उन्होंने कई नाटक, रोजमर्रा की जिंदगी का चित्रण, और सफरनामे लिखे। लेकिन, हरिश्चंद्र की सबसे उल्लेखनीय रचनाएँ आम लोगों की परेशानियों, गरीबी, शोषण, मध्यम वर्ग की अशांति को संबोधित करती हैं, और राष्ट्रीय प्रगति के लिए आग्रह करती हैं। अपने जीवनकाल में, हरिश्चंद्र ने सक्रिय रूप से हिंदी साहित्य के पुनरुद्धार को बढ़ावा दिया और जनता की राय को आकार देने के प्रयास में अपने नाटकों का इस्तेमाल किया।
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