प्रणाम सिस्टर, हम किसी की मदद करे और उनसे इस तरह मदद की अपेक्षा न रखे क्योकि उसके सीडी में अलग अंकित है जो आपके सीडी में था आपने चलाया उसके सीडी है वो वैसा ही चलाएगा। याने कि न
प्रणाम गुरुदेव, हाँ, मेरा पेट भरा है तो सम्भावना है कि मैं दूसरो को खिलाऊँगा या किसी का भोजन तो नही छीन सकता। संतुष्टि वह विरामावास्था है जिसमे परिधि पर संसार तो चलता है केन्द
माडी गुजराती का शब्द है, माडी का हिन्दी में अर्थ होता है माता। माता को ही माडी कहते हैं।सतयुग की समाप्ति के समय दैत्य अमरूवा महान प्रतापी मायावी और वरदानी था। उसके अत्याचार से सृष्टि में हाहाकार मच गय
सुबह की शुरूवात जैसी होती है बाकि दिन भी उसी अनुसार बीतता है ऐसे में जरूरी है कि सुबह को बेहतर बनाया जाया .. शास्त्रों में सुबह के समय उठते ही कुछ विशेष कार्य करने की सलाह ही दी गई है। मान्यता है कि अ
अन्नपूर्णा देवी हिन्दू धर्म में मान्य देवी-देवताओं में विशेष रूप से पूजनीय हैं। इन्हें माँ जगदम्बा का ही एक रूप माना गया है, जिनसे सम्पूर्ण विश्व का संचालन होता है। इन्हीं जगदम्बा के अन्नपूर्णा स्वरूप
महामृत्युंजय मंत्र पौराणिक महात्म्य एवं विधि〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰महामृत्युंजय मंत्र के जप व उपासना कई तरीके से होती है। काम्य उपासना के रूप में भी इस मंत्र का जप किया जाता है। जप के लिए अलग-अलग मंत्रों क
हे निलंबरा हे निलंबरा मतेस्वरी मतेस्वरी हे श्मशान निवशनी हे भभूतनि हे मृत्यु शय्या विराजनी हे अघोरणी हे निलंबरा मतेस्वरी हे मुक्तकेशी एकजटा हे निलंबरा हे खड़क धरिणी हे मारणी हे निलंबरा हे निलंबरा म
हे रक्तदन्तिका महादेवी नमस्तुते प्रचिती नाशनी सूर्यकोटि महाबला हे भक्षणि दानव दामानि हे रक्तम्भरी रक्तदन्तिके नमस्तुते घोरकेशा अंधकेशा भयंकरी हे श्रंगलिनी शक्तिस्वरूपा माहेश्वरी हे सहस्त्राणि खण्ड
बगलामुखी साधना में महाविद्याओं तथा उनकी उपासना पद्धतियों के बारे में संहिताओं, पुराणों तथा तंत्र ग्रंथों में बहुत कुछ दिया गया है। बगलामुखी देवी की गणना दस महाविद्याओं में है तथा संयम-नियमपूर्वक बगलाम
श्री गंगेश्वराष्टकम् आचारः प्रथमैव धर्मगदितो वर्णाश्रमाणांपरः। कर्तव्यं मनुजैर्यदिष्टमनघं तत्सत्परं बोधितम्।। येनापायि विशुद्धवेदखचितं ज्ञानं परं निर्मलम्। वन्देऽहं यतिराज राजमुकुटं गंगेश्वरं सद्गुरुम्।।1।। यैर्नष्टं कलिकाल कुण्ठितधियां मोहान्धकारं घनं।व्याख्यानैर्व
आहार की व्याख्याए कार्य व महत्व निरोगत्व व आहार का परस्पर संबंध ध्यान में आने के बाद आहार का अर्थ और उसका महत्व देखते हैं। चरकसंहिता में निरोगत्व यह नियोजित आहार, शांत निद्रा एवं संयम इन तीन बिंदुओं पर आधारित है ऐसा कहा गया है। हम जब आहार का विचार करते हैं तब निरोगत्व के केवल एक ही अंग को देख