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नए स्कूल की नई समस्याएं

14 सितम्बर 2022

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अक्सर देखा जाता है कि जब बच्चे पहली बार स्कूल जाते हैं तब वे बहुत घबराए हुए से होते हैं। नई जगह, नए लोगों के बीच वे खुद को सुरक्षित महसूस नहीं कर पाते। इन्हीं सब चिंताओं का सामना करने के लिए उन्हें अपने माता पिता के सहारे की आवश्यकता होती है क्योंकि एक वे ही हैं जो अपने बच्चे को उसके उज्जवल भविष्य की ओर आईना दिखा सकते हैं।

तो आइए आज हम बात करते हैं उस समय के बारे में जब आपका बच्चा पहली बार स्कूल जाता है और वहाँ वह किन परेशानियों से रूबरू होता है।

1. बच्चे की बात को ध्यान से सुने : उसकी चिंताओं और व्यथाओं के बारे में बात करने के लिए समय निकालें। अक्सर लोग नींद आने से पहले अपनी परेशानियाँ खुलकर बताना आसान समझते हैं। उसे उन चीजों के बारे में सोचने के लिए कहें जो उसे उदास, या क्रोधित करती हैं, या उसके पेट में असहजता महसूस करवाती हैं।

2. सहानुभूति और समर्थन: वे जो कुछ भी आपको बताते है, उनकी भावनाओं को मान्य करें। हो सकता है कि उनकी कुछ बातें आपको रोचक न लगे या अटपटी लगे लेकिन उन्हें ऐसा न लगने दें कि आपको उनकी बातों में आपको रुचि नहीं है। बच्चों को समझाते समय किसी भी नकारात्मक शब्द जैसे "मूर्ख मत बनो" या "तुमसे कोई काम नहीं होता" मत कहो। इस तरह की भाषा का प्रयोग उनके लिए मददगार साबित होने की बजाय बच्चे में निराशा भर देगी। आपको उनका विश्वास जीतकर उन्हें ये एहसास दिलाना होगा कि आप ही उनके लिए सही मार्गदर्शक हैं और उन्हें समझते हैं।

 3. उन्हें सहज महसूस करवाएं: बच्चों के मन से परेशानी वाली बातें हटाने के लिए किसी भी अच्छी और रोचक गतिविधियों का सहारा लें या फिर उनके साथ बैठकर उनके पसंद के किसी मुद्दे पर विचार-मंथन करें। उनसे कहे कि स्कूल में अपने शिक्षक के साथ भी अपनी चिंताओं पर चर्चा करें (याद रखें, वे चिंतित बच्चों से निपटने में बहुत अनुभवी हैं)।

4. सकारात्मक बातों पर ध्यान केंद्रित करवाएं : उन्हें स्कूल के बारे में रोचक बातें बताएं जिससे स्कूल के प्रति उनके अंदर डर न बैठे।  स्कूल में उन चीजों के बारे में बात करने में कुछ समय बिताएं जो उन्हें पसंद हैं, या इन बिंदुओं पर उत्साह और खुशी के निर्माण पर ध्यान केंद्रित करे।

इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए अपने बच्चे को उसके जगमगाते भविष्य की ओर प्रेरित करें।

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कृतिका शर्मा की डायरी
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एक बच्चे का माता-पिता होना अपने आप में एक बेहद खास अनुभव है। जैसे ही एक औरत गर्भ धारण करती है वैसे ही परवरिश की यात्रा शुरू हो जाती हैं। आपके परिवार में भी आपकी नानी,दादी, मां आदि जैसे कई अनुभवी लोग होंगे जो आपको कदम कदम पर सलाह देते होंगे। काफी हद तक ये सलाहें काम भी आती हैं लेकिन आजकल पारंपरिक सलाहों की जगह मनोवैज्ञानिक सलाहों को ज्यादा महत्व दिया जाने लगा है। ऐसी ही कुछ खास अनुभव द्वारा हमने ये किताब लिखी है। आशा करते हैं कि हर एक उपन्यास आपके एवं आपके बच्चे के सही विकास में मददगार सिद्ध हो ।

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