हमें काटते जा रहे ,पारा हुआ पचास।
नित्य नई परियोजना, क्यों भोगें हम त्रास।।
धरती बंजर हो रही ,बचा न खग का ठौर।
बढ़ा प्रदूषण रोग दे ,करिये इस पर गौर ।।
भोजन का निर्माण कर ,हम करते उपकार।
स्वच्छ प्राण वायु दिये , जो जीवन आधार ।।
देव रुप में पूज्य हम ,धरती का सिंगार ।
है गुण का भंडार ले औषध की भरमार ।।
संतति हमको मान के ,करिये प्यार दुलार ।
उत्तम खाद पानी से ,लें पालन अधिकार ।।
मानव और प्रकृति का ,रिश्ता है अनमोल।
आरे में आरी नहीं , समझें मेरा मोल।।
©anita_sudhir