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ड्योढ़ी लाँघकर

दीपक कुमार श्रीवास्तव "नील पदम्"

20 अध्याय
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33 पाठक
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मेरी मनपसंद वो कवितायेँ जो मेरे अंतर्मन की ड्योढ़ी लांघकर आप तक पहुँचने के प्रयास में हैं ।  

dyodhi langhkar

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पुस्तक के भाग

1

फ़लसफ़ा

13 अगस्त 2023
6
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पत्थर का सफ़ीना भी, तैरता रहेगा अगर, तैरने के फलसफे को, दुरुस्त रखा जाये। मुनासिब है, ऊंचाइयों पर जाकर रुके कोई, उड़ने का हुनर अगर, बाज से सीखा जाये । कोई हुनर में तब तलक कैसे, माहिर हो, पूरी सिद

2

सरताज़

13 अगस्त 2023
3
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छाले पड़े हैं पाँव में और, लब भी हुए हैं खुश्क, आँखें बह चलीं हैं गले में, आवाज़ नहीं है । पैर थमे हैं बेड़ियों से, अभी आज़ाद नहीं हैं, पर अब आपकी इनायत के मोहताज़ नहीं हैं । हर सड़क मेरे लिए, अब मकसद क

3

हमने

13 अगस्त 2023
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इसकी तामीर की सज़ा क्या होगी, घर एक काँच का सजाया हमने । मेरी मुस्कान भी नागवार लगे उनको, जिनके हर नाज़ को सिद्दत से उठाया हमने । वक़्त आने पर बेमुरव्वत निकले, वो जिन्हें गोद में उठाया हमने । सितम

4

मंजर

14 अगस्त 2023
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तेरा कंधे पे सर रखकर के, शुकराना अदा करना, रहे हरदम यही मंजर, मुझे कुछ याद ना रखना । घड़ी वो थी मुबारक, आपने बोला था शुक्रिया, एक बार बोले आप, खुदाया सौ बार शुक्रिया, इसी तरह नज़र-ए-इनायत हम पर

5

शहर

13 अगस्त 2023
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कौन कहता है, सो रहा है शहर, कितने किस्से तो कह रहा है शहर। किसी मजलूम का मासूम दिल टूटा होगा, कितना संजीदा है, कितना रो रहा है शहर। ये सैलाब किसी दरिया की पेशकश नहीं, अपने ही आँसुओं में बह

6

हवन

14 अगस्त 2023
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1

हवन हुआ, ये धुआं उठा, मैं होम हुआ जाने किसपर, जाने कौन पुकारे मुझको, निकल गया मैं किस पथ पर । पैरों के नीचे अंगारे, हाथों में समिधा की गठरी, दिल में थामे तूफानों को, आँखों में समाहित बलिव

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राजनीति की रोटियाँ

15 अगस्त 2023
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दूरबीन ले क्यों ढूंढ़ते, अपने हित की आग, राजनीति की रोटियाँ, पायें जिससे ताप । पायें आग ताप की, सिके बस इनकी रोटी, क्या वीरगति सैनिक, क्या गरीब की रोटी ।  कितनी भी हो विपदा, धर्म-कि विरोध कर

8

ज़िंदगी

22 अगस्त 2023
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एक कूप में जैसे फँसी हो ज़िन्दगी; आधी-अधूरी-चौथाई ज़िन्दगी; टुकड़े-टुकड़े बिखरकर फैली हुई ज़िन्दगी। समेटकर सहेजने के प्रयास में कैकेयी के कोप-भवन सी और बिफरती हुई ज़िन्दगी; संवार कर जोड़ने के उध

9

सुस्ता लीजिये थोड़ा

29 अगस्त 2023
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सुस्ता लीजिये थोड़ा, थक गए हैं अगर, रुक लीजिये थोड़ा, रुक गए हैं अगर। रुकना है अभिशाप ये जान लें मगर। इस हद तक दौड़ मची हुई है आज, लगती है ज़िंदगी काँटों भरी डगर । वो शुकून जिसको कहते हैं, कि

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याद रे (लोकगीत शैली में)

31 अगस्त 2023
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बहुत दिनन के, बाद आयी हमका, मोरे पिहरवा की, याद रे ॥1॥ चाँदी जैसे खेतवा में, सोना जैसन गेहूँ बाली, तपत दुपहरिया में आस रे ॥2॥ अँगना के लीपन में, तुलसी तले दीया, फुसवा के छत की, बरसात रे ॥3॥

11

चँचल हिरनी

31 अगस्त 2023
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मेरे मन के शांत जलाशय से, ओ! वन की स्वच्छंद चँचल हिरनी तूने नीर-पान करके- शांत सरोवर के जल में ये कैसी उथल-पुथल कर दी। मैं शांत रहा हूँ सदियों से, यूँ ही एकांत का वासी हूँ, मैं देश छोड़ कर

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फिसल गए हाथ से

31 अगस्त 2023
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फिसल गए हाथ से, स्वप्न-लोक के खिलौने सारे, ज्यों फ़िसल जाता है वर्षा-जल पड़कर रेत पर। व्यर्थ उभरकर रह गईं भावनायें कोमल सारी, होती है व्यर्थ मेहनत, किसान की जैसे, सूखे बंजर खेत पर। आस का पु

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तुम पंख बन कर लग जाओ

31 अगस्त 2023
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कविता का संसार गढ़ना है, बन प्रेरणा चले आओ, हाँ, मुझे उड़ना है, तुम पँख बनकर लग जाओ । देखना है मुझे, उस क्षितिज के पार क्या है, जानना है मुझे, सपनों का सँसार क्या है । कल्पना के संसार में,

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मातृभाषा

13 सितम्बर 2023
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थकती हैं संवेदनाएँ जब तुम्हारा सहारा लेता हूँ, निराशा भरे पथ पर भी तुमसे ढाढ़स ले लेता हूँ, अवसाद का जब कभी उफनता है सागर मन में मैं आगे बढ़कर तत्पर तेरा आलिंगन करता हूँ, सिकुड़ता हूँ शीत म

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क़यामत

28 सितम्बर 2023
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काश ये क़यामत थोड़ा पहले आती, ख़ुदा की कसम कोई बात बन जाती, अपनी आँखों में होती चमक सितारों की, ज़िन्दगी किस कदर बदल जाती । यूँही फिरते रहे अंधेरों में, बेसबब, बेपरवाह यूँही एकाकी, दीप जलाने का होश

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राष्ट्रपिता

1 अक्टूबर 2023
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हे! राष्ट्रपिता, महात्मा गाँधी, तुम हो कितने महान, हम सब कितने बौने हैं, तुम कितने आलीशान । वो, जिन्होंने दी थी तुम्हें सरेआम गाली, उन्हीं से तुमने मुस्कुराते हुए माला डलवा ली । वाकई,

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सर्व देवस्य स्तुति

23 अक्टूबर 2023
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सर्व देवस्य स्तुति रहो भवानी साथ तुम जब तक हो पूर्ण ये काज, नील पदम् व्रत ले लिया कीजो सुफल सो काज। श्रीमुख श्री गणेश जी विरजो कलम में आय, रहो सहाय नाथ तुम ज्यों व्यास को भये सहाय। जय माँ व

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ज़िन्दगी

24 अक्टूबर 2023
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ज़िन्दगी एक कूप में जैसे फँसी हो ज़िन्दगी; आधी-अधूरी-चौथाई ज़िन्दगी; टुकड़े-टुकड़े बिखरकर फैली हुई ज़िन्दगी। समेटकर सहेजने के प्रयास में कैकेयी के कोप-भवन सी और बिफरती हुई ज़िन्दगी; संवार कर

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सौगंध से अंजाम तक

5 फरवरी 2024
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चल पड़े जान को, हम हथेली पर रख, एक सौगंध से, एक अंजाम तक । उसके माथे का टीका, सलामत रहे, सरहदें भी वतन की, सलामत रहें, जान से जान के, जान जाने तलक, जान अर्पण करूँ, जान जायेंगे सब, जान

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सर्वप्रथम पिया से रँग लगवाउंगी

25 मार्च 2024
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पिय की सखी ने द्वार, खोला जाये खेलें होली, खेलें होली सर्वप्रथम, पिय संग जाय के। द्वार खुलत ही भई प्रगट, सखियाँ सखी की, बोली सखियाँ होली, खेलो चलो आय के, सखी दुविधा में पड़ी, भई पीत-वर्ण की

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