एक फटी सी निकर ,और पुरानी ढीली ढाली कमीज़;
पैरों में साइज से बड़ी चप्पल, कांधे पे पुराना अंगोछा;
अचानक से मेरे सामने आ खड़ा हुआ,
थी उसमें तमिज़।
मोबाइल में था मैं व्यस्त व मस्त,धीरे से उसने मुझसे पूछा;
बोलो सर जी क्या लगाऊं, बोलो गरम में या फिर ठंडे में ;
टूट गयी मेरी तंद्रा, ध्यान से उसे निहारा ऊपर से नीचे तक;
एक बेचारा किस्मत का मारा,जिसका ना था कोई सहारा।
क्षण भर मै रुका, फिर दो कप चाय मंगा उसे देखता रहा;
बेतरतीब बालों को संवार,अपनी निकर सम्हाल वह जाता रहा
तुरंत दो स्पेशल चाय लिये वो हुआ हाजिर,क्या लाऊं और
मैंने ध्यान से उसे तौला,उसके बाल मन को गंभीरतापूर्वक टटोला।
उसे बैठा ,एक चाय का कप उसकी ओर बढ़ाया,पीने का बोला।
आश्चर्य से देखता रहा मुझे वह,आखिर कौन है ये व्यक्ति;
जो चाय पीला रहा मुझे,शक्की निगाहों से देखता रहा ;
धीरे से चाय पी कर ,मुझे अंतर्मन से वह टटोलता रहा।
वह पूरी संतुष्टि के साथ ,मुझसे घुलमिल गया उस दिन;
उस दिन के बाद कभी मेरे साथ नाश्ता भी ,कभी भोजन भी।
उसे स्कूल में एडमिशन दिला,होटल वाले को समझा दिया उस दिन।
उसकी फीस ,खाने पीने का खर्च ,रहना सभी
होटल मालिक के जिम्मे;
अब वह ना रहा बाल मजदूर, वह भी एक होशियार विद्यार्थी है आज के दिन।
शुक्रिया होटल मालिक का ,जिसने हमारे देश का भविष्य बनाया;
मै भी आज तक इस होटल मालिक का अहसान ना भूल पाया।