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दीपक राज मिर्धा की डायरी

दीपक राज मिर्धा

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dipak raj mirdha ki dir

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पुस्तक के भाग

1

बस लिखना चाहता हूँ

17 जून 2016
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जरुरी नहीं है की कोई बात हो तब ही कुछ लिखना होगा. कभी मन न भी करे तो लिखना चाहिए . दिल को सुकन मिलता है. फेसबुक पर लिखने में तो अलग बात हो जाती है,  भीड़ में कुछ कहना जब सब लोग हड़बड़ी में हो तब तो बस एक रसम ही हो जाती है लिखना. थोड़ा समय ले चूका हु आपका तो चाहूंगा की कुछ और बात भी हो जाए, मोबाइल मेरा ख

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बीमारी सच बोलने की.

18 जून 2016
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ये एक गजब की बीमारी है .मैं इस बीमारी का खुद भी पेसेंट हु. पर दूसरों को सलाह देता ही रहता हु. एक  सलाह   लेकर आपके पास आ गया हु. अभी के समय में जब कोई काम निकलना हो तो जरुरी है की मक्खन लगाकर ही काम चलाया जाए, पर कुछ लोग को ये आदत हो जाती है की सच ही बोलेंगे और कुछ दूसरी बात नहीं बोलेंगे. इन लोगों क

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