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आचार्य चाणक्य

30 मई 2022

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पहले राष्ट्र
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🙏🙏🌹🌹एक दिन सम्राट चंद्रगुप्त अपने मंत्रियों के साथ एक विशेष मंत्रणा में व्यस्त थे तभी  प्रहरी वहां आकर   सूचित करता है  कि आचार्य चाणक्य राजभवन में पधार चुके  हैं !!

चंद्रगुप्त   आश्चर्य चकित रह गए ,वह सोचने लगे असमय गुरू का आगमन होना निश्चित ही कोई समस्या है !
सम्राट  थोड़ा  घबरा भी गए । अभी वह कुछ और  सोचते  ,तभी  लंबे-लंबे डग भरते  आचार्य चाणक्य ने सभा में प्रवेश किया !!
सम्राट चंद्रगुप्त सहित सभी सभासद उनके  सम्मान में उठ खड़े हो  गए , !!

सम्राट ने गुरूदेव को सिंहासन पर आसीन होने  के लिए  कहा ,*"!!

आचार्य चाणक्य बोले, ”भावुक न बनो सम्राट चंद्रगुप्त , अभी तुम्हारे समक्ष तुम्हारा गुरू नहीं, तुम्हारे राज्य का एक याचक खड़ा है, मुझे कुछ याचना करनी है *"!!

सम्राट  चंद्रगुप्त की आँखें  भर  आई ,वह दिन भाव से  बोले, ”आप  तो आज्ञा दें, ये समस्त राजपाट आपके चरणों में समर्पण कर  दूंगा *"!!

आचार्य   ने कहा, ”मैंने  पहले ही आपसे कहा भावना में न बहें, मेरी याचना सुनें *"!!

गुरूदेव की मुखमुद्रा देख सम्राट चंद्रगुप्त गंभीर हो गए  बोले -*"आज्ञा दें *"!!

आचार्य चाणक्य ने कहा, ”आज्ञा नहीं, मेरी याचना है कि मैं किसी निकटस्थ सघन वन में साधना करना चाहता हूं , दो माह के लिए राजकार्य से मुक्त कर दें, और यह भी स्मरण रहे वन में अनावश्यक मुझसे कोई मिलने न आए, आप भी नहीं । मेरा उचित प्रबंध करा दें *"!!
सम्राट चंद्रगुप्त ने कहा, ”* मुझे सब कुछ स्वीकार है *"!!

दूसरे दिन ही सारा  प्रबंध  व्यवस्थित कर दिया गया , आचार्य चाणक्य वन चले गए ,!!

  आचार्य चाणक्य को  वन गए एक सप्ताह भी न बीता था कि यूनान से सेल्युकस (सिकन्दर का सेनापति) अपने जमाई  चंद्रगुप्त से मिलने भारत पधारे , उनकी पुत्री हेलेन का विवाह चंद्रगुप्त से हुआ था !!

दो चार दिन रुकने  के बाद उन्होंने आचार्य चाणक्य से मिलने की इच्छा प्रकट कर दी । सेल्युकस ने कहा, ”सम्राट, आप वन में अपने मंत्री जी को  भेज दें । उन्हें मेरे बारे में बताए की मैं उनसे मिलने को आतुर हूं  , वह मेरा बड़ा आदर करते है । वह कभी इन्कार नहीं करेंगे *"!!

अपने श्वसुर की बात मान सम्राट  चंद्रगुप्त ने ऐसा ही किया, मंत्री  भेज दिए गए !!
आचार्य चाणक्य ने उत्तर दिया, ”ससम्मान सेल्युकस वन लाए जाएं, मुझे उनसे मिल कर प्रसन्नता होगी *"!!

सेना के संरक्षण में सेल्युकस वन पहुंचे । औपचारिक अभिवादन के बाद आचार्य ने पूछा, ”मार्ग में कोई कष्ट तो नहीं हुआ *"!!

यह सुन सेल्युकस ने कहा, ”भला आपके रहते मुझे कष्ट होगा ? आपने मेरा बहुत ख्याल रखा है ,*"!!
उनके इस  इस उत्तर का आचार्य चाणक्य पर क्या प्रभाव पड़ा कि वह बोल उठे –
“हां, सचमुच आपका मैंने बहुत ख्याल रखा *"!!
इतना कहने के पश्चात चाणक्य ने सेल्युकस के भारत की भूमि पर कदम रखने के बाद से वन में  आने तक की सारी घटनाएं  क्रमशः सुना दी उसे इतना तक बताया कि सेल्युकस ने सम्राट से क्या बात की, एकांत में अपनी पुत्री से क्या बातें हुईं, मार्ग में किस सैनिक से क्या पूछा ,*"!!

सेल्युकस व्यथित हो गए उन्हे बुरा लगा  बोले, ”इतना अविश्वास ? मेरी गुप्तचरी की गई । मेरा इतना अपमान *"!!

आचार्य चाणक्य ने कहा, *”न तो अपमान, न अविश्वास और न ही गुप्तचरी , अपमान की तो बात मैं सोच भी नहीं सकता , सम्राट भी इन दो महीनों में शायद न मिल पाते । आप हमारे अतिथि हैं ।
रह गई बात सूचनाओं की तो वह मेरा ”राष्ट्रधर्म” है । आप कुछ भी हों, पर विदेशी हैं । अपनी मातृभूमि से आपकी जितनी प्रतिबद्धता है, वह इस राष्ट्र से नहीं हो सकती, यह स्वाभाविक भी है !
मैं तो सम्राज्ञी की भी प्रत्येक गतिविधि पर दृष्टि रखता हूं,, मेरे इस ‘धर्म‘ को अन्यथा न लें, मेरी देश हित की  भावना समझें *"!!!

सेल्युकस हैरान हो गया ,, वह आचार्य चाणक्य के चरणों  में गिर पड़ा   उसने कहा, ”जिस राष्ट्र में आप जैसे राष्ट्रभक्त हों, उस देश की ओर कोई आँख उठाकर भी नहीं देख सकता ,धन्य हैं आप महान हैं ,,*"!!
सेल्युकस वापस लौट गया ।
राष्ट्रधर्म प्रथम फिर बाकी सब कुछ यही सिखाया था आचार्य चाणक्य ने ,!!!

साभार आचार्य चाणक्य की कहानियां!!


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