shabd-logo

समय चक्र

30 अक्टूबर 2017

127 बार देखा गया 127
*एक अच्छी कविता है, जो मनन योग्य है।* जाने क्यूँ, अब शर्म से, चेहरे गुलाब नहीं होते। जाने क्यूँ, अब मस्त मौला मिजाज नहीं होते। पहले बता दिया करते थे, दिल की बातें। जाने क्यूँ, अब चेहरे, खुली किताब नहीं होते। सुना है, बिन कहे, दिल की बात, समझ लेते थे। गले लगते ही, दोस्त हालात, समझ लेते थे। तब ना फेस बुक था, ना स्मार्ट फ़ोन, ना ट्विटर अकाउंट, एक चिट्टी से ही, दिलों के जज्बात, समझ लेते थे। सोचता हूँ, हम कहाँ से कहाँ आगए, व्यावहारिकता सोचते सोचते, भावनाओं को खा गये। अब भाई भाई से, समस्या का समाधान, कहाँ पूछता है, अब बेटा बाप से, उलझनों का निदान, कहाँ पूछता है, बेटी नहीं पूछती, माँ से गृहस्थी के सलीके, अब कौन गुरु के, चरणों में बैठकर, ज्ञान की परिभाषा सीखता है। परियों की बातें, अब किसे भाती है, अपनों की याद, अब किसे रुलाती है, अब कौन, गरीब को सखा बताता है, अब कहाँ, कृष्ण सुदामा को गले लगाता है जिन्दगी में, हम केवल व्यावहारिक हो गये हैं, मशीन बन गए हैं हम सब, इंसान जाने कहाँ खो गये हैं! इंसान जाने कहां खो गये हैं....! *✍AWESOME LINES✍*

अमन सिंह की अन्य किताबें

3 नवम्बर 2017

Manish Pandey

Manish Pandey

बहुत खूब

31 अक्टूबर 2017

अमन सिंह

अमन सिंह

धन्यवाद

31 अक्टूबर 2017

CHANDAN KUMAR ARYA

CHANDAN KUMAR ARYA

लाजवाब लाइन है

30 अक्टूबर 2017

1

सलाह

13 सितम्बर 2017
0
0
0

*अपने घर के युवा बच्चों या स्कूल कॉलेज के युवा बच्चों को उपासना(मन्त्र जप-ध्यान-स्वाध्याय) से कैसे जोड़ें?*पढ़ना है बहुत पढ़ना है, कम्पटीशन की तैयारी करना या जॉब का बहुत लोड है। उपासना के लिए वक़्त नहीं है।दो कहानियों के माध्यम से उपासना का महत्त्व समझाएं:-1- दो लकड़हारों में पेड़ काटने की कम्पटीशन हुई, द

2

जीवन

20 सितम्बर 2017
0
2
1

घर चाहे कैसा भी हो...उसके एक कोने में...खुलकर हंसने की जगह रखना...सूरज कितना भी दूर हो...उसको घर आने का रास्ता देना...कभी कभी छत पर चढ़कर...तारे अवश्य गिनना...हो सके तो हाथ बढ़ा कर...चाँद को छूने की कोशिश करना...अगर हो लोगों से मिलना जुलना...तो घर के पास पड़ोस ज़रूर रखना...भीगने देना बारिश में...उछल

3

समय चक्र

30 अक्टूबर 2017
0
0
4

*एक अच्छी कविता है, जो मनन योग्य है।*जाने क्यूँ,अब शर्म से,चेहरे गुलाब नहीं होते।जाने क्यूँ,अब मस्त मौला मिजाज नहीं होते।पहले बता दिया करते थे, दिल की बातें।जाने क्यूँ,अब चेहरे,खुली किताब नहीं होते।सुना है,बिन कहे,दिल की बात,समझ लेते थे।गले लगते ही,दोस्त हालात,समझ लेते थे।तब ना फेस बुक था,ना स्मार्ट

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए