भरत शरण
2 किताबे ( 2 हिंदी )
3 रचनायें ( 3 हिंदी )
चंबल और बुन्देलखण्ड की मिश्रित माटी में पलता एक जिंदादिल कचनार।
अभिव्यक्तियाँ
खैर अंजाम जो भी हो सब हँस के झेल रहा हूँ मैं। कभी वक्त मुझसे तो कभी वक्त से खेल रहा हूँ मैं।।
अभिव्यक्तियाँ
खैर अंजाम जो भी हो सब हँस के झेल रहा हूँ मैं। कभी वक्त मुझसे तो कभी वक्त से खेल रहा हूँ मैं।।