जी हाँ मैं हूँ, किसान
आपका अन्नदाता I
जो खुद के बीबी बच्चों के लिए
दो जून की रोटी भी नहीं जुटा पाता
जो खुद अन्न की कमी से
हर रोज फाँसी लगाता
आप लोग, आप की सरकार
मेरे लिए कितनी योजनाएँ बनाती है
पर एक भी सहायता
हम लोग तक पहुँच नहीं पाती है ।
सबसे पहले बंद करे तमाशा
यह सर्व शिक्षा अभियान का I
पढ़ लिखकर हमारे बच्चे
नौकरी की तलाश में
शहर को निकल जाते हैं I
वहाँ जाकर मजदूरी करते हैं
रिक्शा चलाते हैं
पर अपनी माँ, अपनी मिट्टी को
छूने से कतराते हैं ।
हो कोई ऐसी शिक्षा
जो सिखाए कृषि के उन्नत तरीके I
कहते हो भारत
एक कृषि प्रधान देश हैं !
फिर इसकी शिक्षा प्रणाली में
प्राथमिक स्तर से ही क्यों नहीं
कृषि और पशु पालन
का समावेश हैं ?
दो कुछ ऐसा ज्ञान
जिससे खेतों में लहराए बालियाँ
स्वस्थ हो हमारे पशु
दूध दहीं की बहें नदियाँ
कभी सोचा हैं ये मिलावट
का जमाना क्यों आया ?
क्योंकि सिर्फ दस के लिए पर्याप्त
वस्तु को चालीस लोगों
के लिए सुलभ बनाया।
अभी भी समय हैं जाग जाओं
महानगरों के विस्तार के लिए
गाँवों की हत्या मत करों I
खेती योग्य भूमि पर क्रंकीट
के जंगल खड़े मत करों
शहरों में मॉल में खोलने
की जगह गाँवों में
तालाब खुदवाओं ।
गाँव में कुछ ऐसा विकास कराओ
जिससे हमारे बेटे गाँव को वीरान न करें I
आज खेती व किसान
सूखे व बाढ़ से नहीं,
वर्षा व धूप से भी नहीं,
बेटों की उपेक्षा के कारण मर रहे हैँ ।
लोगों की संकुचित सोच
का दायरा बढ़ाओं
पढ़ना जरूरी हैं यह ठीक हैं
पर नौकरी करने से
कृषि करना बेहतर
इस सोच का विस्तार लाओं I
मौलिक एंव स्वरचित
पढ़ने के लिए आप सभी का हृदय से आभार
अरुणिमा दिनेश ठाकुर