अजय कुमार Baranwal
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यह स्पष्ट होना आवश्यक है कि किसी प्रकार की राजनीतिक मंशा या बैकग्राउन्ड तो नही? मुश्किल ये है कि नेट पे इतना कुछ है कि "हिन्दी की सेवा जैसा विचार तो हजम होने से रहा आज के युग मे", तो तुरन्त विश्वास होता ही नहीं. बिना आर्थिक सपोर्ट के टिक पाने की अन्य संभावनायें क्या है ं?