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भारत-अफ्रीका के गहराते संबंध और इनके निहितार्थ

28 मई 2022

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भारत-अफ्रीका फोरम शिखर सम्मलेन के तीसरे संस्करण का आयोजन 26 से 29 अक्टूबर 2015 तक नई दिल्ली में होने जा रहा है। सभी 54 अफ़्रीकी देशों को निमंत्रण देकर भारत सरकार ने अफ्रीका से अपने संबंधों को आगे ले जाने का महती और ऐतिहासिक प्रयास किया है। इस सन्दर्भ में भारत-अफ्रीका के बीच के द्विपक्षीय संबंधों की गहराई से पड़ताल अपेक्षित है।

आबादी के हिसाब से अफ्रीका एशिया के बाद विश्व का दूसरा सबसे बड़ा महादेश है। अभी हाल ही में इसकी आबादी एक अरब के पार हो गयी है। विश्व में सिर्फ एशिया और अफ्रीका ही ऐसे महादेश हैं जिनकी आबादी एक अरब और उससे अधिक है। अफ्रीका अकेला महादेश है जहां संयुक्त राष्ट्र संघ से मान्यता प्राप्त विश्व के सर्वाधिक 54 देश हैं। इनमे से बड़ी संख्या में ऐसे देश हैं जिनकी सीमायें समुद्र तक नहीं पहुँचतीं। जिसके परिणामस्वरूप इन्हें लैंडलॉक्ड (स्थल रुद्ध) कहा जाता है। लैंडलॉक्ड देश स्वभावतः अपेक्षाकृत गरीब होते हैं क्योंकि ये देश सर्वांगीण विकास तथा विदेश व्यापार में पिछड़ जाते हैं। पूरे अफ़्रीकी महादेश को भाषायी दृष्टिकोण से चार हिस्सों में बांटा जाता है: अरबी, अंग्रेज़ी, फ्रेंच, तथा पुर्तगाली प्रभाव वाले क्षेत्र।

अफ्रीका को अतीत में काला महादेश कहा गया था। विशेषकर पश्चिमी साहित्य ने मिस्र जैसे देशों को, जहां के लोग अपेक्षाकृत साफ़ रंग के हैं, अफ्रीका से अलग मानते हुए शेष अफ्रीका को ‘सब-सहारन अफ्रीका’ नाम दे दिया। शेष अफ्रीका को यह नाम असहज बनाता रहा है। अफ्रीका निरंकुश सत्ताओं तथा तरह-तरह के भ्रष्टाचारों के लिए भी जाना गया। यहां पर उपलब्ध अकूत प्राकृतिक सम्पदा भी भ्रष्टाचार के केंद्र में रही। दक्षिण अफ्रीका तो दशकों तक रंगभेद जैसी विभाजनकारी नीतियों का शिकार रहा। कुल-मिलाकर अफ्रीका के विषय में शेष विश्व में ऐसी कोई सकारात्मक बात नहीं होती थी जिससे लोगों का ध्यान उधर जाता।

परन्तु पिछले दो दशकों में अफ्रीका की स्थिति में आमूलचूल परिवर्तन हुआ है। यह परिवर्तन इतनी तेजी से हुआ है जिसकी कल्पना शेष विश्व ने नहीं की थी। अभी एशिया के बाद अफ्रीका दूसरा सबसे तेज गति से विकास करने वाला महादेश है। अफ्रीका पूरे विश्व से व्यापार और निवेश आकर्षित करने लगा है। चूँकि अफ्रीका की जनसंख्या वृद्धि दर विश्व में सर्वाधिक है इसलिए आशा की जाती है कि इसकी आर्थिक विकास दर आनेवाले समय में और भी बढ़ सकती है। अफ्रीका की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि यह बड़ी आसानी से अमरीकी और एशिया महादेशों के बीच एक सेतु की भूमिका निभा सकता है।

हमारी आम धारणा के विपरीत भारत की तुलना में अफ्रीका की प्रति व्यक्ति आय अधिक है। साथ ही, स्वास्थ्य के कई संकेतकों की दृष्टि से भी भारत की तुलना में अफ्रीका की स्थिति बेहतर है। अफ्रीका से भारत के संबंध वैसे तो प्राचीन काल से ही हैं पर मध्य काल से काफी प्रमाण मिलते हैं। उड़ीसा के कोणार्क मंदिर पर उकेरी गयीं जिराफ की प्रस्तर मूर्तियाँ एक विलक्षण उदाहरण हैं। आधुनिक काल में जब हमारे यहाँ अंग्रेजों का राज था तब पहली बार बड़ी संख्या में अफ्रीका के विभिन्न क्षेत्रों में भारतीय मजदूर भेजे गए जिन्हें गिरमिटिया कहा गया। एक प्रमाण के अनुसार 1820 के दशक में पहली बार भारतीय मजदूर मॉरीशस पहुंचे थे। इस तरह भारतीय मजदूरों को गए अब लगभग दो सौ साल होने वाले हैं। मजदूरों के बाद दुकानदारों तथा व्यापारियों के जत्थे जाने लगे। यह एक व्यापारी ही था जिसको कानूनी सलाह देने के सिलसिले में महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका पहुँच गये थे। आज दक्षिण अफ्रीका, मॉरीशस, केन्या, यूगांडा, नाइजीरिया, और इथिओपिया जैसे देशों में बड़ी संख्या में भारतीय मूल के लोग रह रहे हैं। इन लोगों की आर्थिक, सामाजिक तथा शैक्षणिक स्थिति स्थानीय लोगों से काफी बेहतर है।

इस सबका परिणाम यह हुआ कि भारत तथा अफ्रीका के बीच संबंध बनने लगे। इन संबंधों का एक विशिष्ट पहलू यह रहा कि इसमें सरकारों के बीच कम पर आम लोगों के बीच के रिश्ते गहरे बन गए। धीरे-धीरे भारतीय वहाँ के समाजों में रच-बस गए जिससे आज भारत को बहुत लाभ हो रहा है। दरअसल भारत की स्थिति अन्य देशों से इस अर्थ में भिन्न है क्योंकि अन्य देश जहाँ सिर्फ आर्थिक रिश्ते ही बना पाते हैं वहाँ भारत का सदियों से सामजिक रिश्ता कायम है।

इस दृष्टि से भारत को चीन की तुलना में भी बढ़त हासिल है। सदियों से बनाया हुआ यह सामाजिक रिश्ता भारत के प्रति अफ़्रीकी देशों में विश्वास और भरोसा पैदा करता है। इसलिए आज भारत, अफ्रीका के लिए एक विश्वसनीय मित्र देश है। चूंकि चीन की ऐसी हैसियत नहीं है अतः चीन संदेह की नजर से देखा जाता है। असल में चीन की शक्ति आर्थिक है। अपनी आर्थिक शक्ति की बदौलत चीन अफ्रीका के लिए सबसे बड़ा निवेशक है। चीन अफ्रीका की प्राकृत सम्पदाओं का भरपूर दोहन कर रहा है। अभी अफ्रीका का शासक वर्ग धन के लालच में ऐसा करने को मजबूर है। पर जैसे-जैसे अफ़्रीकी देशों में लोकतान्त्रिक मूल्यों की जड़ें गहरी होंगी, वैसे-वैसे चीन की गतिविधियों की गहन समीक्षा भी होगी। जिससे आने वाले समय में चीन की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। चीन और भारत में एक और अंतर है। जहाँ चीन का ज्यादातर निवेश सरकारी है, वहीँ भारत की ओर से होने वाला सर्वाधिक निवेश निजी कंपनियों का है। इस दृष्टिकोण से भी भारत-अफ्रीका व्यापारिक और निवेश संबंध अधिक स्थायी लगते हैं।

इसके अलावा भारत ने रंगभेद की नीति का विरोध करके भी अफ्रीका का साथ दिया था। भारत की साख एक लोकतांत्रिक देश के रूप में भी स्थापित है। अब चूंकि ज्यादातर अफ़्रीकी देश लोकतांत्रिक हो गए हैं इसलिए यह स्वाभाविक है कि अफ्रीका अपने को भारत से निकटता का सम्बन्ध बनाने में सहज महसूस करता है।

इतनी सुविधाजनक स्थिति के बावजूद भारत सरकार की ओर से द्विपक्षीय संबंधों को उत्तरोत्तर मजबूत करने के जैसे प्रयास होने चाहिए थे, नहीं हुए। अभी हाल तक हमारा ध्यान पश्चिमी देशों पर ही रहा था। अब लगता है कि भारत सरकार ने अफ्रीका के महत्त्व को समझा है। यही कारण है कि अफ्रीका से बाहर अफ्रीका पर सबसे बड़ा सम्मेलन भारत आयोजित करने जा रहा है। अफ्रीका से संबंध मजबूत करने से नाना प्रकार के लाभ होंगे।

कई अफ़्रीकी देशों के लिए भारत कम खर्चीली पर उत्तम शिक्षा का केंद्र है। इसीलिए बड़ी संख्या में अफ़्रीकी छात्र भारत पढ़ने के लिए आते हैं। अफ्रीका में भारत से ऑनलाइन शिक्षा भी उपलब्ध कराई जाती है। कई स्थानों पर भारत के विश्वविद्यालयों ने अपने केंद्र भी स्थापित किये हैं। इसी तरह कम खर्च में स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध करने के लिए भी भारत जाना जाता है। स्वाभाविक है कि बड़ी संख्या में अफ़्रीकी इलाज के सिलसिले में भारत आते हैं। भारत में बनी दवाओं के लिए भी अफ्रीका एक अच्छा बाज़ार है। केवल शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में जब इतनी संभावना है तो सारे क्षेत्रों में संबंध बढ़ाने पर कितना लाभ होगा इसका अनुमान लगाना भी अभी कठिन है। अतः जैसे-जैसे संबंध घनिष्ठ होंगे, वैसे-वैसे पारस्परिक व्यापार भी बढ़ेगा। आर्थिक लाभ के अतिरिक्त 54 देशों का समर्थन हासिल करके भारत अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर अपना कद बढ़ा सकता है।

उपरोक्त की दृष्टि से भारत को चाहिए कि वह अफ्रीका के लिए एक रणनीति तैयार करे। अफ्रीका के सभी 54 देशों पर समान रूप से ऊर्जा खर्च करना समझदारी का काम नहीं होगा। भारत के संबंध मूलतः अंग्रेजी भाषा वाले क्षेत्रों से रहे हैं। इसलिए हमें सबसे अधिक इन्हीं देशों पर ध्यान देना चाहिए। दूसरा, आबादी के हिसाब से नाइजीरिया, इथिओपिया, मिस्र, दक्षिण अफ्रीका, केन्या, यूगांडा, आदि महत्वपूर्ण हैं। तीसरा, न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत पर आधारित ग्रेविटी मॉडल हमें यह सीखता है कि किन्हीं दो देशों के बीच के आर्थिक और व्यापारिक संबंध इन देशों के बीच की भौगोलिक तथा अन्य दूरियों पर निर्भर करते हैं। इस दृष्टि से पूर्वी अफ़्रीकी देश भारत के सबसे करीब हैं क्योंकि ये सारे देश भारत के सामुद्रिक पडोसी हैं। इसलिए हमें पूर्वी अफ़्रीकी देशों पर अपना ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

प्रधानमंत्री मोदी ने वैसे तो सभी महादेशों की यात्रा की है जिनमें दो अफ़्रीकी देश – सेशेल्स तथा मॉरीशस भी शामिल हैं। परन्तु अभी तक अफ़्रीकी महादेश का मुख्य हिस्सा यानी मेनलैंड अछूता रहा है। इस सन्दर्भ में सभी अफ़्रीकी देशों को एक साथ बुलाना विशेष महत्त्व रखता है। मोदी सरकार की विदेश नीति का एक विशिष्ट पक्ष यह रहा है कि इसने किसी भी देश के छोटे होने पर भी उसे कम महत्त्व नहीं दिया है। उदाहरण के लिए भूटान, मंगोलिया तथा फिजी जैसे देशों को लिया जा सकता है। इस दृष्टि से सभी अफ़्रीकी देशों को सम्मान देकर भारत यह साबित करने में सफल हो रहा है कि वह सबके साथ बराबरी के सिद्धांत का पालन करता है। । यदि अफ़्रीकी देशों पर अपेक्षित ध्यान दिया गया तो संभव है भारत का इन देशों के साथ एशिया के बाद सर्वाधिक द्विपक्षीय व्यापार हो सकेगा।

अफ्रीका दुनिया का सर्वाधिक युवा महादेश है। यह महादेश प्राकृतिक सम्पदाओं से भी भरा है। भारत-अफ्रीका सम्बन्ध दोनों पक्षों के लिए लाभकारी होंगे। कुछेक अफ़्रीकी देशों ने अच्छी तरक्की भी की है जिससे भारत को सीखना चाहिए। अफ्रीका से संबंध बनाने में हमारी विनम्रता और उनसे सीखने की हमारी ललक का अन्यतम योगदान होगा। हमें उन्हें किसी भी तरह अपने से कमतर समझने की भूल नहीं करनी चाहिए। बोत्सवाना एक ऐसा अफ़्रीकी देश है जहां उसकी आज़ादी के समय यानी 1966 में सिर्फ 40 स्नातक थे वह भी विदेश के पढ़े। अर्थात उच्च शिक्षा को कोई साधन नहीं था। पर आज यह देश विश्व के सर्वाधिक तेज गति से आर्थिक विकास करने वाले देशों में गिना जाता है। अभी दो दशक पूर्व एक दूसरे अफ़्रीकी देश – रवांडा में खूनी जातीय संघर्ष हुआ था जिसमें लाखों लोग मारे गए थे। पर आज यह देश विश्व में आर्थिक तरक्की की मिसाल पेश रहा है। केन्या में गरीब लोग मोबाइल फ़ोन के माध्यम से पैसों का आदान-प्रदान और खरीद-बिक्री करते हैं। इस तरह की सुविधा अभी तक हमारे देश में नहीं है। नाइजीरिया ऐसा देश है जहां कहा जाता है कि विश्व की सर्वाधिक फिल्में बनाई जाती हैं। एथिओपिया का इतिहास हजारों वर्ष पुराना है और इसे मानव जाति का उद्गम स्थल भी कहा जाता है।

इस तरह आज अफ्रीका संभावनाओं से भरा महादेश है जहां प्रचूर विविधतायें हैं। इसलिए यह मुनासिब है कि हम इसके महत्त्व को समझें और इससे निकटता बढ़ाएं। यह कितनी बड़ी विडंबना है कि अभी बहुत कम ही अफ़्रीकी देश हैं जिनसे भारत सीधे वायु मार्ग से जुड़ा है। हमारी कोशिश होनी चाहिए कि अधिक से अधिक देशों से हमारा संपर्क सीधे वायु मार्ग से हो। भारत-अफ्रीका सम्बन्ध न केवल द्विपक्षीय बल्कि वैश्विक दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण हैं। यदि भारत-अफ्रीका खुशहाल होते हैं तो पूरे विश्व की एक तिहाई से अधिक आबादी खुशहाल हो जायेगी। अंततः पूरे विश्व में शांति और समृद्धि लाने में भारत-अफ्रीका के पारस्परिक संबंधों का महती योगदान होगा।

लेखक निवेश एवं लोक परिसंपत्ति प्रबंधन विभाग , वित्त मंत्रालय ,भारत सरकार में संयुक्त सचिव हैं। लेख में व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं ।

4  सितम्बर  2018 

 


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पिछले कुछ दिनों से मालदीव में राजनीतिक घटना क्रम बहुत तेजी से बदल रहा है। हुआ यह कि वहाँ के राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन ने मालदीव के सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश तथा एक न्यायाधीश को गिरफ़्तार

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भारत-अफ्रीका के गहराते संबंध और इनके निहितार्थ

28 मई 2022
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भारत-अफ्रीका फोरम शिखर सम्मलेन के तीसरे संस्करण का आयोजन 26 से 29 अक्टूबर 2015 तक नई दिल्ली में होने जा रहा है। सभी 54 अफ़्रीकी देशों को निमंत्रण देकर भारत सरकार ने अफ्रीका से अपने संबंधों को आगे ले जा

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1857 की क्रांति की 160वीं जयंती

28 मई 2022
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आज ही के दिन ठीक एक सौ साठ साल पहले यानी 10 मई 1857 को जिस ऐतिहासिक क्रांति का सूत्रपात मेरठ से हुआ वह कई अर्थों में विलक्षण थी । क्रांति का क्षेत्र व्यापक था और इसका प्रभाव लम्बे समय तक महसूस किया गय

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