नई दिल्लीः यूपी विधानसभा में PETN जैसे विस्फोटक मिलने की जांच कर रही एजेंसियां भले ही अब तक सोर्स तक नहीं पहुंच सकी हैं, मगर इस निष्कर्ष पर जरूर मुतमईन हैं कि इसके पीछे आतंकी नहीं बड़ी सियासी साजिश है। जिस कुर्सी के नीचे विस्फोटक मिला, वहां तक पहुंचने में विधानसभा के अंदर तीन-तीन सुरक्षा घेरों से गुजरना पड़ता है। सिर्फ विधायक ही बगैर जांच-पड़ताल के अब तक इधर-उधर घुसते रहे हैं। लिहाजा यह किसी माननीय की ही खुराफात ज्यादा लगती है।
12 जुलाई को सदन के अंदर विस्फोटक मिलने की घटना के बाद से कई दफा इंटीलेजेंस ब्यूरो और एटीएस की हुई बैठकों के बाद इंडिया संवाद को जो जानकारी मिली है, उसके मुताबिक कुछ विधायकों से अब पूछताछ होने वाली है। देर-सबेर खुराफाती सफेदपोश बेनकाब हो सकते हैं। उधर लखनऊ से लेकर दिल्ली के कुछ बड़े भाजपा नेताओं का भी सेकंड थॉट में मानना है कि जिस तरह से योगी आदित्यनाथ 18-18 घंटे एक्टिव रहकर काम कर रहे, उसे देखकर विरोधी उन्हें कानून-व्यवस्था पर घेरने के लिए ऐसी साजिश रचकर मौके तलाश रहे हैं।
क्यों नहीं है यह आतंकी साजिश
खुफिया एजेंसियों की जांच में 24 घंटे का जो निचोड़ है उसके मुताबिक फिलहाल राजनीति क साजिश की बात छनकर सामने आई है। यूं तो PETN जैसे विस्फोटक का आतंकी ज्यादातर घटनाओं में इस्तेमाल करते हैं। हालांकि सेना भी कुछ विशेष स्थानों पर विस्फोट के लिए इसे यूज में लाती है। मगर यह उतनी आसानी से उपलब्ध नहीं होता, जितना कि डेटोनेटर या टाइमर।
आतंकी साजिश से इन्कार के पीछे ठोस वजह है। क्योंकि अगर यूपी विधानसभा में विस्फोट करने जैसा बड़ा टॉस्क कोई आतंकी संगठन लेगा तो उसके गुर्गे इतनी बेवकूफी कतई नहीं करेंगे।
क्योंकि कोई आतंकी कभी भी असली विस्फोटक के साथ रेकी नहीं करता है। अगर आतंकी को विस्फोट करना होता तो वह जब पीईटीएन जैसा घातक विस्फोटक लेकर पहुंच गया तो डेटोनेटर और टाइमर भी लेकर जाता। क्योंकि डेटोनेटर होने के बाद ही ये पीईटीएन बम का रूप ले लेता है। विस्फोट के लिए पीईटीएन के साथ डेटोनेटर का जुड़ना जरूरी है। सहज सी बात है कि सदन में विस्फोट की मंशा रखने वाले आतंकी को क्या पता नही है कि इसके साथ डेटोनेटर भी चाहिए है। जब डेटोनेटर सुलभ है तो फिर उसे क्यों नहीं ले जाएगा।
इंटेलीजेंस ब्यूरो के एक अफसर इंडिया संवाद से बातचीत में कहते हैं कि पीईटीएन दुर्लभ किस्म का विस्फोटक है। बावजूद इसके जब यह विस्फोटक विधानसभा तक पहुंच गया तो फिर डेटोनेटर औ टाइमर तो आसानी से उपलब्ध हैं। अगर किसी आतंकी का हाथ होता तो वह असली विस्फोटक के साथ डेटोनेटर और टाइमर भी लेकर पहुंच जाता। खदानों में काम करने वाले ठेकेदारों के पास भी डेटोनेटर मिलते हैं। मतलब जो चीज आसानी से उपलब्ध है वह विधानसभा तक पहुंची नहीं और जो चीज आसानी से उपलब्ध नहीं है, वह विधानसभा तक पहुंच गई।
अफसर का कहना है कि आतंकी इतनी बेवकूफी नहीं कर सकते कि पहले असली विस्फोटक लेकर पहुंचेंगे और जिससे विस्फोट होना होगा वही सामान भूल जाएंगे। अगर उन्हें रेकी करना हो तो वह कोई डिब्बे आदि रखकर भी रेकी कर सकते थे। अब तक जितनी भी आतंकी घटनाओं हुई हैं, उसमें आतंकी इतनी लचर ट्रायल नहीं करते। जब तक सुरक्षा एजेंसियां चौकस होती हैं, तब तक आतंकी जाल बिछाकर घटना को अंजाम दे देते हैं।
सोर्स का इसलिए पता चलने में देरी
विधानसभा के अंदर लगे अधिकांश सीसीटीवी कैमरे खराब मिले हैं। लिहाजा जांच एजेंसियों को ऐसा कोई सुराग नहीं मिला है जिससे पता चल सके कि ये विस्फोटक विधानसभा भवन के अंदर कौन लाया था। बताया जा रहा है कि विधानसभा के अंदर ये विस्फोटक नीले रंग की पॉलीथीन में रखा गया था। भवन की सभी सीसीटीवी फूटेज की जांच की जा चुकी है।
योगी के खिलाफ साजिश का हिस्सा
दरअसल जो भी माननीय या कोई अन्य शख्स विस्फोटक लेकर गया, उसकी मंशा विस्फोट करने की थी ही नहीं। वह सिर्फ एक साजिश के तहत सरकार को कानून-व्यवस्था के मुद्दे पर विफल साबित करना चाहता था। वह दिखान चाहता था कि योगीराज में कानून -व्यवस्था की कितनी बदतर स्थिति है कि विधानसभा तक विस्फोटक कोई आसानी से लेकर पहुंच सकता है।
आखिर में यही हुआ भी। घटना के बाद यूपी सहित पूरे देश में बहस छिड़ गई कि- उत्तर प्रदेश में तो सुरक्षा व्यवस्था का यह हाल है कि विधानसभा भी सुरक्षित नहीं है तो फिर आम जन की क्या बात।
अगर सुरक्षा और खुफिया एजेंसियों की राजनीतिक साजिश की बात मान ली जाए तो फिर मोटिव पर बहस छिड़ती है। यूपी भाजपा के एक बड़े नेता की मानें तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पीछे विपक्ष छोड़िए, उनके अपने कुछ सहयोगी ही हाथ धोकर पीछे पड़े हैं। खुलकर विरोध करने की हिम्मत नहीं है। नहीं तो केंद्रीय नेतृत्व साइडलाइन कर देगा। इस नाते योगी के पार्टी प्रतिद्वंदी उन्हें बतौर मुख्यमंत्री फेल दिखाना चाहते हैं।
जिस तरह से कानून-व्यवस्था के मुद्दे पर योगी सरकार बुरी तरह जूझ रही है, उसमें कोढ़ में खाज पैदा करने के लिए इस घटना की साजिश रची गई। ताकि संदेश दिया जा सके कि योगी के राज में जब विधानसभा तक बारूद पहुंच जा रहा है तो फिर कानून व्यवस्था पर बात करना ही बेमानी है। जाहिर सी बात है कि सूबे के नेतृत्व करने में अगर योगी को फेल साबित करने की मंशा सफल हुई तो फिर प्रतिद्वंदियों के लिए मौके होंगे।
योगी से क्यों चिढ़ते हैं विरोधी
मौजूदा वक्त योगी आदित्यनाथ की ईमानदार मुख्यमंत्री की छवि है। योगी भी बिहार केनीतीश कुमार, महाराष्ट्र के देवेंद्र फडणवीस और गोवा के मनोहर पर्रिकर जैसे निजी रूप से ईमानदार मुख्यमंत्रियों की लिस्ट में शुमार हैं। योगी को सांप्रदायिक या अन्य चाहे जो आरोप लगा दिए जाएं, मगर आर्थिक बेईमानी का अब तक कोई आरोप नहीं लगा है। यूपी में लंबे अरसे बाद इस तरह का कोई मुख्यमंत्री मिला है। जिस तरह से करोड़ों की लग्जरी गाड़ी खरीदने की फाइल कभी योगी वापस कर देते हैं तो पांच कालिदास आवास पर सुख-सुविधाओं के बीच रहना पसंद नहीं है। सादगी और सरलता का जो संदेश जा रहा है, वह उनकी लोकप्रियता बढ़ा रहा। यही वजह है कि वे विरोधियों ही नहीं अपनी पार्टी के कई महत्वाकांक्षी नेताओं की आंख में कांटें की तरह चुभ रहे हैं।