फलों , शहद और झरनों के देश क्रोएशिया में -1
14 सितम्बर 2019 से 5 अक्तूबर 2019
सितम्बर 1935 में श्री राहुल सांकृत्यायन जी ने एक महीने तक जो यात्रा बाकू, कुहीन, तेहरान, इस्फ़हान, कुम, शीराज़, पर्सेपोलिस, मशहद, ज़ाहिदान, बिलोचिस्तान जैसे दुर्गम स्थानों की, वो भी बसों, द्रकों और छकड़ा कारों के ज़रिए, वह वाकई बहुत दिलेरी का काम था । सस्ते होटलों में, जो भी आमिष सामिष मिले खाकर , ऐसी विदेश यात्रा करने के लिए बहुत ही प्रबल साहस और ठोस संकल्प चाहिए । आचार्य जी ने वापसी में मशहद से क्वेटा नौ दिन तक एक माल ढोने वाले एक ऐसे ट्रक में यात्रा की , जिसमे तिरपाल के ऊपर आसमान का छोटा सा ही टुकड़ा नज़र आता था - बस !! तिस पर आठ दस सहयात्रियों के साथ उसी ट्रक के सख्त फर्श पर बैठना सोना खाना पीना । ऐसी यात्रा हरेक के बूते की बात नही । यात्रा वृतांत पढ़ते पढ़ते श्री राहुल सांकृत्यायन जी के प्रति मन अगाध श्रद्धा से भर गया ।
मुझ जैसे व्यक्ति की यायावरी या घुमक्कड़ी तो उस महान घुम्मकड़ के सामने दूर दूर तक भी कहीं नहीं ठहरती । हालाँकि ये बात दीगर है कि घुमक्कड़ी का कीड़ा बचपन से ही मुझे भी ख़ास परेशान करता रहा है । मुझे याद है कि गाँव में हमारे पड़ोस में रहने वाले एक किसान का भतीजा कुछ दिन के लिए गाँव लौटा था ।मेरी उम्र रही होगी बामुश्किल दस ग्यारह बरस की । वो जर्मनी में कहीं सेटल था । जैसे ही मुझे पता लगा कि वो जर्मनी में रहता है , मैं घंटो उसके पास बैठा रहता था और जर्मनी के बारे में अजीब अजीब से सवाल करता रहता था । वो भी मेरी उत्सुकताओं को जानकर बड़े धैर्य के साथ सारे जवाब देता रहता था । और सब सवाल तो मैं भूल गया पर एक सवाल जो मैंने उससे पूछा था, पाँच दशक बाद आज भी याद है ।
मैंने उससे पूछा था कि जर्मनी की मिट्टी का रंग कैसा है ।
आज भी पता नहीं क्यों मेरे भीतर हर नए मुल्क की मिट्टी का रंग ग़ौर से देखने की, उसे सूँघने की और महसूस करने की जिज्ञासा मौजूद है । कुछ महीनों घर में ड्राइंग रूम और बेड रूम के बीच की चहलक़दमी से घबरा कर फिर एक बार देश से निकल पड़ा । पता नहीं किस से सुना था कि क्रोएशिया बहुत ख़ूबसूरत देश है । लंदन में कुछ दिन इधर उधर पुराने मित्रों से मिलने के बाद एक शाम दिमाग़ के परदे पर क्रोएशिया तैरने लगा और दो दिन बाद रात आठ बजे ख़ुद को क्रोएशिया के दुब्रोवनिक हवाई अड्डे पर खड़ा पाया । बारिश और तूफान बहुत था । पहली बार विमान लैंड ही नही कर पाया और रन वे पर उतरते उतरते वापस उड़ गया । पन्द्रह मिनट बाद यात्रियों की बढ़ी हुई धड़कनों के बीच दूसरी कोशिश में हिलते डुलते इधर उधर हिचकोले खाते बड़ी मुश्किल से रन वे पर झटके से उतरा । सब मुसाफिरों ने तालियां बजाकर बड़े जोरों शोरों से पायलट की हौसला अफ़ज़ाई की । बाहर आकर कार रेंट करनी थी । पहली बार किसी नए मुल्क में रात अंधेरे पहुँच कर जब भयंकर तूफान और बारिश हो, एयरपोर्ट से कार रेंट करना और तीस किलोमीटर दूर गंतव्य पर पहुंचना वाकई सही मायने में एडवेंचर है । शुक्र है गूगल जी अपने मैप अवतार में साथ ही थे तो खरामा खरामा पहुंच ही गया
वैसे तो क्रोएशिया तरह तरह के मीठे और स्वाद फलों का, सुनहरे शहद का, बेहद स्वादिष्ट चीज़ का, बेहतरीन बीयर, व्हाइट और रेड वाइन का, झीलों और झरनों का और बहुत भले और खूवसूरत लोगों का देश है पर क्रोएशिया की जिस बात ने मुझे अंदर तक छुआ वो है यहां की हर चीज़ में एक खास 'रस' । चाहे यहां की हवा हो, पानी हो, फल सब्ज़ियां हो, शराब और बियर हो, लोगों की दिलकश बातें हो या कुछ और -चारों तरफ हर चीज़ में एक खास रस है, सौंधी महक है जो आपको किसी और मुल्क में दिखाई नही पड़ती ।
लंदन से फ्लाइट लेते समय जिस तरह हवाई जहाज पूरी तरह ठसाठस भरा हुआ था उससे यह अंदाजा तो हो ही गया था कि दुनिया के वो भी खास तौर पर पश्चिमी यूरोप और अमेरिका के घुमंतुओं की तवज्जो आजकल क्रोएशिया की तरफ ज्यादा बढ़ रही है पर इतनी बढ़ रही है इसका बिल्कुल भी अंदाज़ा नही था । क्रोएशिया का बंदरगाही शहर दुब्रोवनिक दस बरस पहले तक बहुत सुस्त और शांत शहर हुआ करता था और अब दिन रात सैलानियों की भीड़ हवाई जहाजों और पानी के जहाजों में लदी-फन्दी पता नही कहाँ कहाँ से घुसी चली आ रही है ।
ये सब हुआ कैसे ? पहुंचने के अगली सुबह जब मैं पुराना शहर देखने के लिए निकला तो एयर बी एन्ड बी के ज़रिये बुक कराए मकान मालिक का चौबीस बरस का लंबा खूबसूरत लड़का इवान मुख्य द्वार पर ही मिल गया । लड़का वैसे तो मर्चेंट नेवी में अच्छे पद पर है पर अच्छी अंग्रेजी बोल सकने के कारण छुट्टियों में घर पर ही अपनी माँ के घर किराए पर देने के व्यवसाय में मदद कर रहा था । क्रोएशिया में ज्यादातर तीन तीन पीढियां एक साथ एक ही घर में इक्कठे रहती है । इवान की दादी, माँ, पिता और सब भाई बहिन इकट्ठे एक ही बड़े घर में साथ साथ रह रहे थे ।
उसे जब पता लगा कि मैं पुराना शहर देखने जा रहा हूँ और कार ड्राइव करके जाना चाहता हूँ तो हंसने लगा । मैं थोड़ा हैरान हुआ तो उसने बताया कि पहली बात तो पार्किंग ही नही मिलेगी और मिल भी गयी तो इंडियन करंसी के हिसाब से 1500 से 2000 रुपये प्रतिघंटा देने पड़ेंगे । उसने बताया कि पांच साल से पुराने शहर में पैदल चलने के लिए भी जगह नही बची है जब से टेलीविजन पर 'गेम ऑफ थ्रोन्स' नाम की वेब सीरीज प्रसारित हुई है । तिहत्तर एपिसोड वाली इस वेब सीरीज ने जिसकी ज्यादातर शूटिंग क्रोएशिया और खास तौर पर दुब्रोवनिक में हुई है, पूरे संसार में जबरदस्त सफलता हासिल की है ।
शायद ऐसा पहले कभी नही हुआ था कि एक टेलीविजन प्रोग्राम ने एक शहर और देश के टूरिज्म को चार पांच गुना बढ़ा दिया हो । इवान की सलाह मान कर उबर टेक्सी, जो एयर बी एन्ड बी की ही तरह पूरी दुनिया में सैलानियों के लिए बड़ी सहूलियत लेकर आयी है, बुक की । आत्मविश्वास से लबालब भरी जवान टेक्सी ड्राइवर ने जब अजीब से ढंग से मुस्करा कर पूछा 'गेम ऑफ थ्रोन्स टूरिस्ट' तो मुझे उसकी मुस्कराहट का व्यंग समझ आ गया । वो मुझे भी गेम ऑफ थ्रोन्स का वेब सिरिजी टूरिस्ट समझ कर मजे ले रही थी ।