कोई कुछ भी कहे मगर सोशल मीडिया ने समाज में उथल पुथल मचा रखी है , विश्वास नहीं होता तो इनसे पूछिए ....
१) पत्रकार और मीडिया - ख़बरों के बाजार में इनकी अकेली दुकान थी जिसमे झूठ मनमर्जी कीमत पर भी बिक जाता था ! अब ये दुकान बंद होने के कगार पर है !
२)लेखक और लेखन - विशेष कर हिन्दी में अब तक लेखन के नाम पर अचरा कचरा बासां परोसा जाता रहा था ! पाठक इतना परेशान था की उसने पढ़ना ही छोड़ रखा था ! अब एक से एक बेहतरीन मौलिक लेखकों का जन्म हुआ है और वो खूब लिखे और पढ़े जा रहे हैं !
३)बुद्धिजीवियों ,इतिहासकार से लेकर तथाकथित विद्वानो का तो वो हाल हुआ है की ना पूछो ! इन की जड़े तो आम आदमी ने पूछ पूछ कर इतनी खोद दी की जो नकली पेड़ इन लोगों ने गमलों में लगा रखा था वो सूखने के कगार पर है ! और धरती पर फिर से असली पेड़ उग आये हैं अब हर तरफ हरियाली है !
४) बोलने की आजादी - ये अधिकार अब तक कुछ खास लोगों के पास ही था ! मगर अब हरेक आदमी बोल सकता है ! असर ये हुआ की जिंदगी भर अंट शंट बोलने की आजादी वाले दूसरे की बोलने की आजादी देख कर परेशान हैं ! इतना की असहिष्णुता और इंटोलेरेंट होने का इल्जाम लगाने लगे हैं !
५) सम्पादकों की हेकड़ी तो पूरी तरह से खत्म , वर्ना १००० -५०० कॉपी समाचार पत्र -पत्रिका छापने वाले भी लेखकों का शोषण किस हद तक करते थे की खेत में काम करने वाले बंधुआ मजदूर को भी दया आ जाए ! अब वो भी खुल कर कहने लगे हैं की तू मेरी रचना छापता है तो छाप वर्ना फेसबुक आदि पर हजारों पढ़ने के लिए तैयार बैठे हैं !
६) पैसा कमाने के पारम्परिक धंदे में भी एक क्रांतिकारी परिवर्तन आया है , अब कंप्यूटर पर बैठ कर बिल गेट्स से लेकर मार्क ज़ुकेरबर्ग बनने की सम्भावना से इंकार नहीं किया जा सकता ! परिणाम ये हुआ की पीढ़ियों से व्यापार करने वाले की जगह आप एक ही झटके में दुनिया के रहीसो में नाम दर्ज करा सकते हैं !
७) अकेलापन - ये आधुनिक जीवन की समस्या है तो इसका समाधान भी आधुनिक विज्ञान ने दिया ! यहाँ लोगों को अपने सुख दुःख बांटने का जरिया मिला , पुराने दोस्त मिले तो नए बने और यह एक तरह का नया परिवार -समाज बन गया !
उपरोक्त १) से लेकर ५) बिंदुओं से तो सही मायने में प्रजा ने प्रजातंत्र का स्वाद चखा ! सवाल पूछने का मौका मिला ! तर्क और बहस करने का एक प्लेटफॉर्म !इससे कईओं का कई क्षेत्र में एकाधिकार समाप्त हुआ ! राजनीति में वंशवाद पर कुछ हद तक रोक लगी ! राज परिवार के गुलामो और उनके दरबारियों के चेहरे से नकाब उतरे !
बौद्धिक क्षेत्र में कब्जा जमाये वामपंथ को भी असली चुनौती यहीं से मिली और उनका वर्चस्व समाप्त हुआ ! विशेषकर हिन्दी साहित्य में लाल सलाम की वो हिटलरशाही थी की एक स्वतंत्र लेखक घुटन में कई बार दम तोड़ देता था ! उथलपुथल इतनी तीव्र और तेज है की इसका अंदाज सिर्फ इस बात से लगाया जा सकता है की लोग अवार्ड वापस करने लगे !