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संजीव वर्मा सलिल के बारे में

कवि, लेखक, समीक्षक, छन्दशास्त्री, भाषाविद, अभियंता, वकील, पत्रकार, पर्यावरण कार्यकर्त्ता

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संजीव वर्मा सलिल की पुस्तकें

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साहित्य की सभी विधाओं में चिंतनपरक रचनाएँ.

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संजीव वर्मा सलिल के लेख

पुस्तक

6 अक्टूबर 2016
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नवरात्रि और सप्तश्लोकी दुर्गा स्तोत्र हिंदी काव्यानुवाद सहित) * नवरात्रि पर्व में मां दुर्गा की आराधना हेतु नौ दिनों तक व्रत किया जाता है। रात्रि में गरबा व डांडिया रास कर शक्ति की उपासना की जाती है। विशेष काम

पुस्तक समीक्षा: चीखती टिटहरी हाँफता अलाव, नवगीत संग्रह -डॉ. रामसनेहीलाल शर्मा 'यायावर

10 अगस्त 2015
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कृति-चर्चा:चीखती टिटहरी हाँफता अलाव : नवगीत का अनूठा रचावसंजीव*[कृति-विवरण: चीखती टिटहरी हाँफता अलाव, नवगीत संग्रह, डॉ. रामसनेहीलाल शर्मा 'यायावर', आकार डिमाई, आवरण बहुरंगी सजिल्द जैकेट सहित, पृष्ठ १३१, १८०/-, वर्ष २०११, अयन प्रकाशन महरौली नई दिल्ली, नवगीतकार संपर्क: ८६ तिलक नगर, बाई पास मार्ग फीरोज

नवगीत: संसद की दीवार पर

10 अगस्त 2015
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संजीव *संसद की दीवार पर दलबन्दी की धूल राजनीति की पौध पर अहंकार के शूल *राष्ट्रीय सरकार की है सचमुच दरकार स्वार्थ नदी में लोभ की नाव बिना पतवारहिचकोले कहती विवश नाव दूर है कूल लोकतंत्र की हिलाते हाय! पहरुए चूल *गोली खा, सिर कटाकर तोड़े थे कानून क्या सोचा था लोक का तंत्र करेगा खून?जनप्रतिनिधि करते रहे

मुक्तिका: हँसो भी

10 अगस्त 2015
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मुक्तिका संजीव *मापनी: १२२११ -१२२११ -१२११ मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन*करेंगे कुछ न तो कुदरत न दे कुछ किसी की कब नहीं हसरत रही कुछहँसो भी, हँस पड़ो कसरत नहीं यह हमीं हैं खुद खुदा, किस्मत नहीं कुछतजेंगे हम नहीं ये दल न संसद करेंगे नित तमाशे, गम नहीं कुछबनेगे हम नहीं शंकर, न कंकर न सोये हम, न सोओ तुम, जगो क

दुनिया रंग रँगीली

10 अगस्त 2015
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नवगीत:संजीव *दुनिया रंग रँगीली बाबा दुनिया रंग रँगीली रे!*धर्म हुआ व्यापार है नेता रँगा सियार है साध्वी करती नौटंकी सेठ बना बटमार है मैया छैल-छबीलीबाबा दागी गंज-पतीली रे!* संसद में तकरार है झूठा हर इकरार है नित बढ़ते अपराध यहाँ पुलिस भ्रष्ट-लाचार हैनैतिकता है ढीली बाबा विधि-माचिस है सीली रे!* टूट रहा

नवगीत : संजीव

10 अगस्त 2015
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नवगीत :संजीव * न भूले हम तुम्हें फिर याद कैसे तुम्हारी हम करें कोई बताये?*कहो क्या खुद को जानें देख दर्पण?कहो क्या खुद को कर दें भोग अर्पण?कहो क्या खुद में ही संसार देखें?अगर हाँ तो न क्यों हो खुद का तर्पण?न करते भूलकर हम याद उसकी कहे बिन सुख सभी जिसने जुटाएन भूले हम तुम्हें फिर याद कैसे तुम्हारी हम

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