नई दिल्ली : उत्तरप्रदेश में पूर्ववर्ती सरकारों द्वारा तर्क दिया जाता रहा कि यूपी में चीनी मिलें चलाना अब सरकार के बस से बाहर की बात हो चुकी है। इसी बात को समझाते हुए मायावती के शासनकाल में राज्य की लगभग 21 चीनी मिलें साल 2011 पोंटी चड्ढा ग्रुप को बेच दी गई। इंडिया संवाद ने पहले भी अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि मायावती ने इन मिलों को महज 31 करोड़ 62 लाख रुपये में नीलाम किया।
इन सबसे बीच यूपी की बलरामपुर चीनी ने एक नया इतिहास बनाकर सबको चौका दिया है। बलरामपुर चीनी ने वित्त वर्ष 2017 में 592 करोड़ का मुनाफा कमाया है जो कि ऐतिहासिक है। बलरामपुर का यह मुनाफा साल 2016 में 100 करोड़ था से बढ़ा है।
यूपी में अन्य चीनी मिलों की बात करें तो बलरामपुर के चीनी वर्ष 16/17 (अक्टूबर-सितंबर) में 0.9 मिलियन टन (एमटी) के उत्पादन के मुकाबले बजाज ने 1.34 मिलियन टन का उत्पादन किया। इसके बावजूद भी बजाज हिंदुस्तान को वित्त वर्ष 2017 में 92 करोड़ का घाटा हुआ। हालाँकि रेवेन्यू के लिहाज से बलरामपुर का स्थान रेणुका शुगर से आगे नहीं है।
रेणुका शुगर ने वित्त वर्ष 2017 में 1,1944 करोड़ का टर्नओवर किया लेकिन फिर भी वह 1,039 करोड़ के घाटे में रहा।
बजाज ने जहाँ वित्तवर्ष 2016 में अपने शुगर मिल पर 802 करोड़ खर्च किये वहीँ रेणुका शुगर ने 931 करोड़ खर्च कर डाले। बलरामपुर चीनी ने इनके मुकाबले वित्त वर्ष 2016 में महज 55 करोड़ खर्च किये।
आखिर क्या कारण है बलरामपुर चीनी के मुनाफे का
कंपनी के इन्वेस्टमेंट अडवाइजर एसपी तुलिसन का कहना है कि बलरामपुर के मुनाफे का सबसे बड़ा कारण यह है कि कंपनी पर फ़िलहाल कोई कर्ज नहीं है और कंपनी का पूरा ध्यान सिर्फ और सिर्फ शुगर पर रहता है। वह कहते हैं कि कंपनी का मैनेजमेंट और कॉर्पोरेट गवर्नेंस बेहद मजबूत है। कंपनी में बड़ी संख्या में विदेशी निवेशक भी अब शामिल होना चाहते हैं। फिलहाल कंपनी ने 19 प्रतिशत का विदेशी निवेश है।
बलरामपुर की यूपी में 10 मिलें
बलरामपुर की चीनी मिलें यूपी में प्रतिदिन तकरीबन 7,6500 टन गन्ने का इस्तेंमाल करती है। जो कि देश में दूसरा सबसे बड़ा है। शुगर उत्पादन के अलावा कंपनी इससे तकरीबन 163 मेगावाट बिजली का भी उत्पादन करती है। कंपनी एथेनॉल और इंडस्ट्री एल्कोहल भी तैयार करती है।
10 साल पहले कंपनी पर था 1 हजार करोड़ का बकाया
कंपनी का लगातार हो रहा मुनाफा इसके बकाये को कम करने में मदद कर रहा है। पिछले साल बलरामपुर ने बकायेदारों का 472 करोड़ चुकाए थे। जिसने मार्च 2017 तक कंपनी के बकाये को 205 करोड़ पर ला दिया। गौरतलब है कि आज से 10 साल पहले वित्त वर्ष 2008 में कंपनी पर तकरीबन 1000 करोड़ का बकाया था।
बलरामपुर चीनी पर एक नजर
बलरामपुर शुगर की सबसे बड़ी बात यह है कि कंपनी की सारी 10 मिलें यूपी में ही मौजूद हैं। विवेक सरावगी ने 30 साल के अपने कारोबारी जीवन में कभी बलरामपुर चीनी का इतना शानदार प्रदर्शन नहीं देखा। लेकिन यह साल कारोबार के लिहाज से असाधारण दिख रहा है। कोलकाता मुख्यालय वाली इस कंपनी की 10 चीनी मिल हैं और इसने चालू वित्त वर्ष के शुरुआती 9 महीनों में ही करीब 400 करोड़ रुपये का मुनाफा कमा लिया है, जो वित्त वर्ष 2008-09 में हुए 226 करोड़ रुपये के रिकॉर्ड सालाना मुनाफे से भी ज्यादा है।
वित्त वर्ष 2016 में बलरामपुर चीनी को 99 करोड़ रुपये का मुनाफा हुआ था जबकि वित्त वर्ष 2015 में उसे 58 करोड़ रुपये का घाटा सहना पड़ा। कंपनी के प्रबंध निदेशक सरावगी ने कहा, 'कई साल बाद अब कंपनी अपने कर्ज का भुगतान करने की स्थिति में दिख रही है। देश भर में चीनी का उत्पादन घटा है, लेकिन उत्तर प्रदेश में उत्पादन बढ़ गया है। हमारी कंपनी में भी उत्पादन बढ़ा है।'