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दिल पर पत्थर रखकर मुंह पर मेकअप कर लिया

8 फरवरी 2017

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व्यंग दिल पर पत्थर रखकर मुंह पर मेकअप कर लिया विवेक रंजन श्रीवास्तव ओ बी ११ , विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर जबलपुर ९४२५८०६२५२ मोबाइल पर एक से बात करते हुये झल्लाहट की सारी हदें पार करने के बाद भी , सारी मृदुता के साथ त्वरित ही पुनः अगली काल पर हममें से किसने बातें नही की हैं ? डाक्टरो के लिये यह अनुसंधान का सबजेक्ट बन सकता है कि इस सडन स्विचआफ स्विच आन बिहेवियर के चलते ही शायद आज लो ब्लड प्रेशर और हाई ब्लड प्रेशर की बीमारी तो नही बढ़ रही ? बास के कमरे में डांट खाकर बाहर निकलते हुये साहब के स्टेनो की तरफ झूठी मुस्कराहट उछालते हुये कभी न कभी कौन नही निकला है ? कभी न कभी बीबी से तनातनी के बाद भी मुस्कारहट ओढ़ कर आफिस में कितने लोग नही गये हैं ? मतलब दिल पर पत्थर रखकर मुंह पर मेकअप करने में हम सब माहिर हैं . हम तो अपने सैंया जी से हीरोईन की तरह ब्रेकअप भी नही कर पाते , बस घुटन के साथ नकली मुस्कराहट का मेकअप किये हुये फरेब के रिश्ते निभाते चले जाने पर विवश हैं .अमिधा में सीधी बात कहने के बजाय लक्षणा और व्यंजना में कहते हुये हम दिल पर पत्थर रखकर मुंह पर मेकअप कर दांत निकालते , हँसने का स्वांग करते खुश रहने का नाटक करते रहते हैं . बचपन में बडी मधुरता होती है, ढेरों गलतियां माफ होती है, सब की संवेदना साथ होती है, ’’अरे क्या हुआ बच्चा है’’ ! तभी तो भगवान कृष्ण ने कन्हैया के अपने बाल रूप में खूब माखन चुरा चुरा कर खाया, गोपियों के साथ छेडखानी की, कंकडी से निशाना साधकर मटकियां तोडीं, पर बेदाग बने रहे. बच्चे किसी के भी हों बडे प्यारे लगते है, चूहे का नटखट, बडे- बडे कान वाला बच्चा हो या कुत्ते का पिल्ला प्यारा ही लगता है, शेर के बच्चे से डर नहीं लगता, और सुअर के बच्चे से धिन नहीं लगती मैने भी बचपन में खूब बदमाशियां की है, बहनों की चोटी खींची है, फ्रिज में कागज के पुडे में रखे अंगूर, एक - एक कर चट कर डाले है, और पुडा ज्यों का त्यों रखा रह जाता, जब मां पुडा खोलती तो उन्हें सिर्फ डंठल ही मिलते. छोटी बडी गलती पर जब भी पिटाई की नौबत आती तो, उई मम्मी मर गया की गुहार पर, मां का प्यार फूट पडता ओैर मैं बच निकलता. स्कूल पहॅंचता, जब दोस्तों की कापियां देखता तो याद आती कि मैने तो होमवर्क किया ही नहीं है, स्वगत की अस्फुट आवाज निकल पडती मर गये, दिल पर पत्थर रखकर मुंह पर मेकअप कर तैयार हो जाता नकली कांफीडेंस के साथ और राह निकल ही आती जीने की . बचपन बीत गया नौकरी लग गई, शादी हो गई, बच्चे हो गये पर यह मन मारने की परम्परा बाकायदा कायम है. दिन में कई - कई बार मरना जैसे नियति बन गई है. जब दिन भर आफिस मे सिर खपाने के बाद, घर लौटने को होता हॅू , तो घर में घुसते घुसते याद आता है कि सुबह जाते वक्त बीबी, बच्चों ने क्या फरमाईश की थी. कोई नया बहाना बनाता हॅू और ’मर गये’ का स्वगत गान करता हॅू. आफिस में वर्क लोड से मीटिंग की तारीख सिर पर आती है, तब ’मर गये’ का नारा लगाता हॅू और इससे इतनी उर्जा मिलती है कि घण्टों का काम मिनटों मे निपट जाता है. जब साली साहिबा के फोन से याद आता है कि आज मेरी शादी की सालगिरह है या बीबी का बर्थ डे, तो अपनी याददाशत की कमजोरी पर ’मर गये’ के सिवा और कोई तात्कालिक प्रतिक्रिया होती ही नहीं. परमात्मा की कृपा है कि दिन में कई कई बार मरने के बाद भी’ ’वन पीस’ में हट्टा कट्टा जिंदा हूं और सबसे बडी बात तो यह है कि पूरी आत्मा साबुत है. वह कभी नहीं मरी, न ही मैने उसे कभी मारा वरना रोजी, रोटी, नाम,काम के चक्कर में ढेरों लोगों को कुछ बोलते, कुछ सोचते, और कुछ अलग ही करते हुये ही जी रहे हैं . मन मारता हुआ, रोज देखता हॅू निहित स्वार्थ के लिये लोग मन ,आत्मा, दिल, दिमाग सब मार रहे है. पल पल लोग, तिल तिल कर मर रहे है. चेहरे पर नकली मुस्कान लपेटे, मरे हुये, जिंदा लोग, जिंदगी ढोने पर मजबूर है. टी.वी. कैमरों के सम्मुख घोटाले करते पकडे गये राजनेता, जब पुनः अपने मतदाताओं से मुखातिब होते है, तो मुझे तो लगता है , मर मर कर अमर बने रहने की उनकी कोशिशो से हमें सीख लेनी चाहिये, जिंदगी जिंदा दिली का नाम है कोई ५न नेताओ से सीखे जो दिल पर पत्थर रखकर मुंह पर मेकअप कर निकल पड़ते हैं बेशर्मी का लबादा ओढ़कर फिर फिर बार बार . मेरा मानना है, जब भी, कोई बडी डील होती है, तो कोई न कोई, थोडी बहुत आत्मा जरूर मारता है, पर बडे बनने के लिये डील होना बहुत जरूरी है, और आज हर कोई बडे बनने के, बडे सपने सजोंये अपने जुगाड भिडाये, बार बार मरने को, मन मारने को तैयार खडा है, तो आप आज कितनी बार मरे ? मरो या मारो ! तभी डील होंगी ! दिल पर पत्थर रखकर मुंह पर मेकअप कर निकल पड़ो ,पर बिना ब्रेकअप किये मन मारकर जीने की कला ही आज जीवन है . vivek ranjan shrivastava

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