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आलोक अग्रवाल की पुस्तकें

आलोक अग्रवाल के लेख

एक दृश्य

3 जून 2017
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ये हमारे साथ कई बार होता है की कोई चेहरा आँखों में यूँ समा जाता है की फिर उसे हम भूल नहीं पाते हैं. ये कविता शायद उसी बात को दर्शा रही है. गांव में शायद ये दृश्य ज्यादा सही प्रमाणित होता है. आशा करता हूँ आपको, मेरी ये रचना, पसंद आएगी.

वो आखरी साँझ

22 मई 2017
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एक मनुष्य के जीवन अंतराल में ऐसा वक्त आ सकता है जब उसे किसी रिश्ते को ना चाहते हुए भी बीच में ही तोड़ना पड़ता है. और फिर वो व्यक्ति उस सफर के कुछ पलों को याद करता है. इस कविता में मैंने वो दृश्य को आपके समक्ष लाने की कोशिश क

बेटी - कुल का दीपक

20 मई 2017
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लगाकर मेहेंदी हाँथों में, वो पंछी उड़ गईइस द्वार से उस द्वार तक, वो रोती चली गई बाप सिसकता रहा, गले से लगाता रहा माँ को अकेला छोड़, वो पिया के घर चली गई भाई आज हार सा गया, आँसू बहाने लगा वो मुसाफ़िर, अपनी मंजिल की ओर चली गई घर सूना हुआ,आँगन शांत हो गया उसके पायल

माँ की याद

19 मई 2017
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इस अंजान से शहर में माँ तेरी याद आती तो है...लड़ने के लिए लोग कम नहीं मगर बेहना तेरी याद आती तो है...कितनी भी कर लूँ कोशिश मैं भूलने कि मगर...माँ, मुझे घर की याद आती तो है..... सात समंदर पार भेजकर क्यूँ मुझे निराश किया...ना जाने मैंने ऐसा भी है क्या अपराध किया...गुसत

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