एक छोटी सी बच्ची थी,
जो दिन भर खेलती थी।
गिलहरी से वह खेलती थी,
उसके साथ हमेशा रहती थी।
उस बच्ची की नादान नैया,
गिलहरी के साथ बहती जाती थी।
गिलहरी को वह अपनी दोस्त मानती थी,
बच्ची की हर खुशी में हमेशा भाग लेती थी।
बच्ची थी न बड़ी न छोटी,
गिलहरी की दोस्त थी वह हमेशा सोती।
गिलहरी को वह अपनी दोस्त मानती थी,
जब भी रोती तब गिलहरी से अपनी बात कहती थी।
दोस्ती इन दोनों की थी अनोखी,
एक छोटी और एक छोटी।
दोनों में प्यार था असीम,
इसके बगैर नहीं थी दोनों की कोई कीमती।
गिलहरी के साथ बच्ची की यादें थीं,
जो उसकी जिंदगी में समृद्धि लाती थीं।
इस दोस्ती को कोई टूटा नहीं सकता,
एक छोटी बच्ची और गिलहरी की दोस्ती हमेशा याद रहेगी, सदा।