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धुन : ऐ मेरे वतन के लोगो ज़रा आंख में भरलो पानी पैरोडी ये कुर्सी चिपकू नेता करें देश से बेईमानी। जो शहीद हुए थे उन की नहीं याद रही कुर्बानी।।लंदन पेरिस में पढ़ते, नेता अफसर के बच्
कुर्सी नहीं छोड़ूंगा सौ बार कसम खाई कुर्सी नहीं छोड़ूंगा। ताऊ कहे या ताई कुर्सी नहीं छोड़ूंगा। ।नेता हूं में तो भाई कुर्सी नहीं छोडूंगा।।सौ हेर फेर करके कुरसी मुझे मिली है। मुद्दत की को
नहीं शक कि तुम हो मुहब्बत हमारी। मुहब्बत से बढ़कर हो आदत हमारी।।हवा की ज़रूरत है सांसों को जैसे। इसी तरह तुम हो ज़रूरत हमारी।।लकीरों में हाथों की चेहरा तुम्हारा। तुम्ही से है मंसूब किसम
वगैरह बड़ी ही आजज़ी से मेंने इक खातून से पूछा।जवानी ढल रही है और तुम हो आज तक तन्हा।।सितम्बर में सवा चालीस की तुम होने वाली हो।चमक हुस्नो जवानी की भी अब तुम खोने वाली हो।।मुहब्बत के अंधेरे का सवे
ग़ज़ल वो चांद है जुगनू है सितारा तो नहीं है। जो कुछ भी है वो शख्स हमारा तो नहीं है।। तू भी तो बिछड़ कर नहीं रह पायेगा ज़िन्दा। मेरा भी बिना तेरे गुज़ारा तो नहीं है।। होठों पे
चुटकुले बाज़ कवि जिन का मोलिक है कविता लेखन। हैं कहाँ उन पे कविसम्मेलन।। मसखरे बन गये महान कवि। बीकानेरी रहे न हाथरसी।। चुटकुले मंच पर सुनाने की। जिन को कला हंसाने की।।&n
शाहकार (मास्टर पीस) देखता था ग़ौर से इक पेन्टर का शाहकार। इक हसीना का बदन जिस पर नहीं था एक तार।। पेन्टर के बुर्श ने कुछ ऐसे दिखलाये कमाल। केनवस पर जैसे ज़िन्दा हो गये थ
उर्दू हास्य मुक्तक ये ईडी को और आईटी को भगावे। कमल छाप साबुन से जो भी नहावे।। लगा क़त्ल का या इस्मतदरी का। नज़र दाग़ दामन पे कोई न आवे।झूठ को सच मानने वाले हैं असली देश भग्त।अब हुक
ग़ज़ल गुज़र गयी है जवानी पुरानी दिल्ली में।बनी न कोई कहानी पुरानी दिल्ली में।।रहे न ग़ालिब ओ मोमिन रहे न ज़ौक़ ओ ज़फर।हमारा कोन है सानी पुरानी दिल्ली में।।हसद की आग में जल कर हुए हैं खाक सभी।&nbs