नहीं हैं! अधिकतर लोग हैं, जिन्हे उदास धुनों को सुनना अच्छा लगता है। लेकिन इन धुनों को सुनकर वे दुखी नही होते इतना तो पक्का है।ऐसा क्यों होता है?जब आप दुखी या उदास होते हैं, तो आपको भूख नही लगती और
तारकेश कुमार ओझाबाजारवाद के मौजूदा दौर में आए तो मानसिक अत्याचार अथवा उत्पीड़न यानी र्टार्चिंग या फिर थोड़े ठेठ अंदाज में कहें तो किसी का खून पीना... भी एक कला का रूप ले चुकी है। आम - अादमी के जीवन में इस कला में पारंगत कलाकार कदम - कदम पर खड़े नजर आते हैं। एक आम भारतीय की मजबूरी के तहत कस्बे से महा