सुधांशु त्रिवेदी का बयान दरअसल कांग्रेस और बीजेपी के बीच आयोध्या में होने वाले राम मंदिर के समर्पण समारोह को लेकर उत्तराधिकारिता की मुद्दे पर है। उनके अनुसार, बीजेपी और आरएसएस ने इस समारोह को पूरी तरह से अपने अधीन कर लिया है, जिससे कांग्रेस की दावा की गई आपत्ति बेतरतीब और असार है।
11 जनवरी को बीजेपी ने कांग्रेस को तीन शीर्ष नेताओं को समारोह में भाग नहीं लेने के लिए निमंत्रण न करने पर कड़ा आलोचना की। इसका मुख्य तर्क यह है कि कांग्रेस ने इस समर्पण समारोह को संस्कृति और हिन्दू धर्म के प्रति अपनी आपातकालिक आपत्ति का प्रमाण दिखाया है। त्रिवेदी के अनुसार, राम मंदिर के समर्पण में कांग्रेस की नकरात्मक दृष्टिकोण सामने आई है और इससे वह पार्टी द्वारा अपनी राष्ट्रवादी और सांस्कृतिक आपत्ति को उजागर करने का प्रयास किया जा रहा है।
उन्होंने इस मुद्दे पर विशेष रूप से कांग्रेस को आपत्तिजनक मानते हुए कहा है कि बीजेपी ने राम मंदिर के समर्पण में एक एकीकृत दृष्टिकोण बनाए रखा है, जबकि कांग्रेस ने इसे राजनीतिक बाजारी से अलग करने की कोशिश की है। इसके बारे में त्रिवेदी ने आलोचना की है कि कांग्रेस ने राम मंदिर के समर्पण में राजनीतिक सोच और विरोध की भावना को उजागर करते हुए भारतीय सामराज्यवाद के प्रति अपनी स्वाभाविक आपत्तिजनकता को दिखाया है।
इस पूरे वार्ता के माध्यम से सुधांशु त्रिवेदी ने बीजेपी के स्थान को बचाने का प्रयास किया है और उनका तर्क है कि कांग्रेस का राम मंदिर समर्पण समारोह में शामिल नहीं होना देश के सांस्कृतिक और धार्मिक एकता के प्रति उनकी असहमति को प्रकट करती है।