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5 दोहे

2 दिसम्बर 2021

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 आज केवल पांच दोहे - 

रहे ढूंढते उम्रभर अपने बरगद बांस
शहरों में घुटती रही बाबूजी की सांस

आंगन की तुलसी गई,हुआ नीम का खून
पैसों से अब आ रही,अम्मा की दातून

तुमने तो बस छांट दी, एक अनचाही डार
खग का उजड़ा घोंसला,बिखर गया परिवार

देख नुकीली आरियाँ, उठा हृदय में शूल
फूट फूट कर रो पड़े,बूढ़े आम - बबूल

इक दुलहन के साज को,नुचे हजारों फूल
नंगी हो गईं डालियां ,बचे रह गए शूल

महेश दुबे


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