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आदमी न रहा आदमी की तरह

4 दिसम्बर 2021

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ग़ज़ल


वक़्त   लगता   पुरानी  सदी  की  तरह ।

आदमी  न   रहा   आदमी   की    तरह ।


हाव  से  ,भाव  से , बात   व्यवहार   से,

लोग  लगने  लगे  अजनबी  की  तरह । 


किससे  लेता  भला  मशविरा  यार  मैं,

हर कोई चुप यहाँ  ख़ामुसी  की  तरह ।


हर कोई है यहाँ सच से वाकिफ़  मगर, 

झूठ   फैला  हुआ   चाँदनी  की  तरह ।


इश्क़  का  दर्द   दुनिया में  मशहूर  है ।

दर्द   कोई  नही  आशिक़ी  की  तरह ।


मयकशी  में  यहाँ  इश्क़  का ज़ीस्त से ,

रब्त  बनता   नही   शायरी  की  तरह ।


उम्रभर  का तज़ुर्बा  है "रकमिश" मेरा ,

आईना  है  कहाँ  ज़िन्दगी   की  तरह ।


               रकमिश सुल्तानपुरी





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