आज केवल पांच दोहे -
रहे ढूंढते उम्रभर अपने बरगद बांस
शहरों में घुटती रही बाबूजी की सांस
आंगन की तुलसी गई,हुआ नीम का खून
पैसों से अब आ रही,अम्मा की दातून
तुमने तो बस छांट दी, एक अनचाही डार
खग का उजड़ा घोंसला,बिखर गया परिवार
देख नुकीली आरियाँ, उठा हृदय में शूल
फूट फूट कर रो पड़े,बूढ़े आम - बबूल
इक दुलहन के साज को,नुचे हजारों फूल
नंगी हो गईं डालियां ,बचे रह गए शूल
महेश दुबे