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भूखे लकड़बग्घे- 2

19 मई 2023

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"अब क्या होगा... क्या करूं , इनका अकेले मुक़ाबला करना सही रहेगा या इनके वार का इंतज़ार करूं .... बहुत जल्द ही ये और नज़दीक आ जाएंगे ... मेरे पास तो एक ही कुल्हाड़ी है," ये सारी बातें मेरे दिमाग़ में चल रहीं थीं क्यूंकि धीरे धीरे उन लकड़बग्घों का झुण्ड नज़दीक पहुंच रहा था... फैक्ट्री के उस हिस्से में कम रौशनी के कारण उनकी आंखे चमक रहीं थीं , जिनसे उनकी गिनती का पता चल रहा था ... मेरे दिल की धड़कनें तेज हो उंठी थीं, अपने रक्त की गर्मी को मैं अपनी रगों में महसूस कर सकता था... डर ने मुझे भी अन्दर से हिला दिया था और एेसे मौकों पर अक्सर किसी- किसी का दिमाग़ तेज़ काम करता है, मुझे याद आया कि मेरी जेब में एक माचिस है तथा कुछ सुखी लकड़ियां और बुरादे जो मेरे नज़दीक ही थे , मैंने उनमें माचिस की तीली जला कर फ़ेंक दी और लकड़ियों के बुरादे में आग लग गई ,तुरंत ही उसमें सुखी लकड़ियां भी उठाकर डाल दी... आग तेज़ हो उठी और उन लकड़बग्घों का झुण्ड जो हमारे कॉटेज की ओर बढ़ रहा था सतर्क हो गया तथा पीछे हट गया... उस रात पहली बार मुझे असली डर का ऐहसास हुआ था... गर्म कपड़ों में भी पसीना छूट गया था। अगले दिन सुबह ही मैंने इस बात का ज़िक्र अपनी पत्नी से किया , वो भी घबरा गई थी क्यूंकि चोरों ने फैक्ट्री के पीछे की दीवार में पहले ही सेंध कर रखा था , जिससे जंगली जानवरों के अन्दर प्रवेश करने का भी ख़तरा था... यही वजह थी कि लकड़बग्घों का झुण्ड भी अन्दर प्रवेश कर गया था... मेरी पत्नी तो इतना घबरा गई की मुझसे मायके जाने की बात करने लगी... मैं भी मान गया और उसका हफ्ते भर बाद का रिजर्वेशन करवा दिया... फैक्ट्री में किसी भी बाहरी को प्रवेश करने की अनुमति नहीं थी सिवाए मेरी पत्नी और माता जी को... मैं अपने रिश्तेदारों को भी नहीं बुलवा सकता था इसलिए मैंने सबको मना करवा रखा था। 

धीरे धीरे वक़्त बीतता गया और मेरा बड़ा बेटा साल भर का हो गया , उसके जन्म दिन को हमने हर मां बाप की तरह धूम धाम से मनाया और मेरी पत्नी ने सारे मेहमानों के लिए बिरयानी बनाई... पर उसके कुछ दिनों पहले ही अपने अधिकारियों और स्टाफ की सैलरी का पेबिल रजिस्टर तथा डिविजन की मैसरेमेंट बुक व तनख्वाह का ड्राफ्ट इलाहबाद से वाराणसी लेने जाते समय मेरे रोडवेज की बस का ऐक्सिडेंट हो गया था, जिस वजह से मेरे सिर पर गहरी चोट आ गई थी, डॉक्टर्स ने सिटी स्कैन तक की सलाह दी थी क्यूंकि मेरे सिर में बस की सीट का टूटा हुआ रॉड घुस गया था , पर बस में ही मैंने उसे खींच कर निकाला और अपनी पीठ से टूटी सीटों को हटाकर उठ खड़ा हुआ तथा बस में मौजूद गंभीर रूप से घायल लोगों की मदद की...  बस का दरवाज़ा भी मैंने ख़ुद खोला और कंडक्टर की भी मदद की, पर ड्राईवर ऑन द स्पॉट मारा गया क्यूंकि आम के पेड़ की डाली ने उसकी खोपड़ी बुरी तरह से फाड़ दी... अचानक ही टायर ब्लास्ट हो जाने की वजह से बस पर ड्राईवर का कंट्रोल नहीं रहा और वो आम के पेड़ से जा टकराई, पर समय पे स्थानीय चौकी द्वारा एम्बुलेंस सेवा तथा बचाव दल भेजा गया... मैं ज़ख्मी होकर अस्पताल पहुंचा तो पहले गंभीर रूप से घायलों को चिकित्सा मिली, अस्पताल में इतनी भीड़ जमा हो गई थी कि एक साथ सबका इलाज कर पाना मुश्किल था, एक कंपाउडर ने मेरे फटे हुए सिर पर टांके देने का फैसला किया क्यूंकि मेरा ख़ून लगातार बहा जा रहा था... पर छोटा अस्पताल होने की वजह से बेड की कमी थी इसलिए मैंने बैठे बैठे ही टांके ले लिए... जल्द ही मीडिया भी जमा हो गई और तस्वीरें खींचने लगी तथा घायलों का इंटरव्यू लेने लगे... अस्पताल से ही मेरे डिविजन ऑफिस में खबर पहुंची, खून ज़्यादा बह जाने की वजह से अस्पताल की अथॉरिटी ने मुझे आराम करने की सलाह देते हुए रोक लिया और मुझे अस्पताल में देखने के लिए पूरा डिविजन ऑफिस पहुंच गया। जल्द ही मेरे वाराणसी व मुगलसराय के सभी रिश्तेदार भी जमा हो गए...

फ़िर उस हादसे से जल्द ही मैं पूरी तरह से स्वस्थ हो गया और उस दौरान मेरे अधिकारियों व स्टाफ ने मेरा काफ़ी सहयोग भी की, मेरी पत्नी जो अक्सर उस कॉटेज में रुकने आती थी वो भी तीन महीनों तक रुकी... फ़िर तीन महीनों बाद मेरी पत्नी अपने मायके चली गई क्यूंकि फैक्ट्री में स्थित उस कॉटेज में रहना ख़तरे से ख़ाली नहीं था ...  कुछ दिनों पहले ही एक तेंदुआ उसी पोल फैक्ट्री में घुस आया था और रात में काफ़ी देर तक फैक्ट्री में घूमने के बाद वहां से चला गया  , ठेकेदारों द्वारा रखे गए चौकीदार ने समय पर मेरे कॉटेज का दरवाज़ा खटखटाया और मैंने उसे बाहर निकल कर देखा... फैक्ट्री की पिछली दीवार की मरम्मत न होने की वजह जंगली जानवरों का घुसना तो आम बात थी... पर कोई सुनवाई नहीं होती थी क्यूंकि दिन के कामों में इतनी दबंगई थी कि सबका ध्यान उसी ओर लगा रहता था, नाईट ऑवर्स में कोई काम नहीं होता था जिसका फायदा अक्सर चोरों को मिलता था... मुझे दोनों शिफ्ट्स में काम संभालना पड़ता था भले ही मैं सरकारी ही क्यूं न था... रात में चोरों का मुक़ाबला भी करना पड़ता था,  ठेकेदारों द्वारा रखे गए लोगों में बस एक चौकीदार ही था जो मेरे रहने की वजह से अक्सर छुट्टियां मार लेता था... 19 दिसंबर 2009 की रात को भी वो नहीं आया था और मुझे रात में अकेले ही उस फैक्ट्री का गश्त लगा कर निगरानी करनी थी... पूरी फैक्ट्री में मैं अकेला ही था और मैंने रात की पूरी तैयारी कर रखी थी, चोरों का मुक़ाबला करने के लिए मैंने जगह जगह हथियारों जैसे लोहे का सरिया , नान चाकू और एक लठ छुपा दिया था... इन्हें ऐसे स्थानों पर छुपाया जो मेरी समझ से खतरनाक थे क्यूंकि आस पास के फैक्ट्री एरिया की दीवारें या तो तोड़ दी गई थीं या उनमें सेंध मार दिया गया था चोरों द्वारा अन्दर प्रवेश करने के लिए... इसलिए मैंने  फैक्ट्री के चारों दिशाओं में हथियार छुपा रखे थे उत्तर, दक्षिण , पूरब और पश्चिम... बस फैक्ट्री की निजी कुल्हाड़ी ही मेरे पास रहती थी... उस सर्द रात कोहरे ने चारों ओर अपनी चादर चढ़ा रखी थी, जिस वजह से आस पास का कुछ भी देख पाना नामुमकिन था... ठंड इतनी ज़्यादा थी कि हड्डियां तक कड़कड़ा जाएं इसलिए मैंने जलाने के लकड़ियों का इंतज़ाम पहले से ही कर रखा था... फैक्ट्री के पीछे स्थित जंगल से लगातार जंगली जानवरों की आवाज़ें आ रहीं थीं , जो यकीनन ठंड और भूख से परेशान थे... मैं बीच बीच में फैक्ट्री के चारों ओर चक्कर लगाने के बाद जलाई हुई आग के पास बैठ जाता था ताकि थोड़ी ठंड कम हो सके... मैं गश्त लगाने के बाद आग के सामने आकर बैठा ही था कि तभी अचानक मुझे कुछ आवाज़ें सुनाई दीं...
TO BE CONTINUED...
©IVANMAXIMUSEDWIN.


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रचनाएँ
दहशत की रात...
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आज मैं आपको एक सच्ची घटना पर आधारित कहानी सुनाने जा रहा हूं... एक ऐसी घटना जो किसी भी आम इन्सान के साथ घटित हो तो उसे पूरी तरह से दहशत से भर देती है... ऐसी ही एक घटना मेरे साथ घटित हुई थी जब मैं अपनी सरकारी नौकरी कर रहा था, ये घटना नैनी इलाहाबाद (प्रयागराज) की है जहां पर मेरा पोल मैन्युफैक्चरिंग सब डिविजन ऑफिस है ... मेरा सब डिविजन एक ऐसी जगह है जहां पर दिन भर तो सब कुछ ठीक ठाक चलता है लेकिन जैसे ही जैसे रात होने लगती है , डर लगने लगता है... एक अनजान डर ,जो किसी भी आम इन्सान को रात भर चैन से सोने नहीं देता है...
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भूखे लकड़बग्घे...

19 मई 2023
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आज मैं आपको एक सच्ची घटना पर आधारित कहानी सुनाने जा रहा हूं... एक ऐसी घटना जो किसी भी आम इन्सान के साथ घटित हो तो उसे पूरी तरह से दहशत से भर देती है... ऐसी ही एक घटना मेरे साथ घटित हुई थी जब मैं अपनी

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भूखे लकड़बग्घे- 2

19 मई 2023
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"अब क्या होगा... क्या करूं , इनका अकेले मुक़ाबला करना सही रहेगा या इनके वार का इंतज़ार करूं .... बहुत जल्द ही ये और नज़दीक आ जाएंगे ... मेरे पास तो एक ही कुल्हाड़ी है," ये सारी बातें मेरे दिमाग़ में च

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वो सर्द रात...

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पहली बार खट खुट की कुछ आवाज़ें सुनकर मैंने नज़र अंदाज़ कर दिया पर उस सर्द कोहरे की रात को अचानक ही फिर से मुझे वही आवाज़ सुनाई दी , जब मैं आग के पास फैक्ट्री के शेड में बैठ मोबाइल में बाउंस नामक वीडिय

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वो सर्द रात- 2

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मैं धीरे धीरे कंस्ट्रक्शन साइट के अंत तक पहुंच रहा था कि तभी अचानक घने कोहरे के पर्दे को तेज़ी से चीरता हुआ एक अजनबी साया मुझसे कुछ दूरी पर दाएं से बाएं हाथ की ओर दौड़ लगाता है, जिस ओर डिविजन स्टोर मौ

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वो सर्द रात- 3

19 मई 2023
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" जल्दी करा हो... जल्दी करा," मेरे नज़दीक पहुंचते ही फैक्ट्री में मौजूद चोरों के दल में से एक ने अपने साथियों को निर्देश देते हुए कहा , उन्हें मेरी मौजूदगी का अहसास बिलकुल भी नहीं था ... जल्द ही मैं फ

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वो सर्द रात- 4

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19 दिसम्बर की रात को मेरी खाकी वर्दी का इम्तिहान था जो मुझे पुलिस विभाग के चरित्र प्रमाण पत्र बनने के बाद बिजली विभाग द्वारा अलॉट की गई थी , नैनी इलाहाबाद में क़दम रखने से पहले ताकि मैं चोरों का मुकाब

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वो सर्द रात- 5

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" फुस्स ss फुस्स ss स ss स... फुस्स ss स ss स... फुस्स ss स ss स ss स," आखिरकार फुसफुसा कर नाग देवता मेरे बाएं कंधे से मुझे सूंघते हुए नीचे उतर ही रहे थे मेरे पैरों से होते हुए की तभी अचानक..." कोनो ब

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वो सर्द रात- 6

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"ओ ss ह... तो पूरा गिरोह मौजूद है... आज तो एक नहीं कई मुसीबत एक साथ पधार गई है... कुछ तो करना ही पड़ेगा इन्हें रोकने के लिए , नहीं तो एक साथ इनका मुकाबला करना पड़ेगा... ट्रक में भी तीन चार लोग दि

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वो सर्द रात- 7

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" सुबह के ढाई बज रहे हैं और रौशनी होने में भी अभी काफ़ी समय है... मुझे कुछ न कुछ करना ही पड़ेगा वर्ना एेसे छुप कर कभी भी पकड़ा जा सकता हूं... चलो कम से कम पांच मिनट तक तमाशा देखता हूं उसके बाद निकल कर

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वो सर्द रात- 8

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" मैं यहां ज़्यादा देर तक नहीं रुक सकता हूं... आस पास कोहरा इतना ज़्यादा है कि कुछ भी नज़र नहीं आ रहा है... हो सकता है कि नीचे उतरते ही पकड़ा जाऊं, कोहरे के कारण कुछ भी नहीं दिख रहा है, पेड़ के

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वो सर्द रात- 9

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अगर अवैध बिजली कटौती न करवाई गई होती ऑक्टोबर 2005 को मेरी तनख्वाह से, तो अब तक मैं चन्दौली जिले में स्थित व्यास नगर कॉलोनी में विभागीय आवास ले चुका होता, क्यूंकि मेरा सब डिविजन ऑफिस वहीं पर स्थित था..

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वो सर्द रात- 10

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मैं कंस्ट्रक्शन साइट के नज़दीक स्थित 9.0 मी पोल के क्योरिग टैंक की आड़ में जा छुपा था... पीठ में घुसे बेर की डाल के कारण असहनीय पीड़ा उठ रही थी , मुझे किसी भी हालत में उस मोटी डाल के टुकड़े को अपनी पी

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वो सर्द रात- 11

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अपने स्वेटर की आस्तीनो को ऊपर कर मैं अपने दाएं हाथ में कुल्हाड़ी पकड़े, जिसकी धार पर उन चोरों के लीडर की गर्दन टिकी थी तथा अपने बाएं हाथ से उसे गर्दन से दबोचे हुए , मैं मेन गेट की दिशा में बढ़ रहा था

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वो सर्द रात- 12

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" ई ससुरा के अच्छे से सबक सिखाई के पड़ी ... कस के पकड़ा हो शम्भु, आज ई के पता चली कि हम पचे से टकराए का अंजाम का होवत हई," उन चोरों के लीडर ने अपने साथी को आदेश देते हुए कहा। " जाए द... ज्यादा बक

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वो सर्द रात- 13

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" आ ss ह... कुछ भी हो मुझे अपने हाथों से बह रहे ख़ून को किसी भी हालत में रोकना पड़ेगा... बहुत गहरा घाव कर दिया है , सर्दी के कारण चोट लगने पर और भी अधिक दर्द होता है , हथेली तो बिलकुल चिपचिपी पड़ चुकी

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वो सर्द रात- 14

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" सन न न न... स ss टा ss क... आ ss ह," घने कोहरे का फ़ायदा उठा कर मैंने एक और चोर को अपना शिकार बनाया, नान चाकू को तेज़ी से घुमाते हुए कोहरे के बादलों को काटते हुए सीधा उस चोर की खोपड़ी पर प्रहार किया

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जुगाड़...

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" देख ला... हम पचे पहले ही कहत रहे कि चला ईहां से... का मतबल हुआ रुके का... पर तोहार समझ में नईखे आवत बाटे, अभिनों हमरी बात माना और इहां से निकल चला... नहीं तो ऊ ससुरा किसी को न छोड़ी," अपने साथी को म

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जुगाड़- 2

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घने कोहरे में , हल्की रोशनी के सहारे मैं धीरे धीरे मेन गेट की दिशा में आगे बढ़ रहा था कि तभी अचानक मेरे मन में एक विचार उठा..." क्या मेरा मेन गेट खोलना उचित रहेगा... इन चोरों के दल पर इस तरह से भरोसा

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जुगाड़ फेल...

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" उन नशेड़ी चोरों का दल मेरी तरफ़ ही बढ़ रहा है... आ ss ह... मेरा सिर बुरी तरह से घूम रहा है, मुझे इनसे बहुत तोल मोल के बात करनी पड़ेगी, वर्ना बोलने से मेरी सांसों का बंधन टूटेगा और मेरा ख़ून तेज़ी से

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जुगाड़ फेल ख़त्म खेल...

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" ख ss टा ss क... या ss अा ss ह," मेरे दाएं हाथ पर खड़े आदमी के हरक़त में आते ही मैंने उल्टी कुल्हाड़ी का ज़ोरदार प्रहार , उसकी खोपड़ी पर जड़ दिया , ठीक उसकी बाईं आंख के नज़दीक... प्रहार इतना ज़

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