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Amitnishchhal

Amit Nishchchal

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पुस्तक के भाग

1

दौर चुनावी युद्धों का

2 अप्रैल 2019
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दौर चुनावी युद्धों का✒️जड़वत, सारे प्रश्न खड़े थेउत्तर भाँति-भाँति चिल्लाते,वहशीपन देखा अपनों काप्रत्युत्तर में शोर मचाते।सिर पर चढ़कर बोल रहा थावह दौर चुनावी युद्धों का,आखेटक बनकर घूम रहेजो प्रणतपाल थे, गिद्धों का।बड़े खिलाड़ी थे प्रत्याशीसबकी अपनी ही थाती थी,बातें दूजे की, एक पक्ष कोअंतर्मन तक दहलाती थ

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ऐ हमदम...

24 जनवरी 2020
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ऐ हमदम...✒️मन के मनके, मन के सारे, राज गगन सा खोल रहे हैंअंधकार के आच्छादन में, छिप जाने से क्या हमदम..?शोणित रवि की प्रखर लालिमानभ-वलयों पर तैर रही है,प्रातःकालिक छवि दुर्लभ हैशकल चाँद की, गैर नहीं है।किंतु, चंद ये अर्थ चंद को, स्वतः निरूपित करने होंगेश्रुतियों के अभिव्यंजन की अब, प्रथा नहीं है ऐ ह

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वक्त भागता रहा

12 मई 2020
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वक्त भागता रहा✒️वक्त भागता रहा, ज़िंदगी ठहर गई,एक कोशिका खिली विश्व पर फहर गई।एक अंश जीव का प्राण से रहित मगर,छा गया ज़मीन पर बन गया बड़ा कहर।आम ज़िंदगी रुकी खास लोग बंध में,बाँटता चला गया धूर्त देश अंध में।तोड़ मानदंड को मौत की लहर गई,वक्त भागता रहा, ज़िंदगी ठहर गई।चंद, बाँटते खुशी शेष बेचकर कफ़न,मानवी स्

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