मुल्ला नसरुद्दीन के किस्सों में एक तरफ तो समूची शैली में शासकों द्वारा जनता के शोषण-उत्पीड़न और अधिकारियों की मूर्खता, लालच व बेईमानियों पर तीखे प्रहार हैं, तो दूसरी तरफ सीधे-सादे किसान, मज़दूर और आम जनता की ज़िन्दगी की कशमकश है, साथ ही निकम्मेपन, स्वार्थ, घमंड व अंधविश्वासों पर चोट भी।
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