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देवकी नंदन 'शांत' के बारे में

"मुझको न छू न ख़ाक समझकर मुझे उड़ा मैं देखने में 'शांत' सही हूँ तो इक शरर "

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देवकी नंदन 'शांत' की पुस्तकें

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देवकी नंदन 'शांत' के लेख

मेरे ख्वाबों में ग़ज़ल

31 मार्च 2015
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मेरे ख्वाबों में ग़ज़ल, मेरे ख्यालों में ग़ज़ल मिलती रहती है अंधेरों में, उजालों में ग़ज़ल. तिशनगी की मेरी अब परवाह न करो साक़ी मुझको आती है नज़र ख़ाली प्यालों में ग़ज़ल. कौन कहता है ग़ज़ल क़ैद है मयखाने में मस्जिदों में है ग़ज़ल,और शिवालों में ग़ज़ल. दिल्ली वालों ने न की क़द्र तो फिर आखिरकार शान से आके रही लखन

मैं चलता ही चला जाऊंगा

30 मार्च 2015
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अगर पत्थर है तू मैं आइना हूँ तोड़ दे मुझको खुदा के वास्ते वरना अकेला छोड़ दे मुझको. जुदाई ने तेरी इस तरह तोड़ा जुड़ नहीं पाया, बुला ले पास या आके मिल और जोड़ दे मुझको. नहीं मैं जानता इसमें ज़हर है या के है अमृत, जिसे तूने गढ़ा मैं वो घड़ा हूँ फोड़ दे मुझको. मैं तेरा अंश हूँ इतना अगर स्वीकारता है तो, च

बस यही डर है

30 मार्च 2015
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तुम्हारे हाथ में पत्थर है, मेरा कांच का घर है तुम्हारी मुट्ठियों में इस खिलौने का मुक़द्दर है. मुझे अपने बिखरने का नहीं अफ़सोस कुछ लेकिन, ज़माना जाने तुमको क्या कहेगा , बस यही डर है. मैं पहली बार सज़दा कर रहा हूँ लाज रख लेना, झुकाया जो नहीं ज़ुल्मों के आगे, ये वही सर है. ज़माने भर में हल ढूंढा किये

तेरे बग़ैर

30 मार्च 2015
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मुझसे रहा न जायेगा तेरे बग़ैर, आ जीवन में तुझसे मिलने की क्या शर्त है बता. दरिया की तरह था तू बिखरता चला गया, क़तरे की तरह मैं हूँ जो सिमटा हुआ रहा. सूरज को ढूंढते हुए तारों ने ये कहा, माना कि तू हसीं' है लेकिन नज़र तो आ. मैं हर घडी बुलाया किया ध्यान में तुझे, अपने क़रीब तू भी कभी तो मुझे बुला.

वही बात पुरानी

30 मार्च 2015
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रहने दो न दुहराओ वही बात पुरानी, अब लगती है मुझे झूठी, परियों की कहानी. हर पेट के जंगल में यहाँ भूख जले है, होंठों पे जहाँ प्यास है आँखों में है पानी. हफ़्तों जहाँ चूल्हा नहीं जलता ये वो घर है, आती नहीं बिस्तर पे जहाँ नींद सुहानी. ज़िंदा हैं वहीँ मौत से जो डरते नहीं हैं, आये न बुढ़ापा जिन्हें, ज

एक दीया जला दिया

30 मार्च 2015
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मैंने लहू से एक दीया क्या जला दिया, लोगों ने एक और दीया फिर बुझा दिया. उस वक़्त दीं हवा ने किवाड़ों पे दस्तकें, मैंने कोई चिराग जो, घर में जला दिया. लोगों ने जो भी चाहा, लिया है समाज से, लोगों ने पर समाज को बदले में क्या दिया. खुशियों का हाल जानने निकला था घर से मैं, कुछ ख़ास दोस्तों ने ग़मों को

तस्वीर नहेीं बोलेगी

26 मार्च 2015
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रंग भरने से तस्वीर नहीं बोलेगी, मौत ज़िद्दी है बड़ी, होंठ नहीं खोलेगी. जिसमें पासंग न हो ऐसा तराज़ू लाओ, ज़िन्दगी झूठ को अब और नहीं तौलेगी. मेरी आवाज़ में अमृत तो नहीं है लेकिन, मेरी आवाज़ कभी ज़हर नहीं घोलेगी. शोर सन्नाटे का दब भी गया सरगम में अगर तेरी आवाज़ मेरे साथ-साथ हो लेगी. अच्छे शेरों पे भी

कौन हूँ मैं

26 मार्च 2015
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कौन हूँ मैं, कौन सुन-सुन, मौन मन मेरा हुआ, मेरे प्रश्नो से मेरा, उत्तर है क्यों सहमा हुआ. भोर होते ही नज़र में, तैरने लगता है तू, मैं इधर सिमटा हुआ, तू उधर बिखरा हुआ. बेवफाई दोपहर की धूप सी तपती रही, आज अपनी बेबसी को, देखकर सदमा हुआ. शाम कल आकाश की, चादर पे था फैला लहू, काफिला गुज़रा है कोई, कर

उम्र भर पूजा था जिसको

26 मार्च 2015
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उम्र भर पूजा था जिसको अब वही पत्थर हुआ, लग गई क्या मेरे सज़दों को किसी की बददुआ. मेरी आँखों से मुसलसल अश्क बहते ही रहे, तू हुआ पत्थर मगर रहमत को तेरी क्या हुआ. तय हुआ था हम मिलेंगे ज़िन्दगी के मोड़ पर, मोड़ आया तू न आया आखिर ऐसा क्या हुआ. और कुछ कर ही न पाया अपनी अंतिम सांस तक, हसरतों ने ज़िन्दगी

आदमी होके भी

26 मार्च 2015
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आदमी होके भी हम चैन से जीना चाहें, वहशतोग़म से, हर एक ज़ख्म को सीना चाहें. हाल पूछें न किसी का, न खबर दें अपनी, ज़िन्दगी जीने का भी अपना करीना चाहें. तैरने पर भी हमें नाज़ बहुत है लेकिन, जो किनारे से लगा दे वो सफीना चाहें. हाथ फनकार के एक रोज़ क़लम होने हैं, उंगलियां हैं कि अंगूठी में नगीना चाहें.

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