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आरे में आरी

10 अक्टूबर 2019

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हमें काटते जा रहे ,पारा हुआ पचास।

नित्य नई परियोजना, क्यों भोगें हम त्रास।।


धरती बंजर हो रही ,बचा न खग का ठौर।

बढ़ा प्रदूषण रोग दे ,करिये इस पर गौर ।।


भोजन का निर्माण कर ,हम करते उपकार।

स्वच्छ प्राण वायु दिये , जो जीवन आधार ।।


देव रुप में पूज्य हम ,धरती का सिंगार ।

है गुण का भंडार ले औषध की भरमार ।।


संतति हमको मान के ,करिये प्यार दुलार ।

उत्तम खाद पानी से ,लें पालन अधिकार ।।


मानव और प्रकृति का ,रिश्ता है अनमोल।

आरे में आरी नहीं , समझें मेरा मोल।।

©anita_sudhir

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शब्दनगरी का हार्दिक आभार

11 अक्टूबर 2019

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आरे में आरी

10 अक्टूबर 2019
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हमें काटते जा रहे ,पारा हुआ पचास।नित्य नई परियोजना, क्यों भोगें हम त्रास।।धरती बंजर हो रही ,बचा न खग का ठौर।बढ़ा प्रदूषण रोग दे ,करिये इस पर गौर ।।भोजन का निर्माण कर ,हम करते उपकार।स्वच्छ प्राण वायु दिये , जो जीवन आधार ।।देव रुप में पूज्य हम ,धरती का सिंगार ।है गुण का भंडार ले औषध की भरमार ।।संतति

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गीतिका

12 अक्टूबर 2019
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नफरत नहीं उर में रखें, अब प्रेम की बौछार हो। इक दूसरे की भावना का अब यहाँ सत्कार हो।। अब भाव की अभिव्यक्ति का,ये सिलसिला है चल पड़ा। ये लेखनी सच लिख सके ,जलते वही अँगार हो ।। ये रूठने का सिलसिला क्यों आप अब करने लगे । अनुराग से तुमको मना लें ये हमें अधिकार हो। जीवन चक्र का सिलसिला यूँ अनवरत चल

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