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भरत शरण के बारे में

चंबल और बुन्देलखण्ड की मिश्रित माटी में पलता एक जिंदादिल कचनार।

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भरत शरण की पुस्तकें

अभिव्यक्तियाँ

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खैर अंजाम जो भी हो सब हँस के झेल रहा हूँ मैं। कभी वक्त मुझसे तो कभी वक्त से खेल रहा हूँ मैं।।

2 पाठक
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निःशुल्क

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भरत शरण के लेख

तालीम

4 अगस्त 2022
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बचपन में मास्टर जी के डण्डे के साथ-साथ मधुमक्खी के डंक ने भी प्रेरणा दी कि अगर कोई आपके मुँह का निवाला छीन निज मुँह मिठास हेतु मुँह मारे तो आप की सूझ-बूझ से उसका मुँह इतना जरूर सूज जाना चाहिए कि भविष्

अनुभव नीरस जीवन के।

28 जुलाई 2022
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छोड़ गाँव की अल्हड़ मस्ती,खुद को समझता शहरी हस्ती।सोच ब्रांडेड पर चींजे सस्ती,बातें जन-जन कीं अब डसती।।छूट गया ये रक्षाबंधन।टूट गया सपना तरु चंदन।।अब लगता नहीं मन किसी मोह में।यौवन गुजरे उहापोह मे

अनुभव नीरस जीवन के

28 जुलाई 2022
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छोड़ गाँव की अल्हड़ मस्ती।खुद को समझता शहरी हस्ती।।सोच ब्रांडेड पर चीजें सस्तीं।बातें जन-जन की अब डसतीं।।छूट गया ये रक्षाबंधन।टूट गया सपना तरु चंदन।।अब लगता नहीं मन किसी मोह में।गुजरे यौवन उहापोह

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