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डेमोक्रेटिक बग

28 फरवरी 2022

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आजकल का जो जनतांत्रिक शासन तंत्र है उसमें पूंजीवादियों के हस्तक्षेप के कारण जनता की
भूमिका नगण्य रह गई है। इस प्रजातांत्रिक व्यवस्था में पूंजीपति आम जनता के कीमती
वोट का शिकार बड़ी आसानी से कर लेते हैं। पैसों के दम पर वोट खरीद लेना बड़ी साधारण
सी बात है। मदिरा और झूठे वादों के दम पर जनता को बड़ी आसानी से बहला फुसला लिया
जाता है । आखिर किस बात का प्रजातंत्र है ये? प्रस्तुत है प्रजातान्त्रिक व्यवस्था में
पूंजपतियों के हस्तक्षेप को दृष्टि गोचित करती हुई व्ययांगात्मक कविता " डेमोक्रेटिक
बग"।

हर पांच साल पर प्यार जताने आ जाते ये धीरे से,

आलिशान राजमहल निवासी छा जाते ये धीरे से।

जब भी जनता शांत पड़ी हो जन के मन में अमन बसे,

इनको खुजली हो जाती जुगाड़ लगाते धीरे से।

इनके मतलब दीन नहीं,  दीनों के वोटों से मतलब ,

जो भी मिली हुई है, झट से ले लेते ये धीरे से।

मदिरा का रसपान करा के वादों का बस भान करा के,

वोटों की अदला बदली नोटों से करते धीरे से।

झूठे सपने सजा सजा के जाले वाले रचा रचा के,

मकड़ी जैसे हीं मकड़ी का जाल बिछाते धीरे से।

यही देश में आग लगाते और राख की बात फैलाते ,

प्रजातंत्र के दीमक है सब खा जाते ये धीरे से ।

अजय अमिताभ सुमन:सर्वाधिकार सुरक्षित

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डेमोक्रेटिक बग
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प्रस्तुत है प्रजातान्त्रिक व्यवस्था में पूंजपतियों के हस्तक्षेप को दृष्टि गोचित करती हुई व्ययांगात्मक कविता " डेमोक्रेटिक बग"।

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