तृतीय शक्ति चंद्रघंटा
शक्ति के रूप में विराजमान चंद्रघंटा मस्तक पर चंद्रमा को धारण किए हुए है। नवरात्र के तीसरे दिन इनकी पूजा-अर्चना भक्तों को जन्म-जन्मांतर के कष्टों से मुक्त कर इहलोक और परलोक में कल्याण प्रदान करती है। देवी स्वरूप चन्द्रघंटा बाघ की सवारी करती हैं। इनके दस हाथों में कमल, धनुष, बाण, कमंडल, तलवार, त्रिशूल और गढ़ा जैसी चीजें हैं। इनके कंठ में श्वेत पुष्प की माला और रत्नजाड़ित मुकुट शीर्ष पर विराजमान है। इनकी पूजा से बल और बुद्धि का विकास होता है। अपने दोनों हाथों से ये साधकों को चिरआयु, आरोग्य और सुख-संपदा का वरदान देती है।
आरती देवी चंद्रघंटा जी की...
जय मां चंद्रघंटा सुख धाम ।
पूर्ण कीजो मेरे काम।।
चंद्र समान तू शीतल दाती।
चंद्र तेज किरणों में समाती ।
क्रोध को शांत बनानेवाली ।
मीठे बोल सिखाने वाली।
मन की मालक मन भाती हो।
चंद्रघंटा तुम वरदाती हो ।
सुंदर भाव को लानेवाली।
हर संकट में बचानेवाली। हर बुधवार जो तुझे ध्याए ।
श्रद्धा सहित तो विनय सुनाए।
मूर्ति चंद्र आकार बनाए।
सन्मुख घी की जोत जलाए।
शीश झुका कहे मन की बाता।
पूर्ण आस करो जगतदाता ।
कांचीपुर स्थान तुम्हार ।
करनाटिका में मान तुम्हारा ।
नाम तेरा रटूं महारानी।
भक्त की रक्षा करो भवानी।