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आखिरी खत

23 मार्च 2022

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है लिये हथियार दुश्मन ताक में बैठा उधर
और हम तैयार है सीना लिये अपना इधर
खून से खेलेंगे होली गर वतन मुश्किल में है
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।

हाथ जिनमें हो जुनून कटते नही तलवार से
सर जो उठ जाते है वो झुकते नहीं ललकार से
और भड़केगा जो शोला सा हमारे दिल में है
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।

हम तो घर से निकले ही थे बांधकर सर पे कफ़न
जान हथेली में लिये लो बढ चले हैं ये कदम
जिंदगी तो अपनी मेहमान मौत की महफ़िल मैं है
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।

दिल मे तूफानों की टोली और नसों में इन्कलाब
होश दुश्मन के उड़ा देंगे हमें रोको न आज
दूर रह पाये जो हमसे दम कहाँ मंजिल में है
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।

23 वर्ष की उम्र में आज हमारी पीढ़ी कैरियर लव लाइफ को लेकर कन्फ्यूज्ड घूमती है, वहीं सरदार भगत सिंह....उनका एक ही सपना था...आजाद भारत का सपना।
छोटी सी उम्र में वो आजाद भारत के लगातार सपने देखते थे। 08 वर्ष की छोटी सी उम्र में उन्होंने भारत की आजादी के लिए मेहनत करनी शुरू दी थी। 15 वर्ष की उम्र में उन्होंने अपना घर छोड़ किया दिया था। कहा जाता है कि उन्होंने अपनी शादी ना करने के फैसले से अपने माता पिता को अवगत करा दिया था। उनके माता पिता ने उनकी शादी कराने की कोशिश की तो उन्होंने यह कहते हुए घर छोड़कर कानपुर चले गए कि अगर मेरी शादी गुलाम भारत में हुई तो मेरी बधू 'मृत्यु' होगी।
लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए उन्होंने अन्य साथियों के साथ पुलिस अधीक्षक जेम्स ए स्काट को मारने की साजिश रची लेकिन पहचान में लेकर गलती होने के कारण उन्होंने पुलिस अधिकारी सॉन्डर्स को गोली मार दिया। आज की पीढ़ी को एक दिन भूखे सोने में नानी याद आ जाती है लेकिन सरदार भगत सिंह जेल में 116 दिन तक उपवास पर थे। इस दौरान उन्होंने अपने दैनिक जीवन का निर्वहन जैसे गायन, लेखन, किताबें पढ़ना इत्यादि बेहतर तरीके से किया। सरदार भगत सिंह जेल में भूख हड़ताल के दौरान इतने प्रसिद्ध हो गए थे कि 30 जून 1929 को पूरे देश में भगत सिंह दिवस मनाया गया था।

आज ही के दिन यानी 23 मार्च 1931 को शाम 7 बजकर 33 मिनट पर ब्रिटिश सरकार ने भगत सिंह और उनके दो साथियों सुखदेव व राजगुरू को फांसी दी गई थी। फांसी 24 मार्च 1931 की सुबह दी जानी थी, लेकिन ब्रिटिश सरकार को माहौल बिगड़ने का डर था, इसलिए नियमों को दरकिनार कर एक रात पहले ही तीनों क्रांतिकारियों को चुपचाप लाहौर सेंट्रल जेल में फांसी पर चढ़ा दिया गया। कहा जाता है कि सरदार भगत सिंह ने अपनी मां विद्यावती से कहा था, ‘मेरा शव लेने आप नहीं आना, छोटा भाई को भेज देना, क्योंकि यदि आप आएंगी तो रो पड़ेंगी और मैं नहीं चाहता कि लोग यह कहें कि भगत सिंह की मां रो रही है।’
फांसी से पहले 22 मार्च 1931 को भगत सिंह ने अपने साथियों को एक पत्र भी लिखा था जिससे पता चलता है कि देश की आजादी के लिए वह अपनी कुर्बानी देने को कितना उत्सुक थे। आखिरी खत में उन्होंने लिखा था- मुझे फांसी होने के बाद देश की खातिर कुर्बानी देने वालों की तादाद बढ़ जाएगी।
कहा जाता है कि फांसी पर जाने से पहले सरदार भगत सिंह लेनिन की नहीं बल्कि राम प्रसाद 'बिस्मिल' की जीवनी पढ़ रहे थे। जेल के अधिकारियों ने जब उन्हें यह सूचना दी कि उनकी फांसी का वक्त आ गया है तो उन्होंने कहा था- 'ठहरिए! पहले एक क्रांतिकारी दूसरे से मिल तो ले।' फिर एक मिनट बाद ही किताब छोड़ कर बोले- 'ठीक है अब चलो।'
कुछ ऐसी ही प्रेरक कहानी राजगुरु एवम सुखदेव की भी है।
फांसी के फंदे पर लटकते वक्त तीनों के चेहरे पर एक गज़ब की कांतिमय मुस्कान थी।
23 मार्च 1931 का वो दिन जब भारत माता के तीन लाल हंसते -हंसते देश के लिए कुर्बान हो गए। जेल के नियम के हिसाब से भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी से पहले स्नान कराया गया। तीनों को नए कपड़े दिए गए। 
जेल में सलाखों से हाथ लहराकर 'इंकलाब जिंदाबाद' के नारे लग रहे थे रहे थे। हंसते मुस्कराते भगत सिंह, राजगुरु एवम सुखदेव भी आवाज से आवाज मिला 'इंकलाब जिंदाबाद' के नारे लगा रहे थे। इस दृश्य के कल्पना मात्र से रोम रोम में ऊर्जा भर आती है। फांसी पर पहुंचने से पहले जेल वॉर्डन छतर सिंह ने भगत सिंह से वाहे- गुरु की प्रार्थना की गुजारिश की लेकिन भगत सिंह का जवाब सुनकर वॉर्डन भी हैरान रह गया। भगत सिंह बोले, सरदार जी मैंने पूरी जिंदगी याद नहीं किया.. अब जब मौत खड़ी है और प्रार्थना करूं तब वो कहेंगे कि यह कायर इंसान है। अतः मैं अपनी राय नहीं बदल सकता। तीनों की फांसी के बाद जेल वॉर्डन बैरक की तरफ भागा और फूट- फूटकर रोने लगा। वो कह रहा था कि 30 वर्ष के सफर में कई फांसी देखी है लेकिन फांसी के फंदे तक इस बहादुरी के साथ जाते पहली बार किसी को देखा है।
इनकी कहानी पढ़कर आंखें महज नम नहीं होती, रौंगटे खड़े हो जाते है। धन्य है वो सपूत जिन्होंने भारत की आजादी के लिए सबकुछ कुर्बान कर दिया और धन्य है तो वे माता पिता जिन्होंने ऐसे वीर सपूतों को जन्म दिया।
आज शहीदी दिवस के मौके पर भारत के तीनों सपूतों एवम उनके माता पिता को दिल से गहराई से सादर प्रणाम करते है।🙏🙏🙏💐💐💐
जय हिंद जय भारत।

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