shabd-logo

गाँव का जीवन

20 जनवरी 2024

3 बार देखा गया 3
हाँ, मैंने गांव को इतने करीब से जिया है, 
खेतों में पीले सरसों के फूलों को सौंधी खुशबु के साथ खिलते देखा, 
सर्दी मे कोहरे की सफेद चादर की धुंध से लोगों की छिपत हुए देखा,
हाँ, मैंने गांव को इतने करीब से जिया है।

हाँ, मैंने गांव को इतने करीब से जिया है।
खेतों से आती हुयी सीधी ताजी - ताजी कच्ची सब्जी की महक,
खलिहानों मे गन्नों से निकलता ताजगी भरा रस और ताजा गुड़ का स्वाद चखा, 
हाँ, मैंने गांव को इतने करीब से जिया है।

हाँ, मैंने गांव को इतने करीब से जिया है।
लकड़ी व मिट्टी से बने कच्चे मकानों और मन के सच्चे लोगों को
आंगन को मिट्टी और गोबर से लीप कर त्योहारों की मिठाईया बनाते हुए देखा, 
बिना मिलावट का मवेशियों से निकला शुद्ध दूध और दही का असली स्वाद चखा, 
हाँ, मैंने गांव को इतने करीब से जिया है।

हाँ, मैंने गांव को इतने करीब से जिया है।
खेत - खलिहानों को जाते लोगों के चहरों पर एक अजीब सी मुस्कान की झलक देखी है, 
शहरीकरण के बिना, चहल - पहल और ऐशो - आराम से कोसों दूर सादगी से भरी हुए एक जिन्दगीं को जिया है, 
हाँ, मैंने गांव को इतने करीब से जिया है।

हाँ, मैंने गांव को इतने करीब से जिया है।
डाई नदी के पानी का कल - कल करना और बागो में पंछियों का चहचहाना सुना है, 
प्रकृति की प्राकृतिक सुंदरता मे सादगीभरा जीवन जिया है, 
हाँ, मैंने गांव को इतने करीब से जिया है।

हाँ, मैंने गांव को इतने करीब से जिया है।
खेतों में काम कर रही माता - बहनों और ताऊ - काका के मुख पर स्वाभिमान देखा है, 
ना लाखों, ना करोड़ों की दौलत की चाहत से दूर मेहनत कर सुकून से जीते हुए देखा है, 
हाँ, मैंने गांव को इतने करीब से जिया है।


1

जिंदगी मेरे अन्दर

30 अक्टूबर 2022
4
1
2

सबको आती है नज़र रोशनी मेरे अंदर, कितनी है, पूछे कोई तन्हाई मेरे अंदर मेरी आवाज़ में है शामिल इक सन्नाटा, सदियों से चीखती है ख़ामोशी मेरे अंदर भीगने से भला कैसे बचाऊं ख़ुद को बहती है ग़म की एक नद

2

बेटियाँ पराई नहीं, दिलों में रहती है...

30 अक्टूबर 2022
2
0
0

बेटियाँ पराई नहीं, दिलों में रहती है...  एक बार एक गरीब पिता ने अपनी एकलौती पुत्री की सगाई करवाई...  लड़का बड़े अच्छे घर से था, इसलिए माता-पिता दोनों बहुत खुश थे । लड़के के साथ लड़के के पूर

3

रिश्ता

30 अक्टूबर 2022
2
0
0

*रिश्ता* जीवन में किसी को......... दिल से पसंद करते हो..... उससे रिश्ता जोड़े रखे..... आपका काम चाहे न हो... पर कभी गलत राय......... आपको नहीं देगा............ जीवन में बहुत से रिश्ते.... गलत

4

नववर्ष

3 जनवरी 2024
0
0
0

नववर्ष के स्वागत मे, नई खुशी, नई उमंगे लाएंगे, हो नया सवेरा सभी के जीवन में, निराशा के अंधेरों को, मिलकर दूर भगाएंगे, नए-नए सपने, नए अरमान ले, नए-नए ख़्वाब बुनेंगे,

5

मेरी मुस्कान

3 जनवरी 2024
0
0
0

लोग जल जाते हैं मेरी मुस्कान पर क्योंकि,मैंने कभी दर्द की नुमाइश नहीं की... ज़िंदगी से जो मिला कबूल किया,किसी चीज की फरमाइश नहीं की... मुश्किल है समझ पाना मुझे क्योंकि,जीने के अलग अंदाज हैं म

6

गाँव का जीवन

20 जनवरी 2024
0
0
0

हाँ, मैंने गांव को इतने करीब से जिया है, खेतों में पीले सरसों के फूलों को सौंधी खुशबु के साथ खिलते देखा, सर्दी मे कोहरे की सफेद चादर की धुंध से लोगों की छिपत हुए देखा,हाँ, मैंने गांव को इतने

7

बाबुल की बुलबुल

21 जनवरी 2024
0
0
0

बाबुल की बुलबुल उड़ जायेगीबाबुल के आंगन मे गुड्डे - गुड़ियों से खेल खेलने वाली। बाबुल के आंगन व गुवाड़ की खुशी औरों की खुशियाँ बन जायेगी। बचपन की प्यारी सखी - सहेलियों से एक दिन दूर हो जाएगी

8

आंखें

23 जनवरी 2024
0
0
0

"आंखें रोती भी है और आंखें हंसती भी है,आंखें सोती भी है और आंखें जागती भी है,आंखें आंखों से इशारों में बोलती भी है,आंखें आंखों से भला - बुरा देखती भी है..."-दिनेश कुमार कीर

9

प्यारी बेटी

8 फरवरी 2024
2
0
0

प्यारी बेटी (बेटी है तो कल है) किसी गाँव में एक परिवार रहता था। उस परिवार में गणेश अपनी पत्नी रेखा, छोटा बेटा दिनेश, बहू विमला, पौत्री अनन्या के साथ रहता था। गणेश का बड़ा बेटा विकास बड़े शहर में

10

जिन्दगी

13 अप्रैल 2024
0
0
0

गुजरती जिन्दगी के सारे लम्हेखूबसूरत ना हो सके तो क्या हुआ... कुछ यादगार लम्हों को हीजिन्दगी की सफलता समझो...-दिनेश कुमार कीर

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए