पो कूहूँ... थमा थमा सा है।
शाम को सजना रात दो पथ पर भागना सुबह का थकना सब रूका रुका सा है।
आगे से पकड़ना पीछे से पकड़ना बीच में आराम करना एक रात के लिए।
उसका चलना भागना इतराना कूहक़ी मारना ठिठक कर चलना उसकी आदत है।
सदियों से आजाद थी कभी न रुकी पर ना जाने क्यों उन्ही रास्तो में जमी जमी सी है।
उसके ऊपर सोना कूदना चढ़ना उतरना पकड़ना उसकी आवाज एक सकून देती है।
उसकी इन हरक़तों को देख वह पसन्द आ गई अब तो लोग उसकी बोली लगाने लगे।
अब इसे परी हरी दुल्हन की तरह सजा कर सुबह शाम दोपहर रात दौड़ाया करेंगे।
अब तो लोग चंद घंटों की खुशियों के लिए अपनी जेब ढीली किया करेंगे।
अंदर मुलायम चद्दरें तकियाँ होंगी मनोरंजन के लिए टीवी होगी।
इतना ही नही तारो ताजा करने के लिए अंदर अदाकारा होंगी हाय हैलो करेंगी।
पर ना जाने क्यों वह अभी हमसे रूठी रूठी सी है मिलने का सिंग्नल ही नही देती है।
पहले तो बिना सिंग्नल मांगे ही भागता था जहाँ भी मिलती उसके ऊपर चढ़ लेता था।
अब डर लगने सा लगा है जब से उसकी बोली लगने लगी है निजीकरण के हाथों में गई है।
अब तो टाईम पैसा दोनों मांगती है। कोरोना वायरस से बचने के लिए सेनेटाइजर भी मांगती है।