ध्यान के अभ्यास के लिए भोजन किस
प्रकार का तथा किस प्रकार किया जाना चाहिए इसी क्रम में आगे...
निश्चित रूप से जितने भी प्रकार का
भोजन आप करते हैं उस सबका अलग अलग प्रभाव आपके शरीर पर होता है | हल्का और ताज़ा
भोजन जिसमें सब्ज़ियाँ, फल और अनाज का मिश्रण
हो वह सुपाच्य होता है | जबकि भारी और अच्छी तरह से तला भुना भोजन पचने में घण्टों
लग जाते हैं | साथ ही एक और बात आपको अनुभव होगी कि कुछ आहार ऐसे हैं जिनके सेवन
से ध्यान के समय आप स्पष्टता, विश्रान्ति और ध्यान में
केन्द्रस्थ होने का अनुभव करते हैं | इसके विपरीत कुछ खाद्य पदार्थों के सेवन से
अनेक प्रकार के व्यवधानों का अनुभव होता है | कुछ खाद्य पदार्थ आपको बेचैन,
चिडचिडा और तनावग्रस्त बनाते हैं और आपको घबराहट का अनुभव होता है | कुछ आपको आलसी
और जड़ बनाते हैं | इतना भारीपन आपके शरीर और मन में भर देते हैं कि ध्यान के
अभ्यास के समय आपके लिए चेतन बने रहना कठिन हो जाता है | जैसे जैसे आप खाद्य
पदार्थों के प्रति अपने शरीर की प्रतिक्रियाओं का अध्ययन आरम्भ कर देंगे आप समझ
जाएँगे कि कौन से खाद्य पदार्थ आपकी मानसिक स्थिति पर कैसा प्रभाव डालते हैं |
ध्यान के लिए केवल शाकाहारी होना ही
आवश्यक नहीं है | यह जाने बिना कि सन्तुलित शाकाहार क्या है – आपके भोजन में
परिवर्तन से – अर्थात शाकाहारी बनने से – अनेक प्रकार की समस्याएँ उत्पन्न हो सकती
हैं | इसलिए अपने स्वयं के प्रति उदार बनने की आवश्यकता है | सन्तुलित शाकाहारी
भोजन जिसमें ताज़े फलों, दूध से बने पदार्थों तथा अच्छी तरह पकी सब्ज़ियों का, अनाज
का और दालों आदि का समावेश हो और कम चिकनाई वाला हो तो लाभदायक होगा | जैसे जैसे
आपका ध्यान का अभ्यास नियमित होता जाएगा वैसे वैसे भोजन तथा दूसरी बहुत सी वस्तुओं
के प्रति आपका आकर्षण स्वस्थ दिशा की ओर परिवर्तित होता जाएगा |
भोजन और पेय पदार्थों का ध्यान की
गहराई पर बहुत प्रभाव पड़ता है, और जैसा पहले भी बताया गया, ध्यान का अभ्यास
करते करते भोजन और पेय पदार्थों के सम्बन्ध में जागरूकता आपको स्वयं ही आती जाएगी
| बहुत से लोग जो अधिक मात्रा में कॉफ़ी, चाय और इसी प्रकार के अन्य पेय पदार्थों
का सेवन अधिक समय से करते आ रहे हैं उन्हें ध्यान के अभ्यास से समझ में आने लगता
है कि इनके कारण अनेक प्रकार की शारीरिक और मानसिक समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं |
भोजन तथा उसका ध्यान के अभ्यास और मनुष्य की चेतना पर प्रभाव इतना व्यापक विषय है
कि इस पर अलग से पूरी एक पुस्तक लिखी जा सकती है | कुछ महत्त्वपूर्ण सुझाव...
भोजन और
ध्यान के अभ्यास के मध्य कम से कम तीन चार घंटे का अन्तराल अवश्य रखें |
विचार करें
कि दिन में क्या भोजन किया और उसका आपके ध्यान के अभ्यास पर क्या प्रभाव पड़ा |
ताज़ा और
सुपाच्य भोजन करें जिससे ध्यान के समय मन में स्पष्टता और शान्ति बनी रहे |
बहुत शीघ्र
आप अनुभव करने लगेंगे कि अल्कोहल और इसी प्रकार के अन्य उत्तेजक पदार्थों के सेवन
से ध्यान में बाधा उत्पन्न होती है | ध्यान को भली भाँति समझने वाला कोई भी
व्यक्ति यह नहीं सोचता कि किसी प्रकार की नशीली दवाओं अथवा अल्कोहल आदि के सेवन से
ध्यान की स्थिति प्राप्त करने में सहायता प्राप्त होती है | इस प्रकार के पदार्थ अपने
विषैले प्रभावों के कारण शरीर में बेचैनी और मन में व्यवधान उत्पन्न करते हैं |
अल्कोहल व्यक्ति को जड़, आलसी और
उदासीन बनाता है – जो ध्यान की सबसे बड़ी बाधा है | बहुत से लोग जो ध्यान से
उत्पन्न शान्ति में डूब जाते हैं उनकी इस प्रकार के पदार्थों के प्रति रुचि स्वतः
ही समाप्त हो जाती है |
भोजन की ही भाँति
निद्रा भी एक ऐसी प्रक्रिया है जिसका ध्यान पर विशेष प्रभाव पड़ता है | नींद यदि
बहुत कम हो तो आपमें आलस्य बना रहेगा और ध्यान के समय आप चेतन नहीं रह पाएँगे |
जबकि बहुत अधिक नींद भी इस प्रकार की समस्याएँ उत्पन्न कर सकती है – आपको जड़ बना
सकती है, बेचैन कर सकती है और आपको ध्यान केन्द्रित
करने में असमर्थता का अनुभव हो सकता है |
नींद एक ऐसी
सम्मोहिनी प्रक्रिया है जिसका ध्यान के समय अवश्य विचार करना चाहिए | साधारण
शब्दों में कहें तो ध्यान जितना गहरा होता जाएगा नींद उतनी ही कम होती जाएगी |
क्योंकि ध्यान शरीर और मन दोनों के लिए एक गहरी विश्रान्ति की स्थिति बना देता है
|
ध्यान के
अभ्यास में जितनी प्रगति होगी और आपके जीवन में ध्यान का जितना अधिक महत्त्व बढ़ता
जाएगा आप स्वयं ही ध्यान के लिए ऐसे समय की खोज शुरू कर देंगे जब आप अधिक ताज़ा और
चुस्त अनुभव करते होंगे और इस प्रकार ध्यान आपके जीवन को व्यवस्थित करने का मूल
साधन बन जाएगा | साथ ही भोजन, नींद और ऐसी
ही अन्य दूसरी गतिविधियाँ इसमें व्यवधान उत्पन्न न करके इसके लिए सहायक बन जाएँगी
|
अगले अध्याय
में ध्यान के आसनों पर वार्ता...
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