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EK AWAJ (एक आवाज) | The voice of all rape victims

17 दिसम्बर 2019

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एक आवाज



वो जान सी अनजान,

वो रोती रही आज,

वो मांगे कई माफ़ी,

वो लड़ती रही आज,

हर इक साँस,कस्ती हुयी,आँखे बंद,ढलती हुयी,

पर न ख़तम हुयी आस,

वो न शांत,

हर इक जान की आवाज,

वो भी कह रही आज,

क्यों लिया जनम?

माँ तूने दिया होता कल,मुझे कोख में ही मार,

तेरे हांथो ही मिल जाता मुझे,

प्यारा सा उपहार,

जो इस पीड़ा से तो कम,

वही रहता मेरा उपचार.


(जो इस पीड़ा से तो कम,

वही रहता मेरा उपचार

क्यों लिया जनम?

माँ तूने दिया होता कल मुझे,कोख में ही मार.....)


हाँ,

गलती क्या थी मेरी, मुझे बताओ ना,

हाँ मैं जीना चाहती थी दो पल,

मुझे सताओ न,

एक उम्मीद थी की अब इतना कुछ सहा था,

माँ पापा की थी मैं लाज,

अब लाश मुझे बनाओ न,


(क्या थी गलती मेरी,

मुझे बताओ ना,

क्या था मेरा वजूद,

मुझे बातो न)


छोटी छोटी तिनको से सजाया सपना,

एक घर हो परिवार, रहे साथ सबका,

मुझे भी चाह इक हंसती हुयी ज़िन्दगी,

छोड़ पीछे बंदगी ,

मैं उड़ना चाहूँ पर ,

जीत गई आज देखो दरिंदगी भरी ये दुनिया।


चीखती रही मैं आज,

हैवान हँसते रहे, सुन आवाज,

उनके चेहरे पे न सिकन,

बेच खाये माँ बहन और पैदा करने वाले बाप ।


हाँ मैं रुकू कैसे बताओ इस जमीन पर,

आत्मा भी रो रही मेरी आज देख इस जमीर पर,

आज दलदल भरी झील में,

फंसे तो आज हम हैं,

पर कल जरूर निगलेगी, ये दुनिया,


बेटी बेटी बोलोगे और न तुम बेटी बचाओगे,

बेटी न रही तो कल खाक, बहु लाओगे,

पछताओगे, जाओगे, खाक में मिल जाओगे,


कब्र खोदो, उन दरिंदो की, उन अन्धो की,

नंगो की, लटका दो फंडो पे,

जिनके वजूद आज दंगो सी,

आज जंगो सी,

कर रहे बातें बड़ी,

और काम देखो,

पाखंडो सी,


या उड़ा दो उनके सर, जिसने आज हरकत ऐसे की ,

दिला दो आज इंसाफ, सुन लो गुहार आज हम जैसे मुर्दो की ,

ये आवाज बचे आज इंसानियत के परिंदो की,

ये आवाज आने वाले कल के नस्लों की,


एक आवाज, ये गुहार....

ये गुहार, एक आवाज |







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प्रकृति एक भविष्य

3 मई 2018
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5 मई 2018
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एकता एक शक्ति निरंतर परिवर्तन सर पे आज मंतर,भूख की तलब से रखते आज अंतर,इस भीड़ में झाँकते गहराइयों में,दफने आज,सपने खास,पास की बुराइयों में,अग्रगामी जो सुनामी, बातें जो सुनानी, धर्म को जो आज बांटते,मुक्की उनको खानी,ये बतानी बातें,दो चा

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17 दिसम्बर 2019
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एक आवाजवो जान सी अनजान,वो रोती रही आज,वो मांगे कई माफ़ी,वो लड़ती रही आज,हर इक साँस,कस्ती हुयी,आँखे बंद,ढलती हुयी,पर न ख़तम हुयी आस,वो न शांत,हर इक जान की आवाज,वो भी कह रही आज,

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