सांझ के आँगन में..
लिपटी धरा से अरूणिमा..
गोधूलि बेला ये..
बदल रही भाव भंगिमा..
सुहानी हो शाम ये..
खोल रही दरवाजा..
पंछियों का कलरव..
भर रहा असीम ऊर्जा
पत्थर-पत्थर गा रहा..
राग मल्हार यहाँ..
सागर का ज्वार देखो..
उठकर गिर रहा..
गगन होने लगा स्याह अब..
चाँद भी सजने को है..
बारात सितारों की..
आँगन अब उतरने को है..
मीठे स्वप्न की डोली बैठ..
निंदिया अब आने को है..
शबनमी लहरी भी अब..
दूब पर खिलने को है
भूलो सारे रंजो गम..
छोड़ो तनाव सारे..
फिर सवेरा होने को है..
फिर सवेरा आने को है..
स्वरचित :- राठौड़ मुकेश