टूट चुका है कोना कोना
खंड हृदय के जोड़ सकूं ना
अरसा बीता सुख को छोड़े
मुस्कानों ने नाते तोड़े
सुबह बुझी सी बोझिल बेमन
निशा विषैली चीखे उर नम
पर तुम क्या ठुकराओगी नही
पीड़ा क्या तुम जाओगी नही!!
युग युग से हो साक्षी मन की
तुम हृदयों की पाती तन की
मुझमे क्या अवशेष तुम्हारा
नीर अश्रु का है सब खारा
बिंधे चुभे हैं कांटे कितने
कोई जगह न बाकी तन में
मृदु शीतल सुवास लाओगी नही
पीड़ा क्या तुम जाओगी नही!!!
अरमानों के मेले आते
उम्मीदों के राग सुनाते
साहस सीने से लग जाता
मंजिल से जुड़ जाता नाता
लेकिन तेरी बंदी बनकर
थम जाती हूँ रुँध थककर
पथ से अवरोध हटाओगी नही
पीड़ा क्या तुम जाओगी नही!!
बड़े धैर्य से तूने पाला
नित्य निरंतर जपती माला
इष्ट नही हैं सुनने वाले
आँचल में माँ मुझे छुपा ले
व्यर्थ हुए हैं सारे करतब
घात लगाए बैठे हैं सब
दुर्बलता का श्राप मिटाओगी नही
पीड़ा क्या तुम जाओगी नही !!
विधना का संदेश सुना दे
अंतिम तट पर मुझको ला दे
नियति नीति कर्म प्रबल की
दृष्टि ज्ञान की दे तर्पण की
अपराजिता अनंत असीमा
सत चित रूप प्रबुद्ध प्रवीना
मुझसे मेरी भेंट कराओगी नही
पीड़ा क्या तुम जाओगी नही।। .
..........देवेंद्र प्रताप वर्मा"विनीत"