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अनबुझी प्यास

13 मई 2022

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बाहर हल्की हल्की बारीश हो रही थी. इस मौसम में चाय का प्याला देखकर इस्पेक्टर मनोज के चेहरे पर ताजगी का भाव आ गया और वे आराम से चाय का आनंद लेने लगे. उसी वक्त लगभग 35-40 वर्ष के एक व्यक्ति ने थाने में प्रवेश किया. उसने बाहर खड़े मुंशी से पुलिस प्रभारी के बारे में पूछताछ करने लगा. मुंशी ने उस व्यक्ति को इस्पेक्टर मनोज  के पास भेज दिया.

उस व्यक्ति के हाव भाव को देखकर ही इस्पेक्टर मनोज समझ गये कि कोई गंभीर मामला लेकर ही यह आदमी थाने में आया है. उन्होंने उस व्यक्ति को बैठने का इशारा किया और उसके थाने में आने का कारण पूछा.
उस व्यक्ति ने बताया कि उसका नाम राजेन्द्र है. उसकी एक बड़ी बहन भी है, जिसकी आज रात किसी ने हत्या कर दी है. हत्या की बात सुनकर इस्पेक्टर मनोज के चेहरे पर चिंता की लकीरे स्पष्ट दिखाई देने लगी. उन्होने अपने स्टाफ को बुलाकर मामला दर्ज करने का आदेश दिया और स्वयं घटनास्थल पर रवाना होने के लिए कुर्सी से उठ खड़े हुए.

राजेन्द्र की सूचना पर मामला दर्ज करने के बाद इस्पेक्टर मनोज, राजेन्द्र को अपने साथ लेकर घटनास्थल की ओर रवाना हो गये. रास्ते में राजेन्द्र ने उन्हें बताया कि उसकी बहन निर्मला विधवा थी और उसे अपने पति के स्थान पर नियुक्ति मिल गई थी. निर्मला के दो बच्चे भी है. बच्चे दोनों अपनी नानी और मौसी के साथ रहते है और निर्मला अकेली रहती थी. आज सुबह उसके एक पड़ोसी ने फोन करके बताया कि निर्मला के घर में से धुआं निकल रहा है. जबकि मकान में बाहर से ताला लगा है. वह भागा-भागा बहन के घर गया और दरवाजे का ताला तोड़कर आग बुझाने के इरादे से अंदर गया. कमरे के अंदर उसने देखा कि पलंग के पास उसकी बहन जली पड़ी है. वहां का दृश्य देखकर उसके होश उड़ गये. वह तत्काल उल्टे पैर पुलिस थाने आ गया.
इसी बीच वे लोग घटनास्थल पर पहुंच गये. वहां मृतका के घर के बाहर काफी भीड़ जमा थी. लोग आपस में घटना के बारे में बातें कर रहे थे. इस्पेक्टर मनोज ने अपने साथ आए पुलिसकर्मियों को इशारा कर दिया तो वे लोग चुपचाप भीड़ में शामिल होकर लोगों के बीच चलने वाली बातें सुनने लगे.

इस्पेक्टर मनोज ने कमरे के अंदर प्रवेश किया. कमरे में भरी तेज बदबू से वे समझ गए कि आग केरोसिन डालकर लगाई गई है. चूंकि बाहर से ताला लगा हुआ था इसका मतलब अपराधी घर का जानकार था. क्योंकि ताला वही व्यक्ति लगा सकता है जिसका उस घर से कुछ न कुछ संबंध हो. इस्पेक्टर मनोज ने कमरे के अंदर देखा सामने पलंग के पास लगभग 40 साल की महिला का अधजला शव पड़ा हुआ है. उन्होंने शव के आसपास का बारीकी से निरीक्षण किया तो उन्हें लगा कि केरोसिन का तेल केवल लाश के ऊपर ही डाला गया है. इसीलिए उसके आसपास जो सामान था उस तक जितनी आग पहुंची उससे घर का सामान    धीरे-धीरे जलने लगा था. चूंकि कमरे में बहुत कुछ सामान अधजला था इससे साफ था कि आग लगाने की घटना लगभग सुबह के समय ही हुई है. इसके बाद हत्यारा मौके से भाग गया है. घर का सभी कीमती सामान यथावत था यानी हत्या के पीछे लूट का कारण न होकर कुछ और ही था. चूंकि मृतका विधवा थी और अकेली ही रहती थी इसलिए पुलिस को शक था कि हत्या का मुख्य कारण अवैध संबंध हो सकता है.

पुलिस ने पंचनामा बनाकर लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेंज दिया और राजेन्द्र को लेकर थाने आ गई. राजेन्द ने पुलिस को बताया कि उसके बहनोई की लगभग 9 साल पहले मौत हो चुकी थी. उसके बाद उसकी बहन ने विजय से दूसरा विवाह कर लिया था. विजय मुंबई में रहता है. विजय पहले से शादीशुदा था, उसकी पहली पत्नी प्रतिभा भी उसके साथ ही रहती है. यहां पुलिस को लगा कि हो सकता है सौतिया डाह के कारण प्रतिभा ने ही निर्मला को ठिकाने लगवा दिया हो. लेकिन राजेन्द्र ने बताया कि विजय से उसकी बहन की शादी प्रतिभा की रजामंदी से ही हुई थी और दोनों के बीच संबंध भी काफी अच्छे थे. दूसरी बात यह थी कि निर्मला ने विजय से शादी केवल पति का नाम पाने के लिए ही किया था. दोनों के बीच पति पत्नी जैसे संबंध नहीं थे. अपितु केवल नाम के लिए कोई व्यक्ति किसी का पति बनेगा यह बात इस्पेक्टर मनोज के गले नहीं उतर रही थी. फिर भी उन्होंने उसकी बात को नहीं काटा. इसी बीच वे दोनों पुलिसकर्मी भी थाने आ गये जो भीड़ के बीच चुपचाप लोगों की बातें सुन रहे थे.

पुलिसकर्मियों ने इस्पेक्टर मनोज को मृतका के बारे में बताया कि निर्मला के बारे में उसके आसपास रहने वालो के विचार अच्छे नहीं है. लोगों का कहना है कि मृतका काफी कामुक प्रवृत्ति की थी, जिसके लिए वह अपने बेटे की उम्र के लड़को का उपयोग करने में भी नहीं झिझकती थी. कई कुंवारे लड़के उसके आगे पीछे चक्कर लगाते रहते थे. इनमें से कई एक का उसके घर पर रात में आना जाना भी था. इस बात से इस्पेक्टर मनोज के सामने हत्या के कारण का खुलासा हो गया था लेकिन समस्या यही थी कि हत्यारा कौन था? इस बात का पता अभी लगाना बाकी था.

इस्पेक्टर मनोज का अनुभव बोल रहा था कि जब किसी महिला के अनेक दीवाने हो तो उसकी हत्या का राज अधिक देर तक राज नहीं रह सकता. उसी रात उनके एक मुखबिर ने उन्हें फोन करके बताया कि दो दिन पहले ही निर्मला का पति विजय उसके पास आया था. जिसे दूसरे दिन उसके घर में देखा गया था. यह बात काफी महत्वपूर्ण थी. क्योंकि विजय अगर मुंबई से यहां आया था तो फिर अचानक कहां गायब हो गया. दूसरी बात, हत्यारा आग लगाने के बाद घर पर ताला डालकर गया था इसलिए इस बात का शक तो उन्हें पहले से ही था कि हत्यारा जो भी था मृतका और उसके घर से काफी परिचित था.

इंस्पेक्टर मनोज के शक की सूई विजय की तरफ घुम गयी. उन्होंने बिना देर किए पुलिस टीम मुंबई के लिए रवाना कर दिया लेकिन वहां पता चला कि विजय चार दिन पहले नागपुर गया था तब से न तो वह खुद लौटकर आया है, और न ही उसकी कोई सूचना मिली है. पुलिस टीम खाली हाथ ही लौट आयी. लेकिन इंस्पेक्टर मनोज ने हार नहीं मानी. उन्होंने अपने मुखबिरों को सक्रिय रहने के लिए कहा. दो दिन बाद ही पता चला कि विजय औरंगाबाद में अपने एक रिश्तेदार के घर पर छुपा हुआ है. यह सूचना मिलते ही इंस्पेक्टर मनोज ने तुरंत पुलिस की एक टीम का गठन किया और उन्हें औरंगाबाद भेंज दिया. जहां घेराबंदी कर पुलिस टीम ने विजय को धरदबोचा और अपने साथ ले आई.

पुलिस की गिरफ्त में आने के बाद विजय समझ गया कि उसका खेल खत्म हो चुका है. इसलिए उसने बिना किसी नानुकूर के अपना अपराध स्वीकार करते हुए निर्मला हत्याकांड की पुरी घटना बयान कर दी. उसने पुलिस को बताया कि निर्मला के पति की मौत के बाद उसने अपनी दोस्ती निभाते हुए उसकी विधवा पत्नी की मदद करने की सोची, लेकिन निर्मला की कामुकता ने उसका पूरा जीवन बर्बाद कर दिया. जिससे तंग आकर उसने उसकी हत्या कर दी. विजय ने पुलिस को जो कहानी बताई वह कुछ इस प्रकार थी.

पहले पति ओमप्रकाश के साथ निर्मला का विवाह लगभग बीस साल पहले हुआ था. उस समय निर्मला की आयु लगभग 18 साल थी और वह दिखने में भी खूबसूरत थी. निर्मला भी अपनी सुंदरता का मोल खूब जानती थी और पति को कैसे वश में रखा जाएं इस बात का वह हमेशा ध्यान रखती थी. शादी के बाद से उसने कभी भी अपने पति को घर से बाहर नहीं रहने दिया था. दोनों का वैवाहिक जीवन हंसी खुशी से बीत रहा था. उम्र बढ़ने के साथ ओमप्रकाश में गंभीरता आती जा रही थी, जबकि निर्मला उससे अभी भी नई नवेली दुल्हन की तरह व्यवहार करने की मांग करती थी. उसका मन हो अथवा न हो उसे रोज रात को निर्मला की बात माननी पड़ती थी. इस बात से ओमप्रकाश काफी परेशान रहता था.

ओमप्रकाश फैक्टी मंे काम करता था. वह दिन भर फैक्टी में हाड़ तोड़ मेहनत करता था और रात को उसे निर्मला का साथ देना पड़ता था. इन सब बातों का नतीजा यह हुआ कि ओमप्रकाश कमजोर होता गया और उसे बीमारी ने ऐसा जकड़ा कि असमय ही इस दुनिया से विदा हो गया. पति का न होना किसी भी औरत के लिए दुखदाई होता है, फिर निर्मला को तो पति की जरूरत मानसिक रूप से तो थी ही शारीरिक रूप से भी उसे पति के साथ की जरूरत थी. अतः पति के न रहने पर निर्मला का मन बेचैन रहने लगा. 

ओमप्रकाश की मौत के बाद उसके दोस्त विजय ने मित्र धर्म का पालन करते हुए निर्मला को उसके पति की जगह पर नौकरी दिलाने के प्रयास शुरू कर दिए. इस काम के सिलसिले में वह अक्सर निर्मला के पास आने जाने लगा. निर्मला दो बच्चों की मां जरूर बन चुकी थी, लेकिन न तो उसके रंग रूप में कोई कमी आयी थी और न ही उसकी शारीरिक इच्छाओं में. इसलिए विजय को पास पाकर उसके अंदर की अतृप्त नारी फिर जोर मारने लगी और वह विजय के प्रति लगाव दिखाने लगी. विजय भी शादीशुदा था. नारी के हाव भाव से उसके मन की बात पढ़ना उसे भी आता था. शुरू शुरू में विजय, निर्मला के हाव भाव को अपने मन का भम्र समझता रहा, लेकिन सच कब तक छुपता जल्दी ही वह समझ गया कि निर्मला उससे एक पुरूष के तौर पर भी बहुत कुछ चाहती है. निर्मला रंग रूप से कम न थी इसलिए विजय जल्दी ही उसके प्रभाव में आ गया और अपने घर के बजाए निर्मला के साथ रात बिताने लगा. इसके बाद तो विजय, निर्मला का दीवाना बनकर रह गया. क्योंकि निर्मला जितनी सुंदर थी उतनी ही चालक भी. उसे मालूम था कि एक पुरूष स्त्री से क्या चाहता है.

पति के रात रात भर गायब रहने की बात को पत्नियां आसानी से बर्तास्त नहीं कर पाती है इसलिए निर्मला ने समझदारी से काम लेते हुए विजय की पत्नी प्रतिभा से दोस्ती कर ली और उसे दीदी कहने लगी.
प्रतिभा स्वभाव से सीधी सादी महिला थी. वह निर्मला का बहन बनने के मकसद को नहीं समझ सकी और उल्टा वह अपने पति को निर्मला की मदद के लिए दबाव डालती रही. विजय तो खुद यही चाहता था. मदद के नाम पर वह कभी निर्मला के घर पर चला जाता तो कभी निर्मला उसके घर पर आ जाती थी. उसने विजय को जीजाजी कहना भी शुरू कर दिया और इस नए रिश्ते की आड़ में वह विजय से अपने जीवन में पुरूष की आई कमी को दूर करने लगी.

ऐसा लगभग तीन साल तक चलता रहा. इसके बाद जब निर्मला ने देखा कि प्रतिभा और विजय दोनों उसकी गिरफ्त में है तो उसने प्रतिभा से कहा कि उसके विधवा होने के कारण जमाने भर के लोग उस पर बुरी नजर रखते हैं. इतना ही नहीं, जीजाजी और मेरे बारे में भी गलत बाते करते हैं. अगर तुम इजाजत दो तो जीजाजी को मैं केवल नाम के लिए अपना पति बना लू. इससे मैं लोगों की बुरी नजर से बची रहूंगी और ऐसा करने से लोगो का मुंह भी बंद हो जाएगा. 

कोई और औरत होती तो भले ही नाम के लिए ही क्यो न हो वह अपने पति को किसी के साथ नहीं बांटती, लेकिन न जाने निर्मला ने ऐसा क्या जादू किया था कि प्रतिभा उसकी हर बात मानने के लिए तैयार थी. उसने निर्मला को विजय के साथ शादी करने की इजाजत दे दी. प्रतिभा की रजामंदी मिलते ही निर्मला और विजय ने शादी कर ली. प्रतिभा के नजरों में यह शादी केवल दिखावे के लिए थी. इसमें पति पत्नी के रिश्तो की कोई जगह न थी, लेकिन वास्तविकता यह थी कि निर्मला अब हर रात विजय के साथ बिताने लगी थी.

विजय भी ओमप्रकाश का हमउम्र था और उम्र के उस दौर में पहुंच चुका था जहां आदमी की शारीरिक जरूरतें न केवल कमजोर पड़ने लगती है बल्कि वह खुद को भी थका हुआ सा महसूस करने लगता है. ऐसे में निर्मला, विजय को तरह तरह की दवाइयां खिलाने लगी. जब उन दवाइयों का भी कुछ असर नहीं हुआ तो उसने वियाग्रा का सहारा लिया. विजय को निर्मला के जिद के कारण प्रति रात दो या तीन गोलियां वियाग्रा की खानी पड़ती थी. 

वास्तव में देखा जाएं तो निर्मला निजी संबंधों को लेकर किसी मानसिक विकृति का शिकार थी. ऐसे में विजय को रोज ही अजीब हालातों से गुजरना पड़ता था और एक समय ऐसा आया कि निर्मला से बचने के लिए विजय ने नौकरी छोड़ दी और परिवार को लेकर मुंबई चला गया.
निर्मला को पति के स्थान पर नौकरी मिल गई थी. इसलिए उसके सामने गुजारे के लिए कोई समस्या नहीं थी. उल्टे विजय के भाग जाने के बाद उसने कालोनी के युवा लड़को को अपने घर बुलाना शुरू कर दिया था. नतीजा यह हुआ कि उम्र के इस दौर में भी कई युवक उसके दीवाने हो गये.
इधर मुंबई जाकर विजय कपड़े का व्यापार करने लगा, लेकिन जल्दी ही उसे निर्मला के साथ बिताएं पलों की याद सताने लगी तो उसने बीच बीच में समय निकालकर निर्मला के पास आना जाना शुरू कर दिया. निर्मला को भला क्या एतराज था. 

इधर विजय को जल्दी ही पता चल गया कि उसकी गैरमौजूदगी में निर्मला के पास कई युवकों का आना जाना है. उसने निर्मला को काफी समझाया. उसने निर्मला से कहा कि उसके लिए उसने अपने परिवार को धोखा दिया है और अब तक देता आ रहा है. उसके लिए वह अपने परिवार को छोड़कर यहां आता है. वह जिस रास्ते पर जा रही है. वह गलत है. इसमें बदनामी के अलावा कुछ नहीं मिलेगा. वह इस रास्ते को छोड़ दें, लेकिन निर्मला के लिए यह असंभव था. विजय के लाख समझाने के बाद भी उसने उसकी बात नही सुनी.

विजय के अनुसार घटना वाले दिन भी यही हुआ था. घर में झूठ बोलकर जब वह एक दो दिन के लिए निर्मला के साथ रात बिताने की सोचकर आया था तो काफी रात हो चुकी थी. जब वह निर्मला के घर पर पहुंचा उस वक्त लगभग आधी रात हो चुकी थी. आसपास के सभी लोग सो चुके थे. चारों ओर अंधेरा और सन्नाटा छाया हुआ था. उसने घर का दरवाजा खटखटाया. कुछ ही देर में घर का दरवाजा खुला और अचानक एक युवक घर के अंदर से निकल कर अंधेरे में खो गया. 

यह देखकर उसका दिमाग धूम गया. उसने घर के दरवाजे को जोर से धक्का देकर भीतर गया. कमरे में निर्मला हड़बड़ाई हुई अपनी स्थिति सुधारने का प्रयास कर रही थी. विजय को यह समझते देर नहीं हुई कि कमरे में क्या चल रहा था. उसने जब इस बारे में निर्मला से बात की तो वह उल्टे सीधे जबाव देने लगी. इसी बात को लेकर दोनों में विवाद होने लगा और विवाद इतना बढ़ गया कि यह दूसरे दिन तक चलता रहा. शाम होते होते निर्मला ने विजय को किसी तरह से समझाबुझा कर मना लिया. विजय ने भी उसे माफ कर दिया. लेकिन रात में जब फिर निर्मला ने अपना रूप दिखाया तो विजय परेशान हो गया. ऊपर से निर्मला उसकी मर्दानगी को लेकर ताना मारने लगी तो विजय से यह बात सहन नहीं हुई. वह अपमान का घूंट पीकर रह गया. उसे निर्मला के ऊपर बहुत गुस्सा आ रहा था, लेकिन वह चुप रहा.

घंटो करवटें बदलने के बाद निर्मला जब सो गयी तो विजय धीरे से उठा और उसने तकिये से उसका गला घोंट दिया. कुछ देर तक हाथ पैर पटकने के बाद निर्मला शांत हो गयी. तब उसने घर में रखा कैरोसिन निर्मला के ऊपर उड़ेल दिया और आग लगा दी. इसके बाद उसने दरवाजा खोलकर बाहर झांका. आसपास नजर दौड़ाकर देखा कोई नहीं था. वह घर से बाहर निकला और दरवाजे पर ताला डालकर वहां से भाग गया. 



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